माला सिन्हा की कहानी: जीवनसाथी की प्रेरणा से ऐसे बढ़ी जीवन की गाड़ी

परेशानियां तो हर किसी के जीवन में आती हैं, लेकिन मुश्किलों और परेशानियों के दौर में अगर इंसान को जीवनसाथी का सहयोग मिल जाये, तो फिर सारी मुश्किलें पल में ही सुलझ जाती हैं. ऐसा ही हुआ माला सिन्हा के साथ… पिछले 17 वर्षों से ‘बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट’ के कॉन्सेप्ट को अपने जीवन में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 15, 2019 12:00 PM

परेशानियां तो हर किसी के जीवन में आती हैं, लेकिन मुश्किलों और परेशानियों के दौर में अगर इंसान को जीवनसाथी का सहयोग मिल जाये, तो फिर सारी मुश्किलें पल में ही सुलझ जाती हैं. ऐसा ही हुआ माला सिन्हा के साथ…

पिछले 17 वर्षों से ‘बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट’ के कॉन्सेप्ट को अपने जीवन में साकार करके अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ बना रही माला सिन्हा मूल रूप से मुजफ्फरपुर की रहनेवाली है. 31 वर्ष पूर्व ग्रेजुएशन करते ही उनकी शादी हो गयी और वह अपने पति के साथ पटना के जक्कनपुर इलाके में स्थित अपने ससुराल में रहने आ गयीं. माला के पति एक प्राइवेट स्कूल में अकाउंटेट के पद पर कार्यरत हैं. सास-ससुर भी साथ ही रहते थे. फिर समय के साथ माला को दो बच्चों का मातृत्व सुख भी प्राप्त हुआ. ऐसे में एक अकेले इंसान के लिए इतने बड़े परिवार के खर्चों को मैनेज कर पाना मुश्किल होने लगा. तब उनलोगों ने इसका विकल्प तलाशना शुरू किया.

पति ने दिया बैग बनाने का आइडिया : माला बताती हैं- मेरे पति के एक दोस्त की बैग की दुकान थी, जहां वो अक्सर जाया करते थे और वहां बैठ कर कारीगरों के काम को बड़ी गौर से देखा करते थे. एक रोज उन्होंने मुझसे पूछा कि अगर मैं तुम्हें डिजाइन बताता जाऊं, तो क्या तुम उन्हें उसी अनुसार काट कर सिल सकती हो? मैंने कहा-कोशिश करती हूं. फिर मैंने उनके कहे अनुसार डिजाइन काटा और सिलाई मशीन पर सिल लिया. यह देख कर वह खुश हुए और कहा कि थोड़ा प्रयास करो, तो तुम इस काम को बेहतर कर सकती हो. उनकी बात मान कर मैंने भी धीरे-धीरे कोशिश करनी शुरू कर दी और आज नतीजा आप सबके सामने है.

कई बार जीत चुकी हैं पुरस्कार : माला पिछले कई वर्षों से बिहार लघु एवं सूक्ष्म उद्योग विभाग तथा उपेंद्र महारथी संस्थान की ओर से आयोजित मेलों में भागीदारी निभा रही हैं. इस वर्ष पटना के ज्ञान भवन में उपेंद्र महारथी संस्थान की ओर से आयोजित क्राफ्ट मेले में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ थीम पर बनायी गयी कपड़े की गुड़िया के लिए बेस्ट क्राफ्ट मेकर का प्रथम पुरस्कार जीत चुकी हैं. पूर्व में भी इस संस्था द्वारा उन्हें दो बार प्रथम और एक बार द्वितीय पुरस्कार जीत चुकी हैं. फिलहाल अपने इस व्यवसाय में माला हर महीने 15-20 हजार रुपयों का निवेश करके 30-40 हजार रुपये की आमदनी कर लेती हैं. भविष्य में सोशल मीडिया के जरिये भी अपने प्रोडक्ट को लॉन्च करने की उनकी प्लानिंग है.

बनाती हैं कई तरह के बैग

माला ने वर्ष 2000 में बैग बनाने का अपना कारोबार शुरू किया था. वह घर में पड़े पुराने कपड़ों से तरह-तरह के बैग बनाती हैं, जैसे- स्कूल बैग, ट्रैवलिंग बैग, फोल्डिंग बैग, शॉपिंग बैग, साड़ी बैग, शेविंग किट, बॉटल बैग, रोटी कवर, खोइंछा बैग आदि. इनके अलावा वह गुड़िया, कपड़े की आलमारी, फाइल फोल्डर आदि भी बनाती हैं. आज उनकी अपनी बैग की दुकान है, जिसमें उनके अधीन चार कारीगर काम कर रहे हैं. यही नहीं वह उपेंद्र महारथी संस्थान से जुड़ कर अब तक करीब 250 महिलाओं को बैग बनाने की ट्रेनिंग भी दे चुकी हैं. माला ज्यादातर पर्सनल ऑर्डर पर बैग बनाती हैं. इसके लिए कपड़े भी कस्टमर ही देते हैं, जबकि अन्य जरूरी सामान वह खुद लोकल मार्केट से खरीदती हैं. माला कहती हैं- ”कपड़े और जींस के बने बैग काफी टिकाऊ होते हैं, इसलिए एक बार जो लोग मुझसे बैग खरीद कर ले जाते हैं, वो दुबारा जरूर आते हैं.

Next Article

Exit mobile version