आंखों को नयी शक्ति देता है योग
धर्मेद्र सिंह एमए योग मनोविज्ञान, बिहार योग विद्यालय-मुंगेर गुरु दर्शन योग केंद्र-रांची योग मित्र मंडल-रांची हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं हमारी आंखें. किसी भी कारण से आंखों की पेशियों की क्षमता में आयी कमी को योग के जरिये दूर किया जा सकता है. नियमित अभ्यास से दृष्टि दोष दूर होते हैं […]
धर्मेद्र सिंह
एमए योग मनोविज्ञान, बिहार योग विद्यालय-मुंगेर
गुरु दर्शन योग केंद्र-रांची
योग मित्र मंडल-रांची
हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक हैं हमारी आंखें. किसी भी कारण से आंखों की पेशियों की क्षमता में आयी कमी को योग के जरिये दूर किया जा सकता है. नियमित अभ्यास से दृष्टि दोष दूर होते हैं और चश्मा भी उतर सकता है. आंखों की देखभाल के लिए कुछ आसान यौगिक अभ्यास किये जा सकते हैं. इनके बारे में विस्तार से बता रहे हैं हमारे योग विशेषज्ञ.
अपनी दृष्टि में सुधार लाने के लिए कई लोग चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस लगाते हैं. वास्तव में चश्मे से दृष्टि दोष दूर तो होता नहीं, बल्कि समस्या बढ़ ही जाती है.
आंखों की समस्या में प्रमुख कारण हैं- कृत्रिम और मद्धिम प्रकाश, देर तक टीवी देखना, पौष्टिक भोजन न लेना, देर तक कंप्यूटर पर कार्य करने से आंखों की पेशियों की क्षमता में कमी, मानसिक तनाव आदि. योग कहता है यदि पढ़ना प्रारंभ करने के पूर्व आंखों में मानसिक या पेशीय तनाव महसूस करें, तो कुछ मिनटों के लिए ‘शशांकासन’ करना लाभप्रद होगा. माना जाता है कि प्रात: काल या सूर्यास्त के समय घास, बालू अथवा खुली जमीन पर खाली पैर चलने से नेत्रों पर लाभदायक प्रभाव पड़ता है.
उपचारात्मक योगाभ्यास : ग्लूकोमा, ट्रैकोमा (रोहा) और मोतियाबिंद जैसे रोगों को छोड़ कर सबसे प्रचलित नेत्र दोषों का संबंध आंखों की पेशियों की क्रियागत त्रुटियों से होता है. नेत्र संबंधी व्यायामों को नियमित धैर्य और लगन के साथ करना चाहिए. तुरंत सुधार की आशा नहीं करनी चाहिए. नियमित यौगिक जीवन पद्धति अपना कर दृष्टि दोष दूर किया जा सकता है. चश्मे का नंबर भी कम हो सकता है.
अभ्यास की तैयारी : यौगिक अभ्यास शुरू करने के पूर्व आंखों में ठंडे जल के कुछ छींटे डालना लाभप्रद है. दस बार ऐसा करने के पश्चात योग का अभ्यास प्रारंभ करना चाहिए. इस प्रक्रिया से आंखों की पेशियों में रक्त संचार में वृद्धि होगी और आंखों को पोषण प्राप्त होगा.
क्या हैं सीमाएं : जिन्हें नेत्र संबंधी गंभीर रोग या दृष्टि दोष, जैसे- ग्लूकोमा, रोहा, मोतियाबिंद, दृष्टि पटल विलगन, दृष्टि पटलीय धमनी अथवा शिरावरोध, कंजक्टिवाइटिस (आंख आना) हो, वैसे लोग किसी नेत्र विशेषज्ञ से सलाह लेकर ही अभ्यास करें. सिर के बल किये जानेवाले आसन और कुंजल क्रिया इन रोगों की अवस्था में सर्वथा वर्जित है. यौगिक जीवन प्रणाली और सुपाच्य शाकाहारी भोजन से निश्चित रूप से लाभ पहुंचता है.
अभ्यास टिप्पणी : नेत्र से संबंधित अभ्यास हमेशा क्रमानुसार ही करने चाहिए. इस समूह के सारे अभ्यास दिये गये क्रमानुसार प्रात: एक बार और शाम में एक बार करना चाहिए. महत्वपूर्ण बात है कि अभ्यास काल में पूर्णत: तनाव रहित और शिथिल रहना चाहिए. अभ्यास के दौरान अधिक जोर न लगाएं, क्योंकि इससे नेत्रों को थकान हो सकती है.
प्रत्येक अभ्यास के बाद नेत्रों को बंद कर लगभग आधा मिनट विश्रम देना चाहिए. आंखों के लिए मुख्य रूप से छह प्रकार के अभ्यास हैं. इन अभ्यासों को क्रमानुसार आगे के लेखों में मैं प्रस्तुत करता रहूंगा. इस अभ्यास श्रृंखला में पहला अभ्यास है- आंखों पर हथेलियां रखना.
अभ्यास की विधि : शांत माहौल में स्थान पर बैठ जाएं. आंखों को बंद कर लें. दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में कस कर रगड़ें. गरम हो जायें, तो उन्हें धीरे से अपनी बंद आंखों की पलकों पर रखें. अनुभव करें कि ऊर्जा हाथों से निकल कर आंखों में जा रही है और आंखों की पेशियां तनाव मुक्त हो रही हैं. जब तक हथेलियों की गरमी आंखों द्वारा अवशोषित न हो, तब तक हथेलियों को आंखों पर ही रखे रहें. फिर आंखों को बंद रखते हुए हथेलियों को नीचे कर लें. पुन: क्रिया को दोहराएं. याद रखें, नेत्रों को हथेलियों से ढकना है न कि उंगलियों से. इसे तीन बार करें.
दूसरी विधि : आंखों को खुला रखते हुए बैठें. पलकों को जल्दी-जल्दी 10 बार झपकाएं. अब आंखों को बंद कर 20 सेकेंड तक विश्रम करें. फिर जल्दी-जल्दी 10 बार पलकें झपकाएं, फिर आंखें बंद कर विश्रम करें. इस प्रक्रिया को पांच बार दुहराएं.
अभ्यास टिप्पणी : सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सूर्य के समक्ष खड़े होकर अभ्यास करने से अधिक लाभ होता है. बंद पलकों पर पड़नेवाली उष्णता और प्रकाश के प्रति सजग रहें. ठीक सूर्योदय या सूर्यास्त के समय ही कुछ क्षणों के लिए सूर्य की ओर सीधा देखें, अन्यथा सूर्य की ओर कभी सीधा न देखें.
अभ्यास का लाभ : गरम हथेलियों से पलकों को ढकना आंखों की पेशियों को पुनर्जीवन प्रदान करता है. यह कॉर्निया और लेंस के बीच प्रवाहित जलीय द्रव का संचरण बढ़ाता है. इससे दृष्टि दोष में सुधार होता है. अक्सर दृष्टि दोष से पीड़ित लोग अनियमित और अस्वाभाविक ढंग से पलकें झपकाते हैं. आदतन इसका सीधा संबंध आंखों में तनाव की स्थिति से है. यह अभ्यास आंखों के स्नायुओं को विश्रंति प्रदान कर पलक झपकाने की सहज क्रिया को स्वाभाविक रूप में लाने में बेहद सहायक होता है.