कई पुरुष किरदार सभी के जीवन में निभाते हैं अहम रोल
पटना : पुरुषों की एक स्टीरियोटाइप इमेज है. वो माचो वाली हाइप. घर चलायेगा. लड़की को बचायेगा. वो रोयेगा नहीं. वीक नहीं होगा. मगर, समय के साथ यह सोच बदला है. पुरुष अब घर की जिम्मेदारियां भी उठाने लगे हैं. वर्किंग वाइफ के घर आने पर चाय बनाने लगे हैं. वीकेंड पर किचेन भी संभालने लगे हैं. बॉलीवुड के मशहूर एक्टर आयुष्मान खुराना ने हाल ही में एक इवेंट के दौरान वर्तमान पुरुषों की स्थिति को बयां करते हुए ठीक ही कहा है कि मर्द सिक्स पैक से नहीं बनते. न कमाने से, न चिल्लाने से, न आंसू छिपाने से बनते हैं. मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस के मौके पर हमने कुछ ऐसे ही पुरुषों से बात की, जो स्टीरियोटाइप मर्द न होकर आधुनिक समय में अपनी पत्नी, मां, बहन के साथ कंधे से कंधा मिला कर किचेन से लेकर बच्चों को संभालने तक की जिम्मेदारी उठा रहे हैं. बतौर पिता, भाई, दोस्त, दादा, चाचा, मामा, नाना ऐसे कई पुरुष किरदार हमारे-आपके जीवन में अहम रोल निभाते हैं, जिनकी काफी अहमियत होती है. पेश है एक रिपोर्ट.
बच्चों की केयरिंग सिर्फ पत्नी नहीं, मेरी भी जिम्मेदारी
हमेशा से देखता हूं कि बच्चा होने के बाद महिला ही सारी जिम्मेदारी उठाती है. खाना बनाने से लेकर बच्चों के खान-पान और अन्य कामों के साथ-साथ पति की सेवा भी उसका कर्तव्य माना जाता है. लेकिन, मेरे हिसाब से यह गलत है. घर में बच्चों की देख-रेख पति भी कर सकते हैं. यह कहना है बुद्धा कॉलोनी के डॉ विकास का. पेशे से डॉक्टर विकास बताते हैं कि घर में साधारण भाव में रहना पसंद करता हूं. मेरी हाउस वाइफ है, जो पूरे घर को संभालती है. इसलिए क्लिनिक जाने से पहले घर के कई कामों में मैं हाथ बटाता हूं. खास कर बच्चों की देख-रेख खुद से करता हूं. कई बार बच्चों को खुद ही खिला कर सुला देता हूं.
रात-रात भर जाग कर बच्चे को संभालने में करता हूं मदद : प्रशांत
शादी के बाद इंसान की सोच बदल जाती है. कुछ लोग शादी के पहले तक तो घर में कुछ काम करते हैं, लेकिन शादी के बाद घर के काम में हाथ बंटाना उनको अपने मर्दानगी के खिलाफ लगता है. एग्जीबिशन रोड के प्रशांत कुमार सिन्हा कहते हैं कि मैं और मेरी पत्नी दोनों बैंक में काम करते हैं. दोनों एक दूसरे के काम को समझते हैं. साथ ही रिस्पेक्ट भी करते हैं. हमारी एक बेटी है, जिसकी देख-रेख भी दोनों मिल कर करते हैं. रात में जब वह रोती है तो हम भी जागते हैं. बेटी को गोद में लेकर घुमाते हैं. हम मर्द कहलाने के चक्कर में हर काम किसी भी महिला पर नहीं रख सकते हैं. पत्नी बच्चे में इंगेज रहती है, तो मैं किचेन का काम भी खुद से कर लेता हूं. यह मेरे लिए शर्म की नहीं गर्व की बात है.
ऐसे हुई पुरुष दिवस की शुरुआत
हर साल महिला दिवस की तरह अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस भी मनाया जाता है. यह दिवस पुरुषों को भेदभाव, शोषण, उत्पीड़न, हिंसा और असमानता से बचाने और उन्हें उनके अधिकार दिलाने के लिए मनाया जाता है. क्योंकि महिलाओं की तरह पुरुष भी असमानता के शिकार होते हैं. 1998 में त्रिनिदाद एंड टोबैगो में पहली बार 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया. उसके बाद हर साल 19 नवंबर को दुनिया भर के 60 देशों में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया जाता है. भारत में पहली बार 2007 में अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाया गया. इस दिन पुरुषों की उपलब्धियों का उत्सव मनाया जाता है साथ ही समाज, परिवार, विवाह और बच्चों की देखभाल में पुरुषों के सहयोग पर भी बात होती है.
किचेन में पत्नी को सहयोग करने पर मिलती है संतुष्टि : सुशांत शर्मा
दानापुर के सुशांत शर्मा मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं. पद से मैनेजर हैं. साथ ही उनकी पत्नी मेघा शर्मा भी फैशन डिजाइनिंग में परचम लहरा रही हैं. दोनों वर्किंग हैं, लेकिन सुशांत अच्छे पद के साथ-साथ न सिर्फ अच्छे पति हैं, बल्कि अच्छे बेटे के रूप में खुद को साबित कर चुके हैं. वह कहते हैं कि मेरा जॉब मेरी पर्सनल लाइफ में कभी इंटरफेयर नहीं करती. मैं हमेशा से घर में मां का हाथ बंटाता हूं. शादी के बाद पत्नी का भी हाथ बंटाता हूं. आज भी सुबह का चाय मैं खुद बनाता हूं. कई बार छुट्टियों में लंच या डिनर बनाना मुझे अच्छा लगता है. किचेन में मां या पत्नी का सहयोग करके मुझे संतुष्टि मिलती है.
हर पुरुष कर सकता है मदद
सुबह एक कप चाय बना कर या ऑफिस जाने से पहले नाश्ता तैयार कर के
बच्चा जब रो रहा हो या कुछ मांग रहा हो, तो खुद से भी बच्चे को संभाल सकते हैं
दोनों वर्किंग हैं, तो घर के काम में हाथ बंटा सकते हैं.
पत्नी या मां बीमार है, तो उसकी देख-रेख और समय पर दवा देना भी पुरुषों का कर्तव्य है
पत्नी अगर बच्चे संभाल रही है, तो अपना चाय नाश्ता खुद से भी ले सकते हैं
मार्केट जाने समय किचेन में जा कर क्या लाना है यह खुद भी नोटिस कर सकते हैं