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श्रीविधि से जैविक खेती के लिए रोल मॉडल बन चुकी हैं साको देवी

जूही स्मितासमूह बनाकर श्रीविधि से खेती को बनाया आय का जरियापटना : गया के टनकुप्पा प्रखंड के बरसोना गांव की रहने वाली साको देवी आज श्रीविधि से जैविक खेती के लिए रोल मॉडल बन चुकी हैं. कभी उसका खेत बंजर हो चुका था. पति भी काम की तलाश में कोलकाता चले गये थे. ऐसे में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 21, 2019 10:29 AM

जूही स्मिता
समूह बनाकर श्रीविधि से खेती को बनाया आय का जरिया
पटना :
गया के टनकुप्पा प्रखंड के बरसोना गांव की रहने वाली साको देवी आज श्रीविधि से जैविक खेती के लिए रोल मॉडल बन चुकी हैं. कभी उसका खेत बंजर हो चुका था. पति भी काम की तलाश में कोलकाता चले गये थे. ऐसे में सात बच्चों को पालन-पोषण करना उनके लिए परेशानी का सबब था.

उस वक्त प्राण संस्था से जुड़े कुछ सदस्यों ने उन्हें श्रीविधि से जैविक खेती की प्रशिक्षण लेने की सलाह दी. उनकी बात मान कर साको ने प्रशिक्षण लिया और संस्था ने उन्हें रोल मॉडल के तौर पर तैयार किया. प्राण संस्था से तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद साको अपने घर पर ही जैविक खाद के साथ-साथ किटनाशक भी तैयार करती हैं, जिनका इस्तेमाल वह अपने खेती में करती हैं.

महिलाओं को देती हैं प्रशिक्षण

तकनीकी जानकारी प्राप्त करने के बाद वह अब जीविका की पहल पर शहर और अन्य गांवों में प्रशिक्षण देने जाती हैं. अब तक उनके साथ 25 से ज्यादा महिलाएं जुड़ चुकी हैं. साको बताती हैं कि पहले जहां उन्हें खाने की दिक्कत होती थी, आज इसी खेती की वजह से उनकी बेटियों की शादी हो चुकी है और दो बेटे अभी पढ़ाई कर रहे हैं और सालाना उन्हें पचास हजार रुपये की बचत भी हो जाती है. 2015 में नीति आयोग के सेमिनार में उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करने का मौका मिला. प्रशिक्षण देने के लिए उन्हें इलाहाबाद और हैदराबाद जाने का भी मौका मिला. उनकी खेती देखने के लिए विभिन्न स्कूलों और कॉलेज के स्टूडेंट्स आते हैं. सिर्फ के देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी वैज्ञानिक यहां आ चुके हैं. 2015 में गोट्टीनजेन विवि, जर्मनी के ग्लोबल फूड के सोशल साइंटिस्ट डिर्क लैंड्समैन बरसोना गांव आकर खेती कर रही महिलाओं से मिल चुके हैं.

श्रीविधि खेती के हैं कई फायदे

इस विधि से खेती करने पर पानी कम लगता है.

हर मौसम से जुड़े अनाज, दलहन और सब्जियों में इसका यूज किया जा सकता है

लागत में कमी और उत्पादन में वृद्धि होती है.

जैविक पदार्थों के उपयोग से अनाज की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है.

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