आयुर्वेद से करें भूख की कमी का उपचार
डॉ कमलेश प्रसाद आयुर्वेद विशेषज्ञ नागरमल मोदी सेवा सदन राज अस्पताल, रांची शरीर के पोषण और रक्षा के लिए भोजन आवश्यक है. भोजन का पाचन होकर शरीर के विभिन्न अंगों को पोषण मिलता है. भोजन के पाचन में आयुर्वेद मतानुसार शरीर में विद्यमान अग्नियां मुख्य रूप से भाग लेती हैं. शरीर में कुल 13 प्रकार […]
डॉ कमलेश प्रसाद
आयुर्वेद विशेषज्ञ
नागरमल मोदी सेवा सदन राज अस्पताल, रांची
शरीर के पोषण और रक्षा के लिए भोजन आवश्यक है. भोजन का पाचन होकर शरीर के विभिन्न अंगों को पोषण मिलता है. भोजन के पाचन में आयुर्वेद मतानुसार शरीर में विद्यमान अग्नियां मुख्य रूप से भाग लेती हैं. शरीर में कुल 13 प्रकार की अग्नियां पायी जाती हैं, जिनमें जठराग्नि अन्न पाचन में मूल रूप से भाग लेती है एवं अन्य अग्नियां एक-दूसरे की सहायता करती हैं.
आयुर्वेद में भूख की कमी को अग्निमांद्य कहा जाता है. इसका तात्पर्य पाचन क्रिया का मंद होना है. अग्नि दो प्रकार की होती है. प्रथम प्राकृत अग्नि तथा दूसरी विकृत अग्नि. विकृत अग्नि को तीन भागों में विभक्त किया जाता है, जैसे -1) विषम अग्नि 2) तीक्ष्ण अग्नि एवं 3) मंद अग्नि.
विषम अग्नि : यह ऐसी अवस्था है, जिसमें अग्नियां कभी तीक्ष्ण तो कभी मंद हो जाती हैं. फलस्वरूप भोजन का पाचन भी विषम रूप में होने लगता है. इस प्रकार शरीर का पोषण ठीक से नहीं हो पाता है. ऐसा माना जाता है कि इसमें वात दोष का भी अनुबंध होता है.
मंदाग्नि : जब कम मात्र में भी किये गये भोजन का पाचन सही तरह से नहीं हो पाता है, तो इस अवस्था को मंदाग्नि कहते हैं. इससे पीड़ित रोगी को उल्टी, पेट में जलन तथा कभी-कभी पतला शौच हो जाता है, जिससे अधपचा भोजन निकल जाता है.
तीक्ष्ण अग्नि : अग्नि की तीक्ष्णता से भस्मक रोग पैदा होता है. यह भोजन को शीघ्रता से पचा कर धातुओं का भी पाचन करने लगती है, जिससे व्यक्ति दुर्बल हो जाता है तथा कभी-कभी प्राण भी चलेजाते हैं.
क्यों होता है अग्निमांद्य
अग्निमांद्य उत्पन्न होने का मूल कारण अनुचित आहार का सेवन है. अत: शरीर को नुकसान पहुंचानेवाले आहार का सेवन किया जाये, तो यह रोग पैदा हो जायेगा. अत्यंत भारी, गरिष्ठ भोजन, देर से पचनेवाले आहार, खट्टा, कड़वा, अत्यंत, तीखा, नमकीन एवं चरबी बढ़ानेवाले आहार का सेवन करना इस रोग को जन्म देने में सहायक है. दूसरा मूल कारण समय पर भोजन न करना भी है. जो लोग समय पर भोजन नहीं करते तथा अपथ्य लेते हैं, उन्हें भी यह रोग हो जाता है.
लक्षण : यह रोग होने पर रोगी का पेट भरा-भरा लगता है. भोजन का पाचन नहीं होता है. वमन एवं कब्ज बना रहता है. भूख नहीं लगती है. सारे शरीर में दर्द, बेचैनी, नींद न आना एवं कमजोरी हो जाती है. इन सबके अलावा अग्निमांद्य अनेक रोगों को जन्म देता है जैसे बवासीर, दस्त रोग, पेचिश, ग्रहणी, अफरा, पेट दर्द, गैस, अल्सर इत्यादि.
कुछ कारगर घरेलू उपाय
– पिसी काली मिर्च में थोड़ा नमक मिला कर मूली पर लगाएं और इसे भोजन के समय खाएं.
– अदरक, नीबू, भुना जीरा और काला नमक को मिला कर चटनी बनाएं और इसका सेवन करें.
– भोजन करने से पहले एक चम्मच अदरक का रस और एक चम्मच नीबू का रस और थोड़ा-सा काला नमक पानी में घोल कर पीएं.
अग्निमांद्य से बचने के लिए आहार पर नियंत्रण करना आवश्यक है. समय पर खाना खाएं एवं हल्का भोजन लें. गरिष्ठ एवं खट्टे तथा अधिक मसालेदार भोजन न लें. फास्ट फूड का तो तुरंत त्याग कर देना चाहिए. नारियल के पानी का प्रयोग खूब करना चाहिए. मांसाहारी भोजन एवं शराब का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए.
क्या खाएं : गेहूं, जौ की रोटी, मूंग, मसूर दाल, हरी साग-सब्जी, फलों में अनार का रस, पपीता, संतरा, गाय का दूध एवं मट्ठा का सेवन भी करें.
क्या न खाएं : खट्टे पदार्थ, मिर्च, मसालेदार भोजन, मिठाइयां, पकवान, देर से पचनेवाले आहार, मांसाहारी भोजन, शराब आदि का सेवन न करें. दिन में नहीं सोना चाहिए. आहार-विहार पर नियंत्रण से यदि रोग ठीक न हो, तो चिकित्सक से मिल कर रोग का निदान कराना चाहिए.
कुछ आयुर्वेदिक औषधियां इस रोग में लाभदायक हैं, जैसे अविपत्तिकर चूर्ण, हिंगवास्टक चूर्ण एवं लवण भास्कर चूर्ण. इनमें से कोई एक चम्मच दो बार पानी से लें. इसके अलावा आमलकी टेबलेट एवं मुक्ता जेम टेबलेट को भी लिया जा सकता है. दक्षारिष्ट 4-4 चम्मच दो बार समान जल से लें. पेट साफ रखने के लिए पंचसकार चूर्ण रात में एक चम्मच लें. रोग होने पर चिकित्सक के परामर्श से ही औषधि प्रयोग करना चाहिए.