हर साल 9 अगस्त का दिन ‘विश्व के देशीय लोगों के अंतरराष्ट्रीय दिवस’ (International Day of the World’s Indigenous People) के रूप में मनाया जाता है.
आम बोलचाल की भाषा में इसे ‘विश्व आदिवासी दिवस’ के रूप में जाना जाता है. इस दिन संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) ने आदिवासियों के भले के लिए एक कार्यदल गठित किया था, जिसकी बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई थी.
उसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nation General Assembly) ने 23 दिसंबर, 1994 को संकल्प 49/214 (Resolution 49/214) के माध्यम से हर साल 9 अगस्त को ‘विश्व के देशीय लोगों के अंतरराष्ट्रीय दिवस’ (International Day of the World’s Indigenous People) के रूप में मनाने की घोषणा की थी.
इस बार, यानी साल 2019 को देशीय भाषाओं का अंतरराष्ट्रीय वर्ष (International Year of Indigenous Languages) के तौर पर मनाया जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प 71/178 देशीय लोगों के अधिकार के अंतर्गत 19 दिसंबर, 2016 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2019 को देशीय भाषाओं का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया.
गौरतलब है कि वर्तमान में विश्व की लगभग 6700 भाषाओं में से 96 प्रतिशत, विश्व की मात्र 3 प्रतिशत जनसंख्या द्वारा बोली जाती है. ऐसे में एक अनुमान के मुताबिक, विश्व की आधी से अधिक भाषाएं वर्ष 2100 तक विलुप्त हो जाएंगी.
19 दिसंबर 2016 को अपनाये गए प्रस्ताव में, संयुक्त राष्ट्र ने विशेष रूप से स्वदेशी भाषाओं और खास स्वदेशी भाषाओं के बारे में गहरी चिंता जाहिर की और कहा कि लगातार प्रयासों के बावजूद, लुप्तप्राय भाषाओं को संरक्षित, बढ़ावा और पुनर्जीवित करने की फौरन जरूरत है.
यानी 2019 पूरी दुनिया में स्वदेशी लोगों की भाषाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है. संयुक्त राष्ट्र को बढ़ावा देने के लिए कई देश वैश्विक और स्थानीय कार्यक्रमों में भाग लेते हैं. इस अंतरराष्ट्रीय वर्ष के तहत विभिन्न आयोजनों हेतु यूनेस्को (UNESCO) शीर्ष संगठन (Lead Organisation) के रूप में कार्य करेगा.
आंकड़ों की मानें, तो आज दुनिया में 7000 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं. इनमें से लगभग एक तिहाई लुप्तप्राय हैं, जिनमें 1000 से कम के बोलने वाले शेष हैं. दुनिया की आधी से अधिक आबादी केवल 23 भाषाएं बोलती है.
यूनेस्को के अनुसार, पिछली सदी में लगभग 600 भाषाएं गायब हो गई हैं और हर दो सप्ताह में एक भाषा की दर से गायब होती रहती हैं. अगर यही रुझान जारी रहा, तो इस सदी के अंत से पहले दुनिया की 90 प्रतिशत भाषाओं के गायब होने की आशंका है.
साल 2019 को स्वदेशी भाषाओं का वर्ष घोषित करने के पीछे इसका उद्देश्य स्वदेशी भाषाओं के महत्वपूर्ण नुकसान की ओर ध्यान आकर्षित करना है और स्वदेशी भाषाओं को संरक्षित, पुनर्जीवित करने और बढ़ावा देने और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तत्काल कदम उठाने की जरूरत पर जोर देना है.