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आर्थराइटिस रोगियों में होता है टारसल टनल सिंड्रोम
डॉ नीरज प्रकाश सीनियर कंसलटेंट फिजियो एंड एक्यूप्रेशर थेरेपिस्ट, पटना मो : 9693281781 टारसल टनल एक पतला स्पेस है, जो पैर के भीतरी भाग में एंकल बोन अर्थात् भीतरी टखना के पास स्थित होता है. यह फ्लेक्सर रेटिनाकुलम नामक एक मोटे लिगामेंट से कवर रहता है. टारसल टनल के पोस्टीरियर टिबियल आर्टरी, टिबियल नर्व एवं […]
डॉ नीरज प्रकाश
सीनियर कंसलटेंट
फिजियो एंड एक्यूप्रेशर थेरेपिस्ट, पटना
मो : 9693281781
टारसल टनल एक पतला स्पेस है, जो पैर के भीतरी भाग में एंकल बोन अर्थात् भीतरी टखना के पास स्थित होता है. यह फ्लेक्सर रेटिनाकुलम नामक एक मोटे लिगामेंट से कवर रहता है. टारसल टनल के पोस्टीरियर टिबियल आर्टरी, टिबियल नर्व एवं टिबियालिस पोस्टीरियर, एफडीए एवं एफएचएल मसल्सके टेंडन एक बंडल के रूप में पास करते हैं. टारसल टनल में पोस्टीरियर टिबियल नर्व तीन विभाग में विभाजित होते हैं –
– कैल्केनियल नर्व : ये हील अर्थात् एड़ी तक जाते हैं.
– मिडियल एवं लेटरल प्लांटर नर्व : ये तलवे की मांसपेशियों तक जाते हैं.
यदि किसी कारणवश जैसे-सूजन से टनल का स्पेस घटता है, तो नर्व पर दबाव पड़ने लगता है एवं मरीज को पैर के अंदर के भाग से लेकर पंजे के नीचे के हिस्से तक दर्द एवं झनझनाहट महसूस होती है.
– यह महिलाओं में विशेषत: गर्भवती महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है. लगातार खड़ा होकर कार्य करनेवाले, उछल-कूद करनेवाले, स्पोर्ट्सपर्सन एवं ज्यादा चलनेवाले लोग इससे ज्यादा ग्रसित होते हैं. सूजन एवं आर्थराइटिस से पीड़ित बुजुर्गो में यह समस्या पायी जाती है.
– जिनके पंजे का आर्च फ्लैट होता है, उनमें इस नर्व पर ज्यादा दबाव पड़ता है. नर्व पर दबाव पड़ने के कारण ब्लड सप्लाइ कम हो जाती है. इस कारण मरीज को पैर में दर्द, झनझनाहट एवं भारीपन का एहसास होता है.
ये हैं प्रमुख कारण
मुख्य कारण अज्ञात हैं, पर कुछ फैक्टर इस प्रकार हैं-एड़ी में मोच या फ्रैक्चर के कारण सूजन, फ्लैट फीट, चोट लगना, बोन ट्यूमर, सिस्ट, इंफ्लेमेशन, न्यूरोफाइब्रोमा का बनना, रूमेटॉयड आर्थराइटिस, उछल-कूद करना, लगातार खड़ा होना, वेरिकोज वेंस, न्यूरोपैथी आदि.
इलाज में देरी बढ़ाती है तकलीफ
यह समस्या होने पर शीघ्र इसका इलाज कराएं अन्यथा तकलीफ बढ़ जाती है. इसके लिए आप ऑर्थोपेडिक या न्यूरोफिजिशियन एवं फिजियोथेरेपिस्ट से संपर्क करें. डॉक्टर आवश्यक होने पर एक्स-रे, एमआरआइ, एनसीवी कराने की सलाह देते हैं एवं एंटीइंफ्लेमेटरी, ऐनेस्थेटिक या कॉर्टिकोस्टेरॉयड दवा लेने की सलाह देते हैं.
फिजियोथेरेपी मैनेजमेंट : इसके अंतर्गत फिजियोथेरेपिस्ट आइस एवं अल्ट्रासॉनिक थेरेपी, पैराफिन, टेंस आदि चिकित्सकीय मशीनों से दर्द एवं सूजन का इलाज करते हैं.
अन्य परामर्श : पैर को न्यूट्रल अवस्था में रखें. फ्लैट फीट के लिए आर्च सपोर्ट लगाएं, चौड़ा जूता पहनें, पंजे को बाहर, भीतर एवं नीचे की ओर ज्यादा न मोड़ें, ब्रेस एवं फुटवियर का इस्तेमाल करें, स्पोर्ट्स पर्सन स्ट्रेचिंग के बाद खेलने जाएं, सोते वक्त पैर के नीचे तकिया लगाकर सो सकते हैं.
रिस्क फैक्टर : मोटापा, जोड़ों में इंफ्लेमेशन होना, गर्भावस्था, टाइट जूता पहनना, डायबिटीज, थायरॉयड की समस्या, बास्केटबॉल, वॉलीबॉल, फुटबॉल आदि खेलना, कार/गाड़ी ज्यादा चलानेवाले लोगों में इस रोग का खतरा ज्यादा होता है.
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