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क्या है यह थकान

डॉ मनोज कुमार सिन्हा मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट-एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, न्यू गार्डिनर रोड हॉस्पिटल पटना अगर बिना काम किये ही आप थकावट महसूस करते हैं. वजन बढ़ने या घटने की खास वजह नहीं दिखती. हमेशा सुस्ती छायी रहती है, तो ये समस्याएं थायरॉयड संबंधी रोगों के कारण हो सकती हैं. रोग को लक्षण के आधार पर पहचान कर तुरंत […]

डॉ मनोज कुमार सिन्हा

मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट-एंडोक्रिनोलॉजिस्ट, न्यू गार्डिनर रोड हॉस्पिटल

पटना

अगर बिना काम किये ही आप थकावट महसूस करते हैं. वजन बढ़ने या घटने की खास वजह नहीं दिखती. हमेशा सुस्ती छायी रहती है, तो ये समस्याएं थायरॉयड संबंधी रोगों के कारण हो सकती हैं. रोग को लक्षण के आधार पर पहचान कर तुरंत उपचार लेना जरूरी है, वरना खतरा बढ़ सकता है. पूरी जानकारी दे रहे हैं दिल्ली व पटना से हमारे विशेषज्ञ.

थायरॉयड में समस्या के कारण कई रोग उत्पन्न होते हैं. वर्तमान में भारत में लगभग 4 करोड़ आबादी थायरॉयड रोग से ग्रसित हैं. महिलाओं में थायरॉयड रोग पुरुषों की अपेक्षा 5-8 गुना ज्यादा होने की आशंका होती है. ये रोग किसी भी उम्र में और किसी भी कारण से हो सकते हैं, जैसे-चोट, कोई रोग या कुपोषण आदि. अधिकतर मामलों में निमA समस्याएं हो सकती हैं-

थायरॉयड से हार्मोन का कम या अधिक स्नव होना.

थायरॉयड का असामान्य विकास त्नथायरॉयड में गांठ

थायरॉयड कैंसर

थायरॉयड ग्रंथी गले के सामने वाले भाग में स्थित एक विशेष ग्रंथी है, जिससे निकलनेवाले हार्मोन ळ4, ळ3 शरीर के सभी महत्वपूर्ण क्रियाओं, जैसे प्रोटीन, काबरेहाइड्रेट, वसा के मेटाबॉलिज्म में, हड्डियों की वृद्धि में, मस्तिष्क के विकास में महत्वपूर्ण योगदान हैं.

हॉर्मोन असंतुलन है समस्या

थायरॉयड हॉर्मोन के कम निकलने या ज्यादा निकलने से शरीर पर विभिन्न प्रभाव पड़ते हैं.

– हाइपोथायरॉयडिज्म : इस स्थिति में थायरॉयड हॉर्मोन का स्नव कम हो जाता है, जिससे शरीर पर निम्न प्रभाव पड़ते हैं-

– वजन का बढ़ना त्नचेहरे में सूजन त्नथकावट त्नमासिक में अनियमितता

– डिप्रेशन

– बालों का गिरना

– ठंड ज्यादा लगना त्नकब्ज आदि.

यह मुख्यत: हाशिमोटो डिजीज में होता है. इसमें शरीर का प्रतिरक्षात्मक तंत्र थायरॉयड ग्रंथी के विरुद्ध कार्य करने लगता है.

सेंट्रल हाइपोथायरॉयडिज्म : मस्तिष्क के पिट्यूट्री या हाइपोथैलमस का ट्यूमर, हेड इंज्युरी के कारण भी लक्षण प्रकट होते हैं.

उपचार : इसमें प्रतिदिन थायरॉक्सिन सॉल्ट खाली पेट में उपयोग किया जाता है.

सब-क्लिनिकल हाइपोथायरॉयडिज्म : यह विशेष अवस्था है, जिसमें थायरॉयड हॉर्मोन का स्नव कुछ कम हो जाता है. समान्यत: टीएसएच का नॉर्मल लेवल 0.45 – 4.5 4 तक रहता है, लेकिन टीएसएच का लेवल 4.5 और 10.00 के बीच रहता है, तो इसे सब-क्लिनिकल हाइपोथायरॉयडिज्म कहते हैं. इसमें इलाज कुछ जांच जैसे- एंटी-टीपीओ, लिपिड प्रोफाइल देखने के बाद ही की

जाती है.

ग्वाइटर (घेघा रोग) : इसमें थायरॉयड ग्लैंड बड़ा हो जाता है. इससे गला फूल जाता है. ग्वाइटर, थायरॉयड हॉर्मोन बढ़ने, घटने या नॉर्मल अवस्था में भी हो सकती है. इससे निम्न समस्याएं हो सकती हैं-

त्नगले में भारीपन त्नआवाज में बदलाव त्नखांसी त्ननिगलने में तकलीफ त्नसांस लेने में तकलीफ आदि.

इलाज : इसका इलाज स्नव के अधिक एवं कम होने के आधार पर किया जाता है. आयोडीन की मात्र भोजन में सप्लिमेंट के रूप में भी दिया जाता है, जैसे-आयोडीन युक्त नमक, समुद्री मछलियां, अंडा आदि का सेवन करके. सांस लेने पर तकलीफ होने पर थायरॉयड की सर्जरी करनी पड़ सकती है.

थायरॉयड एवं गर्भावस्था : प्रेग्‍नेंसी में आयोडीन की जरूरत अधिक होती है. उतनी आपूर्ति नहीं होने से गर्भपात या शिशु में कोई विकृति आ सकती है. अत: प्रसव से पहले मां व जन्म के तुरंत बाद शिशु के थायरॉयड हॉर्मोन की स्क्रीनिंग करानी चाहिए.

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