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अधिक चिंता से होते हैं रोग

चिंता करना मनुष्य का स्वभाव है. एक सीमा के अंदर की गयी चिंता शरीर की प्रतिरोधक क्षमता है और किसी खतरे से बचाने में भी सहायक होती है. लेकिन यदि यह स्तर बढ़ जाये तो व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार हो जाता है. कई मानसिक रोग जैसे-ओसीडी, सीजोफ्रेनिया आदि का कारण चिंता ही होती है. […]

चिंता करना मनुष्य का स्वभाव है. एक सीमा के अंदर की गयी चिंता शरीर की प्रतिरोधक क्षमता है और किसी खतरे से बचाने में भी सहायक होती है. लेकिन यदि यह स्तर बढ़ जाये तो व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार हो जाता है. कई मानसिक रोग जैसे-ओसीडी, सीजोफ्रेनिया आदि का कारण चिंता ही होती है. छोटी-छोटी चिंताएं जैसे-बच्चों की पढ़ाई, पति का ऑफिस से लेट आना, स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं धीरे-धीरे बढ़ कर विकराल रूप ले लेती हैं और व्यक्ति मानसिक रोगों की चपेट में आ जाता है.
क्या हैं लक्षण : अनेक शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक बदलाव दिखने लगते हैं जैसे-हृदय की धड़कन बढ़ जाना, हाथ-पैर कांपना, मुंह का सूखना, पसीना आना, पैर में झनझनाहट, नींद में कमी आना, डरावनेस्वपन देखना आदि.
क्या हैं कारण : जैविक कारण, न्यूरोट्रांसमीटर के रसायन में असमानता के कारण, नैतिक द्वन्द्व, चेतन-अचेतन में गलत व्यवहार से व्यक्ति चिंतित रहता है. कमजोर व्यक्ति और असफलता का डर चिंता के कारण बनते हैं.
उपचार : रोग के जटिल हो जाने पर चिंता विरोधी दवा दी जाती है. साथ ही मनोचिकित्सा काफी कारगर होती है. खुद को व्यस्त रखना, लोगो से मिलना-जुलना भी चिंता से निकलने में मदद करता है. साथ ही नियमित योग, व्यायाम एवं टहलना भी फायदेमंद होता है. आत्मविश्वास बनाये रखने में परिवार की भूमिका भी अहम होती है.
डॉ बिन्दा सिंह
क्लिनिकल
साइकोलॉजिस्ट, पटना
मो : 9835018951

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