वायु विकार में लाभकारी है वायु निष्कासनासन

वायु निष्कासनासन भी पवनमुक्तासन भाग-3 के अंतर्गत आनेवाला एक और अत्यंत महत्वपूर्ण अभ्यास है. इस अभ्यास से तंत्रिकाओं, जांघों, घुटनों, कंधों, भुजाओं, साइटिका नर्भ तथा गरदन की पेशियों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है. अभ्यास की विधि : दोनों पैरों के बीच लगभग दो फुट की दूरी रखते हुए उकड़ूं बैठे. दोनों हाथों की उंगलियों को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 22, 2014 4:14 PM
वायु निष्कासनासन भी पवनमुक्तासन भाग-3 के अंतर्गत आनेवाला एक और अत्यंत महत्वपूर्ण अभ्यास है. इस अभ्यास से तंत्रिकाओं, जांघों, घुटनों, कंधों, भुजाओं, साइटिका नर्भ तथा गरदन की पेशियों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है.
अभ्यास की विधि : दोनों पैरों के बीच लगभग दो फुट की दूरी रखते हुए उकड़ूं बैठे. दोनों हाथों की उंगलियों को तलवों के नीचे और अंगूठों को ऊपर रखते हुए पंजों को अंदर की तरफ से पकड़कर कोहनियों को थोड़ा सा मोड़कर भुजाओं के ऊपरी भाग से घुटनों के भीतरी भाग पर दबाव डालें. अभ्यास के दौरान आंखें खुली रहेगी. सिर को पीछे ले जाते हुए श्वास अंदर की तरफ ले.
अपनी दृष्टि ऊपर की ओर रखें. यह प्रारंभिक स्थिति है. सिर को और अधिक पीछे की ओर ले जाने का प्रयास करते हुए अपनी श्वास को तीन सेकंड तक अंदर की तरफ रोकें. श्वास छोड़ते हुए घुटनों को सीधा करें. नितंब को ऊपर उठाएं और सिर को घुटनों की ओर आगे झुकाएं.
अब मेरुदंड को और अधिक झुकाते हुए तीन सेकेंड तक श्वास रोकें. अधिक जोर न लगाएं. श्वास लेते हुए प्रारंभिक स्थिति में लौट आएं. यह एक चक्र हुआ. इस अभ्यास को पांच से आठ चक्र शुरू में करना चाहिए और कुछ दिनों में इस अभ्यास को अपनी क्षमता के अनुसार 10 से 5 चक्र तक बढ़ाया जा सकता है. किंतु इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इस अभ्यास के दौरान शारीरिक और मानसिक रूप से स्वयं को तनाव से मुक्त रखें और ज्यादा जोर लगाकर या झटके के साथ इस अभ्यास को न करें. अभ्यास के दौरान कपड़ों का ढीला होना अत्यंत आवश्यक है. इन अभ्यासों को विशेषज्ञ की मदद से सजगतापूर्वक करना चाहिए.
श्वसन : जब पंजों के बल जमीन पर उकड़ूं बैठते हैं, उस समय अपनी श्वास को अंदर की तरफ लें और अंदर ही रोकें. जब ऊपर की तरफ उठना शुरू करें, अपनी श्वास को धीरे-धीरे बाहर की तरफ छोड़ें और बाहर की तरफ श्वास रोकें.
सजगता : अभ्यास के दौरान सजगता अपनी श्वसन क्रिया के ऊपर, अभ्यास की गति के ऊपर, प्रारंभिक स्थिति में अपनी गरदन के खिंचाव के प्रति और उठी हुई स्थिति में मेरुदंड के झुकाव पैर के पिछले हिस्से में होनेवाली खिंचाव पर, अपने दोनों हाथों और कंधों में होनेवाली खिंचाव पर एवं अपनी पेट के संकुचन पर रखें.
सीमाएं : वायु निष्कासनासन का अभ्यास उन लोगों को नहीं करना चाहिए, जिनको उच्च रक्तचाप या हृदय रोग हो. उन लोगों को विशेष रूप से इन अभ्यासों से बचना चाहिए, जिन्हें स्लीप डिस्क या कमर का दर्द हो. जिन लोगों को गंभीर रूप से सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस की समस्या हो, उनको भी यह अभ्यास नहीं करना चाहिए.
अभ्यास टिप्पणी : उच्च स्तरीय अभ्यासी हाथों की उंगलियां पैरों के सामने के हिस्से के नीचे रख सकते हैं. अभ्यास के दौरान शांभवी मुद्रा भी की जा सकती है इससे संपूर्ण तंत्रिका तंत्र को पोषण मिलता है.
लाभ
नमस्कारासन की भांति इस आसन का लाभ प्रभाव तंत्रिकाओं तथा जांघों, घुटनों के पीछे की नसों पर, कंधों, भुजाओं और गरदन की पेशियों पर पड़ता है. श्रोणी के अंगों और पेशियों की मालिश होती है. यह अभ्यास जिन्हें वेरिकोज वेंस की समस्या रहती है, उनके लिए भी काफी लाभकारी है. यह अभ्यास संपूर्ण मेरुदंड और दोनों भुजाओं तथा पैरों की पेशियों को बराबर खिंचाव प्रदान करता है. सभी कशेरूकाएं और जोड़ एक-दूसरे से खिंचे जाते हैं, ताकि उनके बीच का दबाव संतुलित हो जाये. साथ ही मेरुदंड की सभी तंत्रिकाओं व उनके आवरणों में खिंचाव आता है और उनका पोषण होता है. यह वायु विकार में भी अत्यंत लाभकारी अभ्यास है.

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