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एंडोमेट्रियम में समस्या से होता है अशरमैन सिंड्रोम

डॉ मीना सामंत प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली हॉस्पिटल, पटना एक 55 वर्षीय महिला मेरे पास इलाज कराने आयीं, जिन्हें दो वर्ष से पीरियड नहीं हो रहा था. पेट के निचले हिस्से में दर्द रहता था. उन्हें दो साल पहले तीन माह का गर्भपात हुआ था. इसके बाद डी एंड सी (धुलाई) […]

डॉ मीना सामंत
प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली हॉस्पिटल, पटना
एक 55 वर्षीय महिला मेरे पास इलाज कराने आयीं, जिन्हें दो वर्ष से पीरियड नहीं हो रहा था. पेट के निचले हिस्से में दर्द रहता था. उन्हें दो साल पहले तीन माह का गर्भपात हुआ था. इसके बाद डी एंड सी (धुलाई) की गयी. उन्हें यूएसजी कराने की सलाह दी गयी. इस जांच में गर्भाशय का आकार काफी बढ़ा हुआ पाया गया.
इसके बाद उन्हें अल्ट्रासाउंड कराने को कहा गया. अल्ट्रासाउंड कराने के बाद पता चला कि गर्भाशय के अंदर फ्लूड भरा हुआ था. इसके निचले हिस्से में एडहेसिन्स होकर रुकावट हो गयी थी. डी एंड सी द्वारा रास्ता खोला गया. लगभग आधा-एक लीटर गाढ़ा जमा हुआ रक्त निकला. छोटे-छोटे बोनी टिश्यू भी निकले. इस प्रक्रिया के बाद मासिक शुरू हो गया और महिला रोग मुक्त हो गयी.
गर्भाशय में रुकावट है समस्या
महिलाओं में होनेवाली इस समस्या को अशरमैन सिंड्रोम कहते हैं. गर्भाशय की भीतरी परत को एंडोमेट्रियम कहते हैं. प्रतिमाह पीरियड के समय यह झड़ती है और उसके बाद यह पुन: बढ़ती है. यह प्रक्रिया हॉर्मोन से नियंत्रित होता है. कभी-कभार इस परत के चिपकने के कारण रक्तस्नव में रुकावट हो सकती है. गर्भाशय के अंदर के परत से सटने के कारण उत्पन्न इस स्थिति को ही अशरमैन सिंड्रोम कहते हैं.
डी एंड सी है इलाज
इस रोग में गर्भाशय के अंदर ठोस टिश्यू बन जाता है. इससे निजात पाने के लिए उसे तोड़ना पड़ता है. हिस्ट्रोस्कोपी से देखते हुए एडहेसिन्स को काटा जाता है. यही डी एंड सी द्वारा भी किया जाता है. दोबारा न हो इसके लिए एस्ट्रोजेन हॉर्मोन दिया जा सकता है. कुछ समय के लिए बैलुन या कॉपर टी भी डाल सकते हैं. यदि टिश्यू बड़ा न हो, तो अधिकतर केसेज में यह ठीक हो जाता है और पीरियड सामान्य हो जाता है.
क्या हैं कारण
– प्रसव के उपरांत संक्रमण से
– डी एंड सी (बच्चेदानी की धुलाई) जो अबॉर्शन या किसी जांच के लिए करायी गयी हो.
– टीबी या पीआइडी से आयी खराबी
– कॉपर टी के कारण हुआ संक्रमण
क्या हैं लक्षण
– पीरियड बंद हो जाना
– स्नव की मात्र में कमी आना
– बार-बार गर्भपात होना
– हर महीने पेट में दर्द होना
क्या हैं जांच
– डाइ डाल कर गर्भाशय की कैविटी को देखना.
– अल्ट्रासाउंड
– हिस्ट्रोस्कोपी

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