बच्चे ही हैं कल के नागरिक: लगाव, अलगाव और स्वतंत्रता में संतुलन की जरूरत
प्रत्युष प्रशांतएक बार फिर से देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों और महानगरों में अभिभावक अपने बच्चों के अच्छे-से-अच्छे स्कूलों में नामांकन के लिए कमर कस कर तैयार हो गये हैं. एडमिशन के लिए जरूरी कागजात, आवेदन की तारीख, कुल फीस, किताबें, यूनिफॉर्म आदि का ध्यान रखते हुए अक्सर जो बात अभिभावक भूल जाते हैं, वह […]
प्रत्युष प्रशांत
एक बार फिर से देश के तमाम छोटे-बड़े शहरों और महानगरों में अभिभावक अपने बच्चों के अच्छे-से-अच्छे स्कूलों में नामांकन के लिए कमर कस कर तैयार हो गये हैं. एडमिशन के लिए जरूरी कागजात, आवेदन की तारीख, कुल फीस, किताबें, यूनिफॉर्म आदि का ध्यान रखते हुए अक्सर जो बात अभिभावक भूल जाते हैं, वह यह कि बच्चों का बचपन एक जाग्रत संदेश है. आनेवाले भविष्य का बीज! इस बीज को पर्याप्त छांव ही नहीं, समुचित मात्रा में खुली धूप भी चाहिए. अपने बच्चों के बेहतर कल के लिए हमें आज इस बीज को बड़ी सावधानी और लगन से सहेजना होगा.
एक किताब, एक कलम, एक शिक्षक और एक बालक सब मिल कर दुनिया को बदल सकते है. कोई भी बच्चा जब पहली बार माता-पिता की प्राथमिक पाठशाला से दूसरी पाठशाला में कदम रख रहा होता है, तो वह नव उजास से जितना अधिक उत्साहित होता है, उतनी ही घबराहट भी अपने अंदर छुपाये रखता है. एक ओर नयी पाठशाला के नये पल उसके जीवन के चरम आनंद की वजह बनते हैं, तो वहीं दूसरी ओर तमाम तरह की शकांओं के बादल उसे माता-पिता की अंगुलियों को छोड़ने नहीं देते हैं.
एक बच्चे के लिए माता-पिता ही उसके पहले शिक्षक होते है. हर अभिभावक को यह समझना चाहिए कि आज के बच्चे कल के नागरिक हैं. वे ही देश के रचनाकार और भविष्य का सपना हैं. अत: यह जरूरी है कि उनके नाजुक कंधों पर सपनों का बस्ता आहिस्ता से टिकाया जाये. माता-पिता को ही तय करना है कि उनके बच्चों की आड़ी-तिरछी पेंटिग में किस तरह के रंग भरे जायें. बच्चा भले उनके जीवन की जमा पूंजी और भविष्य की उम्मीद है, पर साथ ही आनेवाले समय में वे ही देश के नागरिक भी बनेंगे, जिनके कंधों पर देश के लिए बहुत कुछ रचने-गढ़ने की जिम्मेदारी होगी.
बॉन्डिंग मजबूत करनी हो, तो बनें ‘एक्टिव लिस्नर’
बच्चों के जीवन में प्यार दुनिया की बहुमूल्य वस्तु है. माता-पिता की गोद से उतर कर दुनिया से पहला रिश्ता उनका स्कूल में ही बनता है. पहली बार वे एक सुरक्षित वातावरण से निकल कर दुनिया की उस दहलीज पर कदम रखते हैं, जहां उनके लिए सब अनजाने होते हैं. इस मासूम उम्र में वे प्यार को व्यापार की नजर से नहीं देखते. इसी कारण स्कूल के शुरुआती दिनों में वे अपनी टीचर से भी उसी प्यार और देखभाल की अपेक्षा रखते हैं, जो उन्हें अपने घर-परिवार में मिलता है. पहली बार वे अपने हम उम्र साथियों के साथ झुंड में जमा होते हैं. नये तरह के अनुभवों और नयी तरह की खुशियों को महसूस करते हैं. साथ ही, उन्हें शेयर करने के लिए भी बेताब होते हैं. ऐसे में जो इंसान उन्हें सुनता है और समझता है, उनके साथ उम्र भर के लिए बच्चों की बॉन्डिंग बेहद मजबूत हो जाती है. अत: जरूरी है कि चाहे घर में अभिभावक हों या फिर स्कूल में टीचर्स, वे बच्चों की बातों को आंखों में आंखें डाल कर ध्यानपूवर्क सुनें. विनम्रता और सहानुभूति से उनकी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करें. मनोविज्ञान की भाषा में इसे ही ‘एक्टिव लिस्निंग’ कहा जाता है.
बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए हो मस्ती की पाठशाला
बच्चों के लिए उपयुक्त स्कूल का चयन करते समय माता-पिता को विशेष ध्यान देने की जरूरत है. सही स्कूल का चयन ही बच्चों के भविष्य को मजबूत आधार प्रदान करता है. सही स्कूल के चयन में इन बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए कि स्कूल में शिक्षक बच्चों पर समुचित ध्यान देते हों, न कि वे बच्चों को प्राइवेट ट्यूशन लेने के लिए प्रोत्साहित करते हों. स्कूल के क्लास में बच्चों की संख्या क्षमता से अधिक नहीं हो. अधिक बच्चे होने के कारण कक्षा की अध्यापिका किसी भी बच्चे पर पूरा ध्यान नहीं दे पाती. अभिभावकों को उन स्कूलों को अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए, जो पढ़ाई के साथ-साथ चरित्र निर्माण पर भी जोर देते हों.
आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की समस्या से गुजर रही है. ऐसे में ‘भविष्य के नागरिकों’ का पर्यावरण के प्रति जागरूक और जिम्मेदार होना आवश्यक है. अत: वैसे स्कूल, जो बच्चों को प्रकृति के नजदीक लाने की कोशिश करते हैं, उन्हें अपनी प्राथमिकता सूची में शामिल करें. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों की शारीरिक क्षमता का भी विकास हो, इसके लिए स्कूल में खेल का मैदान और संसाधन होना जरूरी है. मैदान के चारों ओर सुरक्षात्मक दीवार हो, ताकि बच्चे भटक कर इधर-उधर न चले जायें. वैसे स्कूल का चयन करना चाहिए, जो बच्चों को प्रत्येक विषय में उच्च स्तरीय संप्रेषण क्षमता प्राप्त करने का अवसर देता हो. इसके लिए स्कूलों में समय-समय पर निबंध, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का होना जरूरी है. कई स्कूल एक्सट्रा एक्टिविटी के नाम पर अभिभावकों से मोटी राशि तो वसूल लेते हैं, पर व्यावहारिक स्तर पर करवाते कुछ नहीं हैं. इसके अलावा रचनात्मक तरीके से पठन-पाठन पर जोर देनेवाले स्कूलों को वरीयता मिलनी चाहिए, ताकि बच्चों में रचनात्मकता का विकास हो सके. सबसे जरूरी है बच्चों की सुरक्षा. स्कूल के बारे में पूरी जांच-पड़ताल के बाद ही बच्चों का नामांकन कराएं. अगर अभिभावकों को इस संबंध में थोड़ी भी कोताही नजर आती है, तो तुरंत स्कूल प्रशासन से बात करें.
लगाव, अलगाव और स्वतंत्रता में संतुलन की जरूरत
अनुशासन का पाठ बच्चों को विन्रम और सहनशील बनाता है. इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है बच्चे अनुशासन को समझें. बच्चों की अच्छी बातों के लिए उन्हें शाबाशी देने और उनकी छोटे-मोटी गलतियों को नजरअंदाज करने से उनके अंदर आत्मविश्वास का सृजन होता है. प्रशंसा, पुरस्कार और दंड तीनों ही मिल कर बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं. आज के व्यस्त जीवन में इसका अभाव बच्चों को भावनात्मक रूप से असुरक्षित करता है. माता-पिता या अभिभावकों को यह समझना जरूरी है कि बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण के लिए अच्छे स्कूलों के चयन के साथ-साथ बच्चों के साथ लगाव, अलगाव और स्वतंत्रता तीनों के बीच संतुलन रखना बहुत जरूरी हैं. तीनों चीजों का जरूरत से ज्यादा होना भी नुकसानदेह हो सकता है, जबकि इनका संतुलित प्रयोग बच्चों को आत्मविश्वास और रचनात्मक बनाता है.
यह बात एकदम मूर्खतापूर्ण है कि बहुत कम लोग सृजनात्मक होते हैं. हर मानव जन्मजात सृजेता है. अपने बच्चों को देखिए, सारे बच्चे सृजनात्मक होते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, हम उनकी सृजन प्रतिभा पर अपनी महत्वाकांक्षाएं लाद देते हैं. इससे उनकी सृजन क्षमता मुरझा जाती है.
– ओशो
यदि हम इस संसार को वास्तविक शांति देना चाहते हैं, यदि हम सचमुच युद्ध के खिलाफ युद्ध करना चाहते हैं, तो हमें बच्चों से सीखना चाहिए.
-महात्मा गांधी
एक आधुनिक शिक्षक का काम जंगलों को काटना नहीं, बल्कि रेगिस्तान को सींचना है.
सीएस लेविस
बच्चों को शिक्षित किया जाना चाहिए, पर उन्हें खुद को शिक्षित करने के लिए भी छोड़ दिया जाना चाहिए.
एर्न्स्ट डीम्नेट