प्रज्ञा अग्रवाल
योग विशेषज्ञ
आर्ट ऑफ लिविंग
आर्ट ऑफ साइलेंस टीचर, पटना
शलभासन करने से ऑक्सीजन अत्यधिक मात्र में फेफड़ों में पहुंचता है. श्रोणि-प्रदेश व उदर पर अच्छा प्रभाव पड़ता है. पाचनतंत्र ठीक रहता है तथा भूख बढ़ती है. यह आसन पेट की चरबी भी कम करता है. गैस, कब्ज की समस्या दूर होती है. मेरु दंड के नीचेवाले भाग में होनेवाले सभी रोगों को यह आसन दूर करता है.
पीठ की मांसपेशियों का विकास होता है. शरीर के नीचे के अंगों में रक्त प्रवाह बेहतर होता है. यह स्त्रियों के लिए भी लाभकारी है. यह गर्भाशय का सूजन दूर करता है. इस आसन को करने में जिन्हें परेशानी हो, उन्हें शुरू -शुरू में अर्ध्र शलभासन करना चाहिए. इस क्रिया में दोनों पैरों को एक साथ ऊपर उठाने की बजाय एक ही पैर को उठाना होता है. इस प्रकार बारी-बारी से दोनों पैरों को ऊपर उठा कर आसन करना चाहिए.
आसन उन लोगों के लिए उपयोगी है, जो साधारण कमर दर्द या साइटिका से पीड़ित हैं. जो लोग हर्निया, स्लिप डिस्क, हृदय रोग या आंतों के किसी रोग से पीड़ित हैं, तो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए.
आसन की विधि :
– स्टेप 1 : पेट के बल लेट जाएं. बांह शरीर के दोनों तरफ, हथेलियां जमीन की तरफ, कोहनियां मुड़ी हुईं और उंगलियां पैरों की तरफ हों.
– स्टेप 2 : अब टांगों और जंघाओं को ऊपर उठाएं और संभव हो तो शरीर को भी ऊपर उठाएं.
– स्टेप 3 : ठोड़ी, कंधे और छाती जमीन से लगे हों.
– स्टेप 4 : कुछ सेकेंड इस स्थिति में रहें.
– स्टेप 5 : सांस साधारण व लयबद्ध हो.
आसन में सावधानी : घुटने से पैर नहीं मुड़ना चाहिए. ठोड़ी भूमि पर टिकी रहे. 10 से 30 सेकंड तक इस स्थिति में रहें. जिन्हें मेरु दंड, पैरों या जंघाओं में कोई गंभीर समस्या हो, वह योग चिकित्सक से सलाह लेकर ही यह आसन करें. आसन के बाद श्वास गति तेज हो जाती है. तब तक आप इस आसन को दोबारा न करें, जब तक कि आपकी सांस पुन: सामान्य न हो जाये.