स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन के इस संयोग पर पढ़िए भाई-बहनों के अटूट रिश्ते की कहानी

रांची : आज देश की आजादी की 73वीं सालगिरह है, तो भाई-बहनों के अटूट रिश्ते, त्याग और समर्पण का प्रतीक त्योहार रक्षाबंधन भी. यह महासंयोग है, जो वर्षों बाद आया है. यह ज्योतिषीय संयोग नहीं है. आज का संयोग उन बहनों और भाइयों के लिए खास है, जो सरहदों पर देश की सुरक्षा में तैनात […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 15, 2019 8:02 AM

रांची : आज देश की आजादी की 73वीं सालगिरह है, तो भाई-बहनों के अटूट रिश्ते, त्याग और समर्पण का प्रतीक त्योहार रक्षाबंधन भी. यह महासंयोग है, जो वर्षों बाद आया है. यह ज्योतिषीय संयोग नहीं है. आज का संयोग उन बहनों और भाइयों के लिए खास है, जो सरहदों पर देश की सुरक्षा में तैनात हैं. भाई-बहनों में चाहे कितनी भी दूरी हो, लेकिन इनके बीच रेशम की मजबूत डोर है. सभी रेशमी धागे में बंधे हुए हैं. इसी खास दिन पर हम आपको भाई-बहनों की कुछ कहानियां शेयर कर रहे हैं, जो आजादी की राखी से बंधी हुई हैं.

भाई के नाम ईश्वर को अर्पित करती हूं राखी

अमर शहीद लेफ्टिनेंट कर्नल संकल्प कुमार. पांच दिसंबर 2014 को उरी हमले में शहीद हो गये थे़ खुद भी पांच आतंकवादियों को मार गिराया था. पहला हमला उन्हीं पर हुआ था. उनकी बहन मेघा शुक्ला दीक्षित रक्षाबंधन के इस पावन मौके पर अपने भाई को खासकर याद करती हैं. मेघा कहती हैं : देश के लिए मर मिटने वाले अपने भाई पर गर्व महसूस होता है. हम दो भाई-बहन ही हैं. मैं उससे (शहीद संकल्प) बड़ी हूं, लेकिन देखने में वह बड़ा लगता था. मेरा भाई लोहा था, जो किसी चीज से डरता नहीं था. आज कश्मीर का उसका सपना भी पूरा हो गया. वह कहती हैं कि रक्षाबंधन का पर्व अब तो नहीं मना पाती, लेकिन ईश्वर को उसके नाम की राखी अर्पित करती हैं. हर रक्षाबंधन में उसकी यादें आंखों के सामने उतर आती हैं.

छोटी बहन के नाम की राखी आज भी बंधवाता हूं

झारखंड पुलिस के सिपाही अजीत सिंह छपरा (बिहार) के अमनौर गांव के रहनेवाले हैं. इन दिनों झारखंड की राजधानी रांची के बरियातू थाना में कार्यरत हैं. अजीत की दो बहनें हैं. बड़ी बहन आरती और छोटी बहन प्रियंका. चार साल पहले छोटी बहन प्रियंका का निधन हो गया. प्रियंका ने बेटी को जन्म दिया था. अजीत इसी बच्ची में अपनी बहन का रूप देखते हैं. वे कहते हैं : हर रक्षाबंधन में बहन प्रियंका की याद आती है. उसे गोद में खेलाया था. पढ़ाया-लिखाया. शादी करायी. उसे मुझ पर बड़ा नाज था. मुझे भी अपनी बहन पर गर्व है कि उसने बच्चे को जन्म देते समय खुद की जिंदगी गंवा दी, लेकिन बच्ची को कुछ नहीं होने दिया. हर वर्ष उसके नाम की राखी बड़ी बहन से ही बंधवाता हू़ं हालांकि इस वर्ष 15 अगस्त और रक्षाबंधन एक दिन ही है. इसलिए बहन से राखी नहीं बंधवा पा रहा हूं.

जवान हूं, इसलिए पहली प्राथमिकता है ड्यूटी

झारखंड के पलामू के रहनेवाले अजीत कुमार कोतवाली थाना में 2012 से योगदान दे रहे हैं. ड्यूटी के कारण कई सालों से रक्षाबंधन में बहन के पास नहीं जा पा रहे हैं. अजीत सिंह कहते हैं कि उनकी एक बहन है मंजू, जो उनसे छोटी है. वह गढ़वा में रहती है. मंजू ने ससुर के हाथों राखी भेजवाया है. वह कहते हैं रक्षाबंधन और 15 अगस्त एक दिन ही है. देश का जवान होने के नाते मेरे लिए पहले ड्यूटी है. बहन से फिर कभी छुट्टी लेकर मिलने जाऊंगा. हालांकि ड्यूटी पर जाने से पहले खुद अपनी कलाई पर राखी बांधकर ही निकलूंगा.

तीन वर्षों से नहीं हो रही बहनों से मुलाकात

भारतीय सेना के जवान नामकुम निवासी अविनाश कुमार सिंह अरुणाचल प्रदेश में तैनात हैं. वह इस रक्षाबंधन पर अपनी पांच बहनों को काफी मिस कर रहे हैं. हालांकि पांचों बहनें पिंकी कुमारी, कांति कुमारी, अंजलि कुमारी, अनीता कुमारी और खुशबू ने राखी भेज दिया है. अविनाश बताते हैं कि राखी के त्योहार पर बहनों की काफी याद आती है. पिछले तीन वर्षों से रक्षाबंधन पर बहनों से मुलाकात नहीं हो रही है. बहनों के साथ-साथ पूरे परिवार को मिस कर रहे हैं. वह कहते हैं कि सेना के लिए देश सेवा सबसे पहले है.

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