सब रिश्तों की एक सीमा मगर दोस्ती सबसे परे

वीना श्रीवास्तव लेखिका व कवयित्री भाई-बहनों की अपनी अलग जगह है, लेकिन दोस्तों का भी अपना अलग स्थान है. अगर भाई-बहन न हों, तो उनकी कमी एक अच्छा दोस्त पूरी कर सकता है. इसलिए अपने बच्चों को इतने अच्छे दोस्त देकर जाओ, जिससे कभी उन्हें भाई-बहनों की कमी न खले. उन्हें दोस्ती का मतलब समझाओ, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 18, 2014 11:28 AM

वीना श्रीवास्तव

लेखिका व कवयित्री

भाई-बहनों की अपनी अलग जगह है, लेकिन दोस्तों का भी अपना अलग स्थान है. अगर भाई-बहन न हों, तो उनकी कमी एक अच्छा दोस्त पूरी कर सकता है. इसलिए अपने बच्चों को इतने अच्छे दोस्त देकर जाओ, जिससे कभी उन्हें भाई-बहनों की कमी न खले. उन्हें दोस्ती का मतलब समझाओ, दोस्तों की अहमियत बताओ.

नीला बहू कोई अकेला नहीं होता और वैसे देखा जाये तो सबके होने के बावजूद हमें अकेले ही जीना पड़ता है. अपना परिवार ही अपने साथ होता है. भाई-बहनों का साथ केवल बचपन तक ही होता है. जहां बहनों की शादी हुई, वे दूर हो जाती हैं और भाई भी अपनी जॉब, अपने परिवार में रम जाते हैं. वहीं दूसरी तरफ हम ऐसे शहर चले जाएं जहां कोई अपना न हो, फिर भी वहां पराये, अजनबी अपने बन जाते हैं और जरूरत पड़ने पर वे ही हमारे साथ होते हैं. कभी-कभी मन इतना परेशान हो जाता है कि हम खुद को बिल्कुल अकेला महसूस करते हैं. कहा जाता है न कि ‘भीड़ में भी तन्हा दिल, न कोई राह, न कोई मंजिल’. सब लोगों के होते हुए हम एकाकीपन में जीते हैं.

अक्सर यह देखा जाता है कि सगे भाई-बहन जो एक साथ बचपन गुजारते हैं, लंबे समय तक साथ रहते हैं और दुख-सुख साथ सहते हैं, वे ही समय पर साथ नहीं देते. कभी शहर की दूरी की वजह से, तो कभी दिलों की दूरियों की वजह से. हर हाल में हम अकेले हैं. साथ देनेवाले हमें कम मिलते हैं, लेकिन मिल जरूर जाते हैं. इसलिए बच्चों को समझाना कोई बड़ी बात नहीं है.

तुम बताओ नीला और केवल नीला ही क्यूं सभी बहुएं बताएं कि उनकी शादी को सालों बीत गये, उनके घर से कितने लोग, कितनी बार मिलने आये. बहुएं तो कई बार गयी हैं. सभी के मायकेवाले बस घर के फंक्शंस में ही आये, लेकिन बहुओं की सहेलियां कई बार आयीं. हमारे बेटों के भी दोस्त हमेशा हर मुसीबत में खड़े रहते हैं. सभी बेटे-बहुएं इस समय यहां हैं. सभी लोग एक और बात सच-सच बताएं, सबने अपनी कितनी बातें आपस में भाई-बहनों से शेयर की और कितनी अपने दोस्तों से.

यह पूछने पर सभी चुप थे. फिर शारदा देवी ने कहा- इसमें ज्यादातर सभी ने अपनी सारी प्रॉब्लम अपने दोस्तों से जरूर शेयर की होंगी, चाहे अपने भाइयों से न बताया हो. हमारी बेटियां यहां नहीं हैं, लेकिन वे कितनी बार यहां आ पाती हैं. कभी हम लोग भी परेशानी में हुए, लेकिन वे नहीं आ सकीं. उनके घरों में भी तमाम समस्याएं होती होंगी, लेकिन उन्होंने कभी खुल कर नहीं बताया. वे अपने घर की, दिल की बातें अपनी फ्रेंड्स से जरूर बताती हैं, तो कौन ज्यादा अच्छा है? भाई-बहनों की अपनी अलग जगह है, लेकिन दोस्तों का भी अपना अलग स्थान है.

अगर भाई-बहन हैं, तो बहुत अच्छी बात है और न हों तो भाई-बहनों की कमी एक अच्छा दोस्त पूरी कर सकता है. इसलिए अपने बच्चों को इतने अच्छे दोस्त देकर जाओ, जिससे कभी उन्हें भाई-बहनों की कमी न खले. उन्हें दोस्ती का मतलब समझाओ, दोस्तों की अहमियत बताओ. उनको समझाओ कि सभी रिश्तों की एक सीमा होती है, लेकिन दोस्ती सीमा रेखा से परे है.

तभी माधुरी ने कहा-भाभी अभी शुभांगी के यहां तो आप यही कह रही थीं कि हमें अपनी समस्या को दोस्तों से शेयर करनी चाहिए. रिश्तेदार तो टांग खींचनेवाले होते हैं. नीला ने कहा- माधुरी मैं बातें शेयर करने से मना नहीं कर रही. मैं तो अकेले बच्चे को कंपनी देने के लिए उसका भाई-बहन होने की बात कर रही हूं, ताकि जब हम न रहें तो भी हमारी कमी वह अपने भाई-बहन के साथ पूरी कर सके.

नीला बहू, पहली बात तो माता-पिता की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता. दूसरी बात माता-पिता ही वह धागा हैं, जिससे बच्चे बंधे रहते हैं. धागा टूटने के बाद कुछ कहा नहीं जा सकता है. दूर क्या जाना, पायल और राशि बहू के माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे. उन्हें माता-पिता की याद तो आती है, लेकिन मायके कम जाती हैं. घर ही मां-पिता तक होता है. बहनों का अलग घर-संसार होता है और भाइयों का अलग. वह प्यार-दुलार माता-पिता के अलावा कोई नहीं दे पाता. पहले ये दोनो बहुएं अक्सर ही जाती थीं मगर अब साल में एक बार गरमी की छुट्टियों में जाती हैं. वह भी कभी-कभी नहीं जातीं. कारण मैं नहीं पूछूंगी. वह उनके घर का मामला है.

मैं दो बच्चों के खिलाफ भी नहीं हूं. हमारा और तुम्हारे बाबूजी का बहुत बड़ा परिवार था. हमारे भी छह बच्चे हैं, तुम लोगों को किस तरह पढ़ाया, हम ही जानते हैं. तब की जरूरतें और खर्चे इतने नहीं थे. आज की महंगाई में खाना, कपड़ा, रहना और पढ़ाई सभी कुछ बहुत महंगा है. ऐसे में हमें अपनी आय-साधन देखकर ही बच्चों के बारे में सोचना चाहिए. पारु ल-सागर को अगर लगता है कि वे दो बच्चों के बजाय एक बच्चे को बेहतर शिक्षा व जीवन दे पायेंगे तो इसमें गलत क्या है? बच्चे कितने ही क्यों न हों, पेरेंट्स के लिए सभी बराबर होते हैं. वे सभी को पढ़ाना चाहते हैं मगर हमारी आय ही उतनी न हो तो सबकी पेट भरने तक की जरूरतें पूरी करने से अच्छा है कि एक-दो बच्चों को भरपूर खिलाया जाये. बेटा-बेटी में फर्कनहीं होता. आजकल बेटा कहां साथ रहता है?

जॉब लगी तो भी दूर. यह समय की मांग और आम बात है. बच्चों को भाई-बहन देने के चक्कर में अपना परिवार बढ़ाना कोई बुद्धिमानी नहीं है. कल को उन्हीं बच्चों ने हमसे पलटकर पूछ लिया कि जब आप सबको अच्छे कॉलेज में नहीं पढ़ा सकते थे, तो जन्म क्यों दिया, तो क्या जवाब होगा हमारे पास? उस समय हम निरुत्तर होंगे.

(क्रमश:)

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