अबॉर्शन कराने के बाद कई प्रकार की शारीरिक और मानसिक समस्याएं होती हैं. इसलिए एक बार अबॉर्शन होने के बाद अगली प्रेग्नेंसी के लिए कुछ समय इंतजार करना उचित होता है.
कुछ महिलाएं अबॉर्शन इसलिए कराती हैं, क्योंकि वे गर्भधारण के लिए तैयार नहीं होती हैं, जबकि कुछ में यह किसी शारीरिक समस्या से हो सकता है. लेकिन एक बार यदि अबॉर्शन हो जाये, तो अगली बार प्रेग्नेंसी से पहले प्लानिंग और कुछ सावधानियों का होना बहुत जरूरी है.
फर्टिलिटी पर असर नहीं
यदि अबॉर्शन किसी एक्सपर्ट की देख-रेख में समुचित प्रक्रिया अपनाते हुए कराया जाता है, तो इससे फर्टिलिटी पर कोई असर नहीं पड़ता है. फर्टिलिटी पर तभी असर पड़ता है जब ट्रीटमेंट के दौरान रिप्रोडक्टिव ऑर्गेन जैसे-ओवरी या फेलोपियन ट्यूब डैमेज हो जाएं. आजकल तकनीक इतनी उन्नत हो चुकी है कि सही तरीके से अबॉर्शन कराने के बाद इन्फेक्शन का खतरा बहुत ही कम होता है.
सर्विक्स होता है कमजोर
जो महिलाएं कई बार अबॉर्शन करा चुकी हों और इसके लिए हर बार डी एंड सी कराती हों उनमें सर्विक्स का ऊपरी हिस्सा या यूटेरस के अंदर का हिस्सा कमजोर हो जाता है. डी एंड सी अबॉर्शन के बाद यूटेरस की सफाई के लिए करायी जाती है. इसलिए ऐसी अवस्था में प्रेग्नेंसी से पहले इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि कमजोर होने के कारण फिर से अबॉर्शन हो सकता है.
अबॉर्शन के तुरंत बाद प्रेग्नेंसी है खतरनाक
विशेषज्ञों के अनुसार अबॉर्शन के तीन महीने के भीतर प्रेग्नेंसी हानिकारक हो सकती है. यदि अबॉर्शन को चिकित्सीय तरीके से कराया जाता है, तो दवाओं और उपचार के कारण यूटेरस सॉफ्ट होता है. इसके कारण कभी-कभी अधिक ब्लीडिंग भी होती है. यदि अबॉर्शन सजिर्कल तरीके से कराया जाता है, तो अगली प्रेग्नेंसी के लिए कम-से-कम छह महीने तक इंतजार करना बेहतर होता है.
अबॉर्शन के बाद गर्भनिरोधन है जरूरी
अबॉर्शन के तुरंत बाद पीरियड भले ही न हों, लेकिन ओव्यूलेशन होता रहता है. इसका अर्थ यह है कि अबॉर्शन के बाद यदि गर्भनिरोधन का उपाय नहीं किया जाये, तो प्रेग्नेंसी होने की संभावना होती है. चूंकि आप इसके लिए तैयार नहीं होती हैं, तो इससे मानसिक और शारीरिक दबाव और बढ़ सकता है.
डॉक्टर से जरूर लें सलाह
यदि अबॉर्शन के बाद पर्याप्त समय बीत चुका है, तो भी प्रेग्नेंसी से पहले अपने डॉक्टर से एक बार बात करना उचित होता है. डॉक्टर गर्भधारण से पहले कुछ टेस्ट की सलाह दे सकते हैं. इससे आपकी अवस्था की सही जानकारी मिलती है
डॉ मीना सामंत
प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली हॉस्पिटल, पटना
प्रेग्नेंसी को प्रभावित करता है मोटापा
आजकल वजन बढ़ना आम हो गया है. इसके कारण बीपी बढ़ना, हार्ट डिजीज, या गैस्टेशनल डायबिटीज होने का खतरा होता है. इसके कारण गर्भाधान भी प्रभावित होता है-
ओव्यूलेशन होता है प्रभावित : वजन अधिक बढ़ने से हॉर्मोनल परिवर्तन आते हैं. इसके कारण फर्टिलिटी और ओव्यूलेशन प्रभावित होता है. इससे प्रेग्नेंट होने की संभावना कम होती है.
पीसीओडी का बनता है कारण : पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज (पीसीओडी) महिलाओं में ऐसी अवस्था है जिसमें इन्सुलिन लेवल बढ़ जाता है. इस कारण ओव्यूलेशन में कमी, अनियमित मासिक और पुरुषों के हॉर्मोन की वृद्धि होने लगती है. पीसीओडी, मोटापा और इन्फर्टिलिटी सीधे एक दूसरे से संबंधित हैं. पीसीओडी से पीड़ित कुछ किलो वजन घटा कर प्रेग्नेंट हो सकती है.
बढ़ता है गर्भपात का खतरा : वजन अधिक बढ़ने से गर्भपात का खतरा तीन गुना बढ़ता है. इसके अलावा यह आवीएफ ट्रीटमेंट में भी समस्या उत्पन्न करता है.
यदि आप प्रेग्नेंट होना चाहती हैं, तो जैसे ही वजन अधिक होने का पता चले, वजन घटाने का प्रयास करना शुरू कर दें. मात्र 15} वजन घटा लेने पर बिना किसी ट्रीटमेंट या दवाइयों के ही आप प्रेग्नेंट होने में सक्षम हो जाएंगी. यहां तक की पीसीओडी के मरीज भी यदि ऐसा करते हैं तो उन्हें भी प्रेग्नेंसी में कोई परेशानी नहीं होगी. इससे सिजेरियन का खतरा बढ़ जाता है. डिलिवरी के बाद ब्लड वेसेल्स में थक्के जमने का खतरा बढ़ जाता है.
डॉ मोनिका अनंत
असिस्टेंट प्रोफेसर (ओ एंड जी)
एम्स, पटना