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मानसिक सेहत को गंभीरता से लें

ज्यादातर लोग शारीरिक स्वास्थ्य को तो गंभीरता से लेते हैं, मगर भावनात्मक समस्याओं से भीतर ही भीतर जूझते हैं. स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, दुनियाभर में करीब 40 लाख लोग मेंटल, न्यूरॉलजिकल डिसऑर्डर या साइकोलॉजिकल समस्याओं से जूझ रहे हैं. इनमें स्ट्रेस डिसऑर्डर, ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर, पैनिक अटैक्स, पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर आदि बीमारियां प्रमुख हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2019 9:05 AM
ज्यादातर लोग शारीरिक स्वास्थ्य को तो गंभीरता से लेते हैं, मगर भावनात्मक समस्याओं से भीतर ही भीतर जूझते हैं. स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, दुनियाभर में करीब 40 लाख लोग मेंटल, न्यूरॉलजिकल डिसऑर्डर या साइकोलॉजिकल समस्याओं से जूझ रहे हैं.
इनमें स्ट्रेस डिसऑर्डर, ऑबसेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर, पैनिक अटैक्स, पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर आदि बीमारियां प्रमुख हैं. बावजूद इसके लोग अवेयर नहीं. हमारे जीवन में तनाव केवल निजी कारणों से ही नहीं आते हैं, बल्कि काम-काज का भी इसमें बड़ा रोल है. यानी दफ्तर में किस माहौल में काम करते हैं, सहयोगियों के साथ कैसे रिश्ते हैं, इन बातों का भी मानसिक सेहत पर असर होता है. इसलिए दबाव महसूस हो, तो समाधान खोजें. इसमें नि:संकोच मनोचिकित्सक की सलाह लें.

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