कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के बारे में महिला आयोग ने कही यह जरूरी बात, जानें…

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय महिला आयोग ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा में विस्तार की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि महिला कर्मचारियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न की ओर इंगित करने वाले लिंग आधारित साइबर अपराधों को भी इसमें शामिल करने की आवश्यकता है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 28, 2019 5:55 PM

नयी दिल्ली : राष्ट्रीय महिला आयोग ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की परिभाषा में विस्तार की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि महिला कर्मचारियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न की ओर इंगित करने वाले लिंग आधारित साइबर अपराधों को भी इसमें शामिल करने की आवश्यकता है.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में महिला आयोग ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की जांच करने वाली आंतरिक समिति में सदस्यों की संख्या बढ़ाकर विषम (ऑड नंबर) करने का सुझाव दिया है ताकि फैसला बहुमत के आधार पर हो सके.

फिलहाल आंतरिक समिति में कम से कम चार सदस्यों का होना अनिवार्य है. रिपोर्ट में कहा गया है कि समिति के सदस्यों का चयन चुनाव के जरिये हो, ताकि पारदर्शिता बनी रहे.

महिला आयोग ने यह भी कहा है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत करने की अवधि घटना के बाद तीन महीने से बढ़ाकर छह महीने किया जाए. आयोग ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न कानून, 2013 के प्रावधानों में संशोधन की भी बात कही है.

महिला आयोग का कहना है, यौन उत्पीड़न की परिभाषा को विस्तृत कर उसमें महिला कार्मचारियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न की ओर इंगित करने वाले लिंग आधारित साइबर अपराधों को शामिल करने की आवश्यकता है.

कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को लेकर क्षेत्रीय स्तर पर सलाह-मशविरा करने के बाद महिला आयोग ने ये सिफारिशें की हैं. इस प्रक्रिया में कानून विशेषज्ञ भी शामिल थे.

रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की गई है कि यौन उत्पीड़न की परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो उत्पीड़न की गंभीरता और प्रकृति में फर्क कर सके और दंड के संबंध में आंतरिक समिति का ठोस दिशा-निर्देश कर सके.

आयोग ने यह भी कहा है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में आपसी समझौते का प्रावधान समाप्त कर दिया जाना चाहिए क्योंकि यह कोई ऐसा विवाद नहीं है जिसे समझा-बुझा कर समाप्त किया जा सके.

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