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डायबिटीज चुनें हेल्दी लाइफ स्टाइल
डायबिटीज पूरे विश्व में एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है. इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इससे हर आठ सेकेंड में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है. इसका कोई स्थायी इलाज भी नहीं. जीवनशैली में सुधार के जरिये ही इसे काबू किया जा सकता है. इसके प्रति […]
डायबिटीज पूरे विश्व में एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है. इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इससे हर आठ सेकेंड में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है. इसका कोई स्थायी इलाज भी नहीं. जीवनशैली में सुधार के जरिये ही इसे काबू किया जा सकता है. इसके प्रति जागरूकता लाने के लिए हर वर्ष 14 नवंबर को ‘वर्ल्ड डायबिटीज डे’ मनाया जाता है. विशेष जानकारी दे रहे हैं दिल्ली व पटना से हमारे एक्सपर्ट.
धूप से घटता है मधुमेह का खतरा
ठंड के दिनों में लोग धूप का आनंद उठाते हैं. डॉक्टर भी विटामिन डी की कमी को दूर करने के लिए धूप में बैठने की सलाह देते हैं. अब एक नये रिसर्च के मुताबिक जिन लोगों को डायबिटीज होने की आशंका है या प्री-डायबिटीज है, उनके लिए भी धूप में रहना फायदेमंद हो सकता है. हाल ही में हुई नयी रिसर्च से पता चला है कि धूप में बैठने से मोटापा व डायबिटीज का खतरा कम होता है. धूप में कई स्पेक्ट्रम होते हैं, जिनमें अल्ट्रावायलेट, विजिबल लाइट और इन्फ्रारेड प्रमुख हैं. वैज्ञानिकों ने अल्ट्रावायलेट किरणों के प्रभाव पर शोध किया है. यह प्रयोग चूहों पर हुआ है. प्रयोग के बाद चूहे में टाइप 2 डायबिटीज के लक्षणों को घटते हुए देखा गया.
असल में त्वचा के धूप के संपर्क में आने के बाद इससे नाइट्रिक ऑक्साइड गैस निकलती है. यह मेटाबॉलिज्म और वेट गेन को कंट्रोल करता है. वैज्ञानिकों ने एक क्रीम में नाइट्रिक ऑक्साइड को मिला कर उसे त्वचा पर लगाया और वही रिजल्ट देखने को मिला. यही प्रयोग विटामिन डी के साथ भी किया गया, लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकला. चूहों पर किये गये प्रयोग से यह बात सामने आयी कि कम मात्र में धूप लेने से टाइप 2 डायबिटीज का खतरा घटता है. हालांकि अभी यह देखना बाकी है कि इस प्रयोग का इनसानों पर क्या परिणाम आता है. यदि इनसान पर भी यही परिणाम दिखता है, तो डायबिटीज रोगियों के उपचार में धूप की अहम भूमिका होगी.
प्रेग्नेंसी में बचें गैस्टेशनल डायबिटीज से
गर्भावस्था में हॉर्मोनल परिवर्तन के कारण कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति कम संवेदशील हो जाती हैं. ऐसे में कभी-कभी शरीर को अधिक इंसुलिन की जरूरत होती है, लेकिन शरीर उतने इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है. इससे ब्लड शूगर लेवल बढ़ जाता है. इसी को गैस्टेशनल डायबिटीज कहते हैं.
नवजात में आ सकती है विकृति
इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज (आइडीडीएम) के 5-10 प्रतिशत मामलों में कॉन्जेनिटलमालफॉरमेशन (बच्चों में होनेवाली जन्मजात विकृति) होने की आशंका होती है. बच्चे का वजन चार किलो या उससे अधिक हो सकता है. जन्म के 28 दिनों के भीतर बच्चों में हाइपोग्लेसेमिया, रेस्पायरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम, हाइपोकैल्सीमिया होने की आशंका होती है.
ऐसे पहचानें लक्षण
आमतौर पर गर्भवती में मधुमेह के लक्षण पता नहीं चलते. लेकिन अधिक मोटापा, बार-बार शौच जाना, भूख लगना आदि सामान्य लक्षण दिखते हैं. इसे लोग कई बार इगAोर कर देते हैं. ऐसे में आठ से नौ सप्ताह पर नियमित रूप से ग्लूकोज स्क्रीनिंग टेस्ट करवाते रहें. अगर इस दौरान शूगर लेवल असमान्य होने का पता लगता है, तब गर्भवती को जीटीटी (ग्लूकोज टॅालरेन्स टेस्ट) करानी पड़ती है. इसके शूगर लेवल समान्य रखने में मदद मिलती है और बच्चे को किसी तरह का खतरा नहीं होता है.
इंसुलिन नहीं है हानिकारक
कई लोगों में यह गलत धारणा होती है कि इंसुलिन से बच्चे पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जबकि ऐसा नहीं है. इसके डोज को ब्लड शूगर के अनुसार एडजस्ट किया जाता है. शूगर लेवल अधिक रहने पर डिलिवरी तक महिला को सुबह, दोपहर, शाम को खाने के बाद इंसुलिन दी जाती है. इस मामले में दवा से बेहतर इंसुलिन है, क्योंकि दवा के साइड इफेक्ट का डर होता है. इंसुलिन से मां और बच्चा दोनों सुरक्षित रहते हैं.
इन बातों का रखें ध्यान
प्रेग्नेंसी में महिला को डॉक्टर से नियमित सलाह लेनी जरूरी है. 10 से 12 सप्ताह में जीटीटी (ग्लूकोज टॉलरेन्स टेस्ट) ग्लाइकोसोलेटेड हीमोग्लोबिन लेवल, अल्ट्रासोनोग्राफी, अल्फा फाइटोप्रोटीन के लेवल की जांच करानी चाहिए. डायबिटिक पेशेंट को 28 सप्ताह तक हर 15 दिन में ये जांच करवानी चाहिए. 28 सप्ताह के बाद साप्ताहिक जांच करानी चाहिए.
डिलिवरी के वक्त रखें ख्याल
डिलिवरी ऐसे स्थान पर होनी चाहिए जहां एनआइसीयू की बेहतर व्यवस्था हो. अनकंट्रोल डायबिटीज से इन्फेक्शन और फिर हाइड्रोफ्रोटाइल नामक बीमारी हो जाती है. यह बच्चे को भी हो सकती है. आमतौर पर डिलिवरी के बाद मधुमेह की समस्या खत्म हो जाती है.
प्रस्तुति : खुशबू
प्री-डायबिटीज में कैसा हो डायट
सुमिता कुमारी
डायटीशियन
डायबिटीज एंड ओबेसिटी
केयर सेंटर, पटना
प्री-डायबिटीज की अवस्था में ब्लड शूगर बढ़ता अवश्य है, लेकिन वह डायबिटीज जितना नहीं होता है. इस अवस्था में डायट का विशेष ख्याल रखना चाहिए, अन्यथा यह आगे चल कर डायबिटीज में बदल सकता है.
साबूत अनाज का सेवन करें
अनेक शोधों से यह साबित हुआ है कि जो लोग सप्ताह में मात्र तीन दिन भी साबूत अनाज का सेवन करते हैं, उन्हें टाइप 2 डायबिटीज का खतरा अन्य के मुकाबले एक तिहाई होता है. इसके लिए –
– एक कप साबूत अनाज रोज पानी में भिगोया हुआ खाएं.
– एक तिहाई कप पका ब्राउन राइस लें.
– आधा कप ओट धीमी आंच में पका.
नाश्ते में धीमी आंच में पकाया गया ओट लेना बेहतर विकल्प है. तेज या दो से पांच मिनट में पकाये गये ओट से सही पोषक तत्व प्राप्त नहीं होते हैं.
फॉलो करें डायट प्लान
इस प्लान के अनुसार डायट लेकर आप प्री-डायबिटीज को दूर रख सकते हैं.
समय पर ब्रेकफास्ट लें : जो लोग समय पर ब्रेकफास्ट नहीं लेते हैं, उनमें वजन बढ़ने की आशंका अधिक होती है. ओटमील, ताजे फल आदि आहार को ब्रेकफास्ट में शामिल करके इसे हेल्दी बनाया जा सकता है.
करें संतुलित आहार : डायट की प्लानिंग करते समय सभी प्रकार के आहारों को शामिल करें. इसमें साबूत अनाज, फल, सब्जियां और फैट एवं प्रोटीन के हेल्दी स्नेत को शामिल करें.
फलियों का सेवन करें : फलियों (बादाम, मूंगफली, काजू आदि) का सेवन करने से टाइप 2 डायबिटीज का खतरा कम होता है. इन्हें बिना पकाये खाना सबसे बेहतर माना जाता है. बिना तेल के हल्की पकायी गयी फलियां भी स्वास्थ्य के लिए अच्छी मानी जाती हैं.
मांस : डायबिटीज में मांस का सेवन कम-से-कम ही करना बेहतर होता है.
अल्कोहल : अल्कोहल का सेवन बिल्कुल न करें.
ट्रांस फैट का सेवन न करें : ट्रांस फैट के सेवन से हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ता है. इसलिए बेक किये हुए या प्रोसेस्ड भोजन से बचना चाहिए. यदि घर पर भी खुद से बेक किया हुआ भोजन ले रहे हैं, तो उसमें तेल की मात्र कम डालें.
ओमेगा 3 फैटी एसिड का सेवन : यह फैटी एसिड अखरोट, फ्लेक्स (अलसी) के बीज और बादाम में पर्याप्त मात्र में पाया जाता है. जितना संभव हो इनका सेवन करें.
काबरेहाइड्रेट का सही प्रकार : 2000 कैलोरी के आहार में लगभग 250 ग्राम काबरेहाइड्रेट होना चाहिए. जितना संभव हो सके अनप्रोसेस्ड काबरेहाइड्रेट खाएं, जैस-े सब्जियां, फल, साबूत अनाज और बीन्स आदि.
20 से 35 ग्राम फाइबर : अपने खान-पान में अधिक फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ लेने से ब्लड शूगर का स्तर घटाने में भी मदद मिलती है. फाइबर्स के अच्छे स्नेत हैं- सब्जियां, फल, चोकर युक्त अनाज और छिलकेवाली दालें आदि.
शूगर कम करने की महौषधि है दालचीनी का पानी
बढ़ते तनाव, मोटापा और कई अन्य कारणों से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है. इस रोग में ब्लड शूगर लेवल बढ़ जाने से ही अनेक परेशानियां होती हैं. कुछ घरेलू उपाय अपना कर इसे कम रखा जा सकता है.
– आंवला और हल्दी का चूर्ण बराबर मात्र में मिला कर सुबह-शाम पांच-पांच ग्राम पानी के साथ लें. इससे बढ़े हुए रोग में भी अच्छे परिणाम मिलते हैं.
– मेथी के बीज पांच ग्राम रात भर पानी में भिगो दें ,फिर इसे पीस लें एवं छान कर पीएं. अवश्य लाभ होगा.
– करेला का 50 ग्राम रस नित्य पीने से लाभ मिलता है.
– दालचीनी 40 ग्राम एक लीटर पानी में रात भर भिगो दें, इसे पीस कर और छान कर दिन में पीएं. यह नुसखा शूगर कम करने की महौषधि है. जरूर आजमाएं.
– जामुन के पांच ताजा पत्ते पानी में पीस कर छान कर सुबह-शाम पीने से मधुमेह में काफी फायदा होता है.
– तुलसी,नीम और बेल के सूखे पत्ते बराबर मात्र में लेकर चूर्ण बना लें और शीशी में भर लें. चूर्ण पांच ग्राम की मात्र में सुबह-शाम पानी के साथ लेने से लाभ होता है.
– सोयाबीन, जौ और चने के मिश्रित आटे की रोटी नियमित खाने से शूगर का स्तर कम करने में मदद मिलती है.
यहां होता है मधुमेह का श्रेष्ठ इलाज
चेन्नई के रोयापुरम स्थित इस मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल की स्थापना 1954 में एक सामान्य हॉस्पिटल के तौर पर हुई थी. 1971 में इसे डायबिटीज हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर के रूप में विकसित किया गया. भारत के अलावा यहां श्रीलंका, सिंगापुर और अरब देशों से भी लोग इलाज के लिए आते हैं. हॉस्पिटल का उद्देश्य डायबिटीज मरीजों को बेहतर चिकित्सा उपलब्ध कराना और एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित करना है. यहां पर 100 बेड सिर्फ डायबिटीज के मरीजों के लिए रखे गये हैं. पिछले कुछ वर्षो में यह डायबिटीज के लिए सबसे बड़े हॉस्पिटल के रूप में उभर कर सामने आया है. अब तक यहां लगभग दो लाख लोगों का इलाज किया जा चुका है. यहां कम खर्च में विश्वस्तरीय सुविधाएं प्रदान की जाती हैं.
इलाज के लिए अत्याधुनिक उपकरणों के साथ ही स्टेट ऑफ द आर्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. डायबिटीज और उससे होनेवाले रोगों के इलाज की विशेष सुविधाएं, जैसे- डायबिटीज केयर एंड एजुकेशन, डायबिटीज हार्ट इवेलुएशन, प्रिवेंटिव डायबिटीज फूड केयर, आइ केयर, एप्रोप्रिएट डेंटल केयर, डायबिटिक न्यूरोपैथी क्लिनिक, न्यूट्रिशन एंड डायट काउंसिलिंग, फ्रोजेन शोल्डर आदि के अलावा डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए योग क्लास की भी सुविधा है.
बच्चों के लिए खास क्लिनिक
बच्चों में टाइप-1 डायबिटीज सबसे कॉमन है. उनके लिए यहां विशेष क्लिनिक की व्यवस्था है, जहां खास ख्याल रखा जाता है. बेस्ट केयर के लिए यहां प्रशिक्षित नर्सो और बेहतरीन डायटीशियंस की टीम हर वक्त मौजूद रहती है.
प्रस्तुति : पूजा कुमारी
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