अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस: कानून नहीं, जागरूकता से रुकेंगे महिलाओं पर होने वाले अपराध
25 नवंबर को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है. यह दिवस महिलाओं पर हो रही हिंसा को रोकने के लिए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है. लेकिन, क्या आपको मालूम है कि सिर्फ बिहार में ही पिछले एक दशक के दौरान महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा […]
25 नवंबर को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है. यह दिवस महिलाओं पर हो रही हिंसा को रोकने के लिए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है. लेकिन, क्या आपको मालूम है कि सिर्फ बिहार में ही पिछले एक दशक के दौरान महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के 34 हजार से अधिक मामले दर्ज किये गये हैं. महिला हेल्पलाइन में महिलाओं के खिलाफ दर्ज होने वाले अपराधों में यह सर्वाधिक है. घरेलू हिंसा के बाद दहेज प्रताड़ना दूसरे (करीब 7000 मामले) स्थान पर आती है. ऐसे मामलों को सुलझाने के लिए समाज कल्याण विभाग ने सभी जिलों में महिला हेल्पलाइन की स्थापना की है. यूएन के एक सर्वे में पाया गया है कि 70 प्रतिशत महिलाएं अपने संपूर्ण जीवन काल में कभी न कभी हिंसा की शिकार होती हैं. ऐसे में प्रभात खबर ने महिलाओं को संविधान व भारतीय कानून में मिले अधिकारों व उनकी वर्तमान स्थिति को लेकर कुछ प्रमुख लोगों से बातचीत की.
आंकड़ें दिखा रहे महिला हिंसा की तस्वीर
वहीं, राज्य के पुलिस मुख्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2017 के दौरान प्रदेश में महिला अपराध से जुड़े कुल 15,784 मामले प्रकाश में आये. इनमें बलात्कार के 1199, अपहरण के 6817, दहेज हत्या के 1081, दहेज प्रताड़ना के 4873 और छेड़खानी के 1814 मामले शामिल हैं. वर्ष 2018 के जून तक बिहार में महिला अपराध के कुल 7683 मामले प्रकाश में आये. इनमें बलात्कार के 682, अपहरण के 2390, दहेज हत्या के 575, दहेज प्रताड़ना के 1535, छेड़खानी के 890 और महिला प्रताड़ना के 1611 मामले शामिल हैं. इससे पहले 2016 में राज्यभर में जहां 1,008 दुष्कर्म की घटनाएं हुई थी, वहीं 2015 में 1,041 व 2014 में 1,127 दुष्कर्म की घटनाएं घटी. इसी तरह 2013 में 1,128 जबकि 2012 में 927 दुष्कर्म की घटनाएं राज्य के विभिन्न थानों में दर्ज की गयी. वर्ष 2010 में पूरे राज्य में 795 दुष्कर्म की घटनाएं घटी थी.
हिंसामुक्त समाज के लिए सिर्फ कानून पर निर्भर नहीं
हिंसा मुक्त समाज बनाने के लिए सिर्फ कानून पर निर्भर नहीं रह सकते हैं. इसके लिए हर किसी को आगे बढ़ने की जरूरत है. हमारे समाज में तो जन्म से पहले से ही कानून बना हुआ है. गर्भ में पल रही लड़की के बचाव के लिए भी कानून है, ताकि कोई इसे मारे नहीं, लेकिन कई बार अधिकार रहते हुए कानून कुछ नहीं करती. ऐसे में महिलाओं को सिर्फ अधिकार मिलने से कुछ नहीं होगा.
प्रमिला कुमारी, प्रोजेक्ट मैनेजर, महिला हेल्प लाइन
महिला हिंसा के खिलाफ कई तरह के बने हैं कानून
महिला हिंसा में महिलाएं भी कई बार जिम्मेदार होती हैं. यह भी तथ्य है कि पढ़े-लिखे समाज में भी महिलाएं आज सबसे अधिक घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं. शादी के बाद पति को लड़की सुंदर नहीं लगना, लड़की का रंग सांवला होना, गांव में लड़की पैदा होने पर महिलाओं को जान से मारने जैसे मामले रोज देखने को मिल रहे हैं. मॉडर्न लाइफ स्टाइल मेंटेन करने के कारण बच्चियां गलत चंगुल में फंस रही हैं. ऐसे में यौन हिंसा के मामले भी बढ़ रहे हैं. आम लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत है.
रानी मंडल, बुद्धा कॉलोनी
बेटी सुरक्षित नहीं रहेगी, तो वह कैसे आगे बढ़ेगी. किस तरह से उनका मानसिक विकास होगा. महिला अधिकार को लेकर कई लोग काम कर रहे हैं. कई संगठन भी बने हैं. महिलाएं भी जागरूक हो रही है, लेकिन कहीं न कहीं समाज पीछे है. नये कानून भी सख्त बने हैं. फिर भी सिर्फ अधिकार और कानून बनने से कुछ नहीं होगा. आज भी कई मामले दर्ज नहीं किये जाते हैं. कानून होने के बावजूद वह अधिकार नहीं मिल पाता, जिसे लागू किया गया है.
-राधिका देवी, अशोक राजपथ
मनोवैज्ञानिक बिंदा सिंह कहती हैं कि मनोविकृत व्यक्तित्व के चलते महिलाओं पर हिंसा की घटनाएं होती हैं. ऐसे में सही ढंग से काउंसेलिंग या ट्रीटमेंट नहीं मिलने पर उनका हौंसला टूट जाता है और वह डिप्रेशन में चली जाती है. छोटे से छोटे मामले के लिए उनको थाने से लेकर काउंसेलिंग सेंटर के दर्जनों चक्कर लगाने पड़ते हैं. वह कहती हैं कि कुछ ज्यादा उम्र के लोग पीडियोफिलिया (बाल यौन अपराध) बीमारी से ग्रस्त रहते हैं. ऐसे में ये कम उम्र की बच्चियों को अपना शिकार बनाते हैं. उन्हें लगता है कि ये बच्चियां किसी से कुछ कहेंगी नहीं. इसके पीछे भी अकेलापन एक हद तक जिम्मेदार होता है.