लगातार खड़े रहने से होता है स्टैसिस डर्मेटाइटिस

बढ़ती उम्र के प्रभाव से कई प्रकार के त्वचा रोग होते हैं. जो लोग ऐसे पेशे से जुड़े हैं, जिनमें उन्हें लगातार खड़ा रहना पड़ता है, तो उन्हें स्टैसिस एग्जिमा एवं स्टैसिस अल्सर नामक रोग देखने को मिलता है. इसमें घुटने के नीचे चकत्ते बनना, घाव, सूजन व दर्द की समस्या पेश आती हैं. स्टैसिस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 14, 2015 11:03 AM
बढ़ती उम्र के प्रभाव से कई प्रकार के त्वचा रोग होते हैं. जो लोग ऐसे पेशे से जुड़े हैं, जिनमें उन्हें लगातार खड़ा रहना पड़ता है, तो उन्हें स्टैसिस एग्जिमा एवं स्टैसिस अल्सर नामक रोग देखने को मिलता है. इसमें घुटने के नीचे चकत्ते बनना, घाव, सूजन व दर्द की समस्या पेश आती हैं.
स्टैसिस डर्मेटाइटिस में घुटने से नीचे की त्वचा में काले दाग, खुजलीवाले दाने, चकत्ते एवं ज्यादा खुजली करने से अल्सर भी हो जाता है. कभी-कभी बिना खुजली के पैर में सूजन रहना, चोट लगने या छिलने के बाद घाव का न भरना, दिन-प्रतिदिन और गहरा होता जाना, अगल-बगल की त्वचा में भूरे या काले दाग होना इस रोग के लक्षण हैं. चलते समय पैर में दर्द की शिकायत भी होती है. इस समस्या को इंटरमिटेंट क्लाउडिकेशन कहते हैं. ऐसे केस में शिराएं मोटी एवं घुमावदार हो जाती हैं, जिसे वेरीकोज वेन भी कहते हैं.
क्या हैं कारण
हृदय द्वारा साफ खून यानी ऑक्सीजन एवं न्यूट्रिशन (पोषण) से युक्त खून आर्टरी (धमनी) से शरीर के हरेक हिस्से में भेजा जाता है. साफ खून ऑक्सीजन एवं पोषण विभिन्न टिश्यू को देकर उन हिस्सों की गंदगी एवं अवशिष्ट तत्वों को लेकर वेन(शिराओं) द्वारा हृदय में वापस आता है. यह चक्र चलता रहता है. वेन में खून एक ही दिशा में गुजरते हुए बहता है. पैर की काफ मांसपेशी के संकुचन से यह वेन दबता है और खून पैर से ऊपर हृदय की ओर जाता है. जो लोग ज्यादा खड़े रहते हैं और पैर को कम चलाते हैं उनकी काफ मांसपेशी कम संकुचित (कॉन्ट्रैक्ट) होती है, जिससे खून वेन में ऊपर हृदय की ओर नहीं जा पाता एवं गुरुत्वाकर्षण के कारण ऊपरवाला खून वेन के वाल्व पर दबाव डाल कर उसे कमजोर कर नीचे की ओर ही प्रेशर बनाने लगता है. इससे गंदा खून पैर में जमने लगता है और गंदगी त्वचा में जमा होने से काला दाग होने लगता है. गंदगी से एलर्जी होने से खुजली, दाना एवं एग्जिमा हो जाता है. समस्या बढ़ने पर यह अल्सर का रूप भी ले लेता है. ऑक्सीजन एवं पोषण की कमी से इस भाग में चोट लगने पर घाव भी जल्दी नहीं भरता है.
क्या है इलाज एवं बचाव
ऐसे केस में डॉक्टर कलर डॉप्लर जांच से वेन के अवरोध का पता लगाते हैं एवं स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक क्रीम एवं गोली लिखते हैं. खून के प्रवाह को बढ़ाने के लिए पेंटॉक्सीफायलीन की गोली भी मरीज को देते हैं. लक्षणों के अनुसार खुजली होने पर फेक्सोफेनाडाइन की गोली भी दे सकते हैं. ऐसे केस में पैर की एक्सरसाइज, जिसमें एंकल ज्वाइंट पर बार-बार चलाना एवं पैर की उंगलियों को ऊपर-नीचे करके चलाने की सलाह दी जाती है, ताकि काफ मसल (ग्रैस्ट्रोनेमियश मसल) कॉन्ट्रैक्ट (संकुचित) करे और वेन को दबा कर गंदे खून को ऊपर की ओर भेजे. वेरीकोज वेन होने पर इलास्टिक गारमेंट (टाइट फिटिंग) घुटने के नीचे या ऊपर तक का पहनने से सूजन एवं दर्द में आराम मिलता है. सोते समय पैरवाले हिस्से को ऊपर रखें, पैर के नीचे तकिया रख कर सोएं. इलास्टिक गारमेंट पहन कर खड़े-खड़े ही बीच-बीच में एक पैर को बारी-बारी से एंकल एवं उंगली के पास से ऊपर-नीचे चलाते रहें. पैर को चोट, छिलने से बचाना चाहिए एवं छिलने पर सुक्राल एमयू ऑइंटमेंट लगाना चाहिए.
डॉ क्रांति
एचओडी स्किन एंड वीडी डिपार्टमेंट, आइजीआइएमएस, पटना

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