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प्रेग्नेंसी में बीपी कंट्रोल रखना जरूरी
प्रेग्नेंसी में कई बार महिलाओं का ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ जाता है. इसके कारण कई तरह की समस्याएं होती हैं, जो मां और शिशु के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं. ऐसे में लक्षणों को पहचान कर सावधानी जरूर रखना चाहिए. डॉ मोनिका अनंत असिस्टेंट प्रोफेसर (ओ एंड जी) एम्स, पटना प्रेग्नेंसी में ब्लड प्रेशर […]
प्रेग्नेंसी में कई बार महिलाओं का ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ जाता है. इसके कारण कई तरह की समस्याएं होती हैं, जो मां और शिशु के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं. ऐसे में लक्षणों को पहचान कर सावधानी जरूर रखना चाहिए.
डॉ मोनिका अनंत
असिस्टेंट प्रोफेसर (ओ एंड जी)
एम्स, पटना
प्रेग्नेंसी में ब्लड प्रेशर ज्यादा होना और साथ में पेशाब में प्रोटीन (एल्बुमिन) की मात्र बढ़ने से प्री-एक्लेंप्शिया का खतरा बढ़ता है. ऐसे में यदि सीजर (मिरगी) आ जाये, तो यह दोनों के लिए जानलेवा भी हो सकता है.
यदि प्रेग्नेंसी की किसी भी स्टेज में 140/90 हो तो यह गैस्टेशनल डायबिटीज है.प्रेग्नेंसी में बीपी बढ़ने के लक्षण : अधिकतर महिलाओं में इसके प्रारंभिक लक्षण नजर नहीं आते हैं. लेकिन कुछ प्रमुख लक्षण जैसे- वजन का बढ़ जाना (पैर या हाथ की अंगूठियां टाइट होना, चूड़ी टाइट होना), सिर दर्द होना, धुंधला दिखना, पेट में ऊपर की तरफ दर्द, पेशाब कम हो जाना, बेहोश हो जाना आदि. इनमें से एक भी लक्षण नजर आये, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें और जांच कराएं.
किन्हें है अधिक खतरा :
कम (18 वर्ष से कम) या अधिक उम्र (40 वर्ष से अधिक) उम्र में प्रेग्नेंसी त्न जिनका वजन अधिक हो
30 अधिक उम्र में पहली बार प्रेग्नेंट
पहली प्रेग्नेंसी में भी बीपी बढ़ा हो या प्री-एक्लेंप्शिया हुआ हो, तो रिस्क दो-तीन गुना बढ़ता है
यदि जुड़वां बच्चे हों त्न बच्चों में 10 साल से ज्यादा का अंतर हो
यदि हाइपरटेंशन, डायबिटीज या किडनी रोग हो.
समस्याएं : मां को एक्लेंप्शिया, ब्लीडिंग, रीनल फेल्योर, बच्चे की गर्भ में मृत्यु, समय से पहले डिलिवरी होना आदि.
इन बातों का रखें ध्यान
हाइपरटेंशन ठीक नहीं हो सकता है पर कंट्रोल हो सकता है. समस्या बढ़ने पर हॉस्पिटल ले जाना पड़ सकता है जांच : इसके लिए बीपी की जांच, पेशाब में प्रोटीन की जांच, किडनी फंक्शन टेस्ट, लिवर फंक्शन टेस्ट और क्लॉटिंग टेस्ट आदि करा सकते हैं.
– अल्ट्रासाउंड जरूरी जांच है. इससे बच्चे के बढ़ने की गति में कमी या वजन कम होने का पता चलता है. डॉप्लर अल्ट्रासाउंड से गर्भ में बच्चे का स्वास्थ्य पता चलता है. यदि अस्वस्थ है तो डिलिवरी जल्दी होनी चाहिए.
उपचार : यह दवाओं से कम हो सकता है पर इलाज सिर्फ डिलिवरी है. डिलिवरी का समय बीपी और बच्चे के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है. डिलिवरी सिजेरियन या नॉर्मल दोनों हो सकती है. पहली प्रेग्नेंसी में हाइपरटेंशन होने पर दूसरी प्रेग्नेंसी में भी इसका खतरा बढ़ जाता है.
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