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सिरदर्द दूर करेगा इ-एस्प्रिन

माइग्रेन में काफी तेज सिर दर्द होता है. यह दर्द चेहरे पर भी महसूस होता है. कभी-कभी दर्द इतना तेज हो जाता है कि एस्प्रिन के सेवन से भी कोई फायदा नहीं हो पाता है. वैज्ञानिकों ने दर्द से निबटने के लिए एक नयी तकनीक ईजाद की है. इस तकनीक को ‘इलेक्ट्रॉनिक एस्प्रिन’ नाम दिया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 22, 2014 4:04 PM
माइग्रेन में काफी तेज सिर दर्द होता है. यह दर्द चेहरे पर भी महसूस होता है. कभी-कभी दर्द इतना तेज हो जाता है कि एस्प्रिन के सेवन से भी कोई फायदा नहीं हो पाता है. वैज्ञानिकों ने दर्द से निबटने के लिए एक नयी तकनीक ईजाद की है. इस तकनीक को ‘इलेक्ट्रॉनिक एस्प्रिन’ नाम दिया गया है.
यह ऐसी तकनीक है, जिसकी मदद से यूजर सिर दर्द के लक्षण दिखाई देते ही स्वयं इसके न्यूरो सिगAल को रोक सकता है. इस सिस्टम में एक स्थायी नर्व स्टीम्यूलेटिंग डिवाइस होता है, जिसे ऊपरी मसूड़े में इम्प्लांट किया जाता है. यह वह हिस्सा होता है, जो सिर दर्द से सबसे पहले प्रभावित होता है. यह इम्प्लांट एक रिमोट कंट्रोल से जुड़ा होता है. जब भी मरीज को दर्द का एहसास होता है, मरीज रिमोट को गाल के पास ले जाता है. इससे निकलनेवाली तरंगें एसपीजी नर्व को स्टिम्यूलेट करती हैं और दर्द उत्पन्न करनेवाले न्यूरोट्रांसमीटर को ब्लॉक कर देती हैं.
इस इम्प्लांट का आकार एक बादाम जितना है. इसे लगाना उतना ही आसान है, जितना किसी दांत को लगाना होता है. इस डिवाइस को यूरोप की कंपनी ऑटोमेटिक टेक्नोलॉजी ने बनाया है. इसे यूरोप में मान्यता भी मिल चुकी है. कंपनी अमेरिका में मान्यता मिलने का इंतजार कर रही है. उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही यह डिवाइस बाजार में उपलब्ध होगा. इसके आने से माइग्रेन रोगी लाभान्वित होंगे.
वायु विकार में लाभकारी है
वायु निष्कासनासन
धर्मेद्र सिंह
एमए योग मनोविज्ञान, बिहार योग विद्यालय-मुंगेर
गुरु दर्शन योग केंद्र-रांची
योग मित्र मंडल-रांची
वायु निष्कासनासन भी पवनमुक्तासन भाग-3 के अंतर्गत आनेवाला एक और अत्यंत महत्वपूर्ण अभ्यास है. इस अभ्यास से तंत्रिकाओं, जांघों, घुटनों, कंधों, भुजाओं, साइटिका नर्भ तथा गरदन की पेशियों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है.
अभ्यास की विधि : दोनों पैरों के बीच लगभग दो फुट की दूरी रखते हुए उकड़ूं बैठे. दोनों हाथों की उंगलियों को तलवों के नीचे और अंगूठों को ऊपर रखते हुए पंजों को अंदर की तरफ से पकड़कर कोहनियों को थोड़ा सा मोड़कर भुजाओं के ऊपरी भाग से घुटनों के भीतरी भाग पर दबाव डालें. अभ्यास के दौरान आंखें खुली रहेगी. सिर को पीछे ले जाते हुए श्वास अंदर की तरफ ले. अपनी दृष्टि ऊपर की ओर रखें. यह प्रारंभिक स्थिति है. सिर को और अधिक पीछे की ओर ले जाने का प्रयास करते हुए अपनी श्वास को तीन सेकंड तक अंदर की तरफ रोकें. श्वास छोड़ते हुए घुटनों को सीधा करें. नितंब को ऊपर उठाएं और सिर को घुटनों की ओर आगे झुकाएं.
अब मेरुदंड को और अधिक झुकाते हुए तीन सेकेंड तक श्वास रोकें. अधिक जोर न लगाएं. श्वास लेते हुए प्रारंभिक स्थिति में लौट आएं. यह एक चक्र हुआ. इस अभ्यास को पांच से आठ चक्र शुरू में करना चाहिए और कुछ दिनों में इस अभ्यास को अपनी क्षमता के अनुसार 10 से 5 चक्र तक बढ़ाया जा सकता है. किंतु इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इस अभ्यास के दौरान शारीरिक और मानसिक रूप से स्वयं को तनाव से मुक्त रखें और ज्यादा जोर लगाकर या झटके के साथ इस अभ्यास को न करें. अभ्यास के दौरान कपड़ों का ढीला होना अत्यंत आवश्यक है. इन अभ्यासों को विशेषज्ञ की मदद से सजगतापूर्वक करना चाहिए.
श्वसन : जब पंजों के बल जमीन पर उकड़ूं बैठते हैं, उस समय अपनी श्वास को अंदर की तरफ लें और अंदर ही रोकें. जब ऊपर की तरफ उठना शुरू करें, अपनी श्वास को धीरे-धीरे बाहर की तरफ छोड़ें और बाहर की तरफ श्वास रोकें.
सजगता : अभ्यास के दौरान सजगता अपनी श्वसन क्रिया के ऊपर, अभ्यास की गति के ऊपर, प्रारंभिक स्थिति में अपनी गरदन के खिंचाव के प्रति और उठी हुई स्थिति में मेरुदंड के झुकाव पैर के पिछले हिस्से में होनेवाली खिंचाव पर, अपने दोनों हाथों और कंधों में होनेवाली खिंचाव पर एवं अपनी पेट के संकुचन पर रखें.
सीमाएं : वायु निष्कासनासन का अभ्यास उन लोगों को नहीं करना चाहिए, जिनको उच्च रक्तचाप या हृदय रोग हो. उन लोगों को विशेष रूप से इन अभ्यासों से बचना चाहिए, जिन्हें स्लीप डिस्क या कमर का दर्द हो. जिन लोगों को गंभीर रूप से सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस की समस्या हो, उनको भी यह अभ्यास नहीं करना चाहिए.
अभ्यास टिप्पणी : उच्च स्तरीय अभ्यासी हाथों की उंगलियां पैरों के सामने के हिस्से के नीचे रख सकते हैं. अभ्यास के दौरान शांभवी मुद्रा भी की जा सकती है इससे संपूर्ण तंत्रिका तंत्र को पोषण मिलता है.
लाभ
नमस्कारासन की भांति इस आसन का लाभ प्रभाव तंत्रिकाओं तथा जांघों, घुटनों के पीछे की नसों पर, कंधों, भुजाओं और गरदन की पेशियों पर पड़ता है. श्रोणी के अंगों और पेशियों की मालिश होती है. यह अभ्यास जिन्हें वेरिकोज वेंस की समस्या रहती है, उनके लिए भी काफी लाभकारी है. यह अभ्यास संपूर्ण मेरुदंड और दोनों भुजाओं तथा पैरों की पेशियों को बराबर खिंचाव प्रदान करता है. सभी कशेरूकाएं और जोड़ एक-दूसरे से खिंचे जाते हैं, ताकि उनके बीच का दबाव संतुलित हो जाये. साथ ही मेरुदंड की सभी तंत्रिकाओं व उनके आवरणों में खिंचाव आता है और उनका पोषण होता है. यह वायु विकार में भी अत्यंत लाभकारी अभ्यास है.
एक्यूप्रेशर के प्रभाव
डॉ सर्वदेव प्रसाद गुप्ता
अध्यक्ष, बिहार एक्यूप्रेशर योग कॉलेज पटना
पिछले अंक में एक्यूप्रेशर बिंदु पर दबाव देने से होनेवाले दो प्रकार के सब्जेक्टिब प्रभावों एवं एक्यूबिंदुओं ढ-6 एवं र3-36 के गुणों पर चर्चा की गयी थी. आज छ: प्रकार के ऑब्जेक्टिव प्रभावों में से मात्र दो आब्जेक्टिव प्रभावों- एनालजेसिक (पेन रिलिविंग) एंड सेडेशन तथा एक्यूबिंदु छक-4, छ4-7 के गुणों पर चर्चा प्रस्तुत है.
एक्यूबिंदुओं पर दबाव के प्रभाव
एनालजेसिक (पेन रिलिविंग) यानी दर्द निवारक प्रभाव : यह एक्यूप्रेशर की बेहोशी का शारीरिक आधार होता है यानी पेन थ्रेसहाल्ड को बढ़ा देता है. यह जोड़ों का दर्द, दांत दर्द, सिर दर्द, कमर दर्द, आदि दर्दो का निवारण करता है.
सेडेशन : कुछ बिंदुओं पर दबाव देने पर शांति की अनुभूति होती है. चिकित्सा के समय इलेक्ट्रोइसेफालोग्राम में डेल्टा एवं थिटा तरंगों की गतिविधि कम हो जाती है. इन प्रभावों से अनिद्रा, बेचैनी, मानसिक समस्याओं का निराकरण होता है.
छक-4 : यह बड़ी आंत चैनल पर चौथा एक्यूबिंदु है. यह उत्तम एनालजेसिक (दर्द निवारक) बिंदु है, जो धनात्मक उर्जा का उद्गम स्थान है. यह अंगूठा, तर्जनी एवं कलाई जोड़, फेफड़ा में ऊर्जा के बहाव में आयी अनियमितता के कारण दर्द या ज्ञानेद्रियां संबंधी रोगों को दूर करता है.
छ4-7 : यह फेफड़ा चैनल पर 7वां बिंदु है, जो सिर के पीछे के भाग में होने वाले दर्द, गरदन में अकड़न, कड़ापन, सरवाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, छाती के पिछले हिस्से में दर्द एवं फेफड़ा संबंधी रोगों को दूर करने में उत्तम एक्यूबिंदु है.

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