हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग : बढ़ती उम्र के साथ बढ़ता शिकंजा
ऐसे अभिभावक, जो अपने बच्चों के जीवन मे अत्यधिक दखलअंदाजी करते हैं. इन्हें ‘हेलिकॉप्टर पैरेंट्स’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वह हेलिकॉप्टर की तरह निरंतर अपने बच्चों के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं और उनके जीवन के हर पहलw और हर स्थिति पर कड़ी निगरानी रखते हैं. कारण वे अपने बच्चों को लेकर अतिसंरक्षित (over protective) […]
ऐसे अभिभावक, जो अपने बच्चों के जीवन मे अत्यधिक दखलअंदाजी करते हैं. इन्हें ‘हेलिकॉप्टर पैरेंट्स’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वह हेलिकॉप्टर की तरह निरंतर अपने बच्चों के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं और उनके जीवन के हर पहलw और हर स्थिति पर कड़ी निगरानी रखते हैं. कारण वे अपने बच्चों को लेकर अतिसंरक्षित (over protective) होते हैं और हर वक्त उन्हें संघर्ष, असुविधा, पराजय या निराशा से बचाने की जुगत में रहते हैं. ये पैरेंट्स इतने फिक्रमंद रहते हैं कि अपने संतान के सम्मुख आनेवाली असफलताओं, अवरोधों और चुनौतियों के आगे स्वयं ढाल बन कर खड़े हो जाते हैं. वे अपने बच्चों को अपनी क्षमता के बलबूते चुनौतियों का मुकाबला करने का मौका ही नहीं देते. हेलिकॉप्टर पैरेंट्स अपने संतान की विफलताओं और विकट चुनौतियों से असक्त महसूस करते हैं और वे हर कीमत पर उसे रोकना चाहते हैं. बच्चों की बढ़ती उम्र के साथ हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग का अंत नही होता, बल्कि उसका शिकंजा दिन-ब-दिन कसता ही जाता है. ऐसे अभिभावक चाहते हैं कि उनकी बच्चे उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप चले और उनकी हर आकांक्षाओ पर खरे उतरे. माता-पिता का यही रवैया भविष्य में बच्चों के लिए गंभीर स्थिति उत्पन्न करता है. वे छोटे-छोटे कामों के लिए भी बच्चों को बड़ी-बड़ी सलाह देते रहते हैं. वे नहीं चाहते कि उन्हें अपने जीवन में किसी तरह की परेशानी झेलनी पड़े.
बाल मनोवैज्ञानिकों की मानना है कि आवश्यकता से अधिक देखभाल बच्चों के मानसिक स्तर को कमजोर कर देता है. इससे उनका मानसिक विकास बाधित होता है. ऐसे बच्चों के आत्मविश्वास का स्तर इतना कम हो जाता है कि वे जीवन की विषम परिस्थितियों मे उचित-अनुचित का निर्णय लेने में खुद को अक्षम महसूस करते हैं. उनमें विशिष्ट ‘धैर्य’ का नितांत अभाव रहता है. ऐसे बच्चों को जब कभी जीवन में संघर्षों की धूप का सामना करना पड़ता है, तो वे इसकी तापिश को बर्दाश्त नहीं कर पाते और बिखरने लगते हैं. वे भावनात्मक रूप से अस्थिर व असंतुलित हो जाते है. लोगों से दूरी बनाने लगते हैं, लोगों से तारतम्य बिठाने मे असहजता महसूस करते हैं और अंततः एकाकी जीवन जीने लगते हैं. उनके जीवन से जोश, जुनून और संघर्ष खत्म हो जाता है. वे लक्ष्यहीन और संघर्षहीन जीवन जीने के लिये मजबूर हो जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है कि उनके अभिभावकों ने कभी भी उन्हें जीवन के अहम मुद्दों के बारे में निर्णय लेने का अवसर ही नहीं दिया. उन्हें यह बताया ही नहीं दी कि जीवन की विपरीत परिस्थितियां हमारे बेस्ट टीचर्स होती हैं, जिनसे हमें सीख लेकर आगे का रास्ता तय करना चाहिए. यही तो वो चीजें हैं, जो जीवन को सुस्वादु बनाने में ‘नमक’ की भूमिका अदा करती हैं.
श्रेष्ठ बनाएं, ‘सर्वश्रेष्ठ’ बनने का बोझ न डालें