श्रेया कुमारी
पहाड़ों की गोद में बसा, गया जिले का एक छोटा-सा गांव माड़नपुर. जहां पहाड़ों के सिने को चिरते हुए एक जमाने में झरने बहा करते थे. उसी की निशानी है पहाड़ों के बीच पानी से भरा वो स्थान, जिसे ‘सोई’ कहते हैं. पास में ही स्थित विश्व प्रसिद्ध ‘विष्णुपथ मंदिर’ है, तो थोड़ी ही दूरी पर बसा वो महाबोधि वृक्ष, जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था.
सालों भर यहां मेला-सा लगा रहता है. दूर-दूर के यात्री ही नहीं, विदेशों के लोग भी यहां आते रहते हैं. मैं कभी शिमला, मनाली, तो नहीं गयी पर हां, एक बात पूरे यकीन के साथ कह सकती हूं कि शिमला के लोग भी एक शाम इन पहाड़ों पर और यहां के रंग- बिरंगे पक्षियों के संग बिता लें, तो पूरी उम्र के लिए यहीं अपना आशियाना बना लेने की ख्वाहिश उनके मन में भी जरूर आने लगेगी.
बारिश के मौसम में यहां के कण-कण झुम उठते हैं. पूरा पहाड़ सफेद और हरे रंग में ऐसे मिल जाता है, मानों कुछ पल के लिए स्वर्ग जमीं पर उतर आया हो. सच प्रकृति का ऐसा मनमोहक नज़ारा देख हर शख्स अपना दिल हार बैठे यहां की वादियों में.
पहली बार जब में इन पहाड़ों पर पापा की गोद में बैठ कर आयी थी तब मुझे बहुत डर लगा था और डर लगे भी क्यों न, यहां सांप जो निकलते थे. बड़े-बड़े पेड़ों के बीच भूतों का भी डर! अब इतने सारे खतरे और मैं एक नन्ही-सी जान. पापा की गोद में दुबकी यही दुआ मांग रही थी- हे भगवान! पापा को किसी भी तरह से इन पहाड़ों के नीचे ले आओ. भगवान बच्चों की दुआ बड़ी जल्दी सुन लेते हैं, तो बस उस दिन मेरी भी दुआ कबूल हो गयी. पर इन पहाड़ों से मेरा रिश्ता जुड़ा गया.
कहते हैं ये जिंदगी खुशी का सागर है तो दर्द भरी नदी भी. खुशी तो सिने में हजम हो जाती है, पर तकलीफ एक बीज की तरह पलती रहती है. उस पर भी समस्या यह कि कुछ बातें हम किसी अपने से ही शेयर कर सकते हैं और अभी के दौर में कौन अपना है और कौन पराया, पता ही नहीं चलता. और हम घुटते रहते हैं अंदर ही अंदर. पर मुझे जब भी जिंदगी की भाग-दौड़ भरी जिंदगी से दूर सुकून की झपकी चाहिए होती, तो मैं सुबह की ट्रेन पकड़ माड़नपुर पहुंच जाती हूं. इन पहाड़ों के बीच आते ही सारे गम ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे बादलों के आते ही सूरज एक नयी ताजगी से खुद को भर लेता है. मैं भी वापस लौट आती हूं अपनी जिंदगी के सफर पर.
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