स्टेम सेल है बीटा थैलेसीमिया का इलाज

महिलाएं अक्सर एनिमिया की शिकार हो जाती हैं. यह शरीर में लौह तत्व की कमी से होता है. कई बार कुछ अन्य रोग भी ऐसे होते हैं, जिनके कारण शरीर में खून की कमी हो जाती है. ऐसा ही एक रोग है- बीटा थैलेसीमिया. बीटा थैलेसीमिया हीमोग्लोबिन से संबंधित आनुवंशिक विकार है. इसमें बीटा-ग्लोबिन चेन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 1, 2015 11:46 AM
महिलाएं अक्सर एनिमिया की शिकार हो जाती हैं. यह शरीर में लौह तत्व की कमी से होता है. कई बार कुछ अन्य रोग भी ऐसे होते हैं, जिनके कारण शरीर में खून की कमी हो जाती है. ऐसा ही एक रोग है- बीटा थैलेसीमिया.
बीटा थैलेसीमिया हीमोग्लोबिन से संबंधित आनुवंशिक विकार है. इसमें बीटा-ग्लोबिन चेन की सिंथेसिस में कमी आती है. इससे आरबीसी (रेड ब्लड सेल्स) का आकार छोटा हो जाता है. आरबीसी के टूटने का एक निश्चित समय होता है यह भी इस रोग में घट जाता है अर्थात् कम दिनों में ही टूटने लगते हैं. आरबीसी ऑक्सीजन का परिवहन भी भली-भांति नहीं कर पाते हैं. इससे मरीज में खून की कमी हो जाती है.
पहचानें लक्षण : यदि महिला को बराबर एनिमिया रहता है या आयरन और फोलिक एसिड लेने के बाद भी एनिमिया में कोई सुधार नहीं हो रहा हो.
जांच : कंप्लीट ब्लड काउंट में हीमोग्लोबिन की कमी के अलावा आरबीसी का आकार छोटा मिलता है. इसे माइक्रोसाइटिक हाइपोक्रोमिक कहते हैं. आरबीसी का आकार 80-90 फेम्टोमीटर होता है. रोग में यह 60 के नीचे पहुंच जाता है. इलेक्ट्रोफोरेसिस एचबी ए2 का लेवल बढ़ा हुआ मिलता है. सीरम फेरेटिन की मात्र भी बढ़ सकती है. पूर्ण इलाज : स्टेम सेल थेरेपी से इस बीमारी का इलाज संभव है. इसमें बोन मेरो या कॉर्ड ब्लड से मरीज का इलाज होता है.
कैसे रखें ध्यान : जिन्हें थैलेसीमिया माइनर या ट्रेट हो, तो उन्हें गर्भावस्था में कुछ बातों का ध्यान रखना पड़ता है.
यह रोग लोहे की कमी से नहीं होता है. लौह तत्व को लेने का सबसे सामान्य रूप फोलिक एसिड है.
हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने पर खून चढ़ाना पड़ सकता है.
यदि मां और पिता दोनों में थैलेसीमिया माइनर हों, तो बच्चे में थैलेसीमिया मेजर का गंभीर रूप होने का खतरा 25} अधिक होता है. अत: यदि महिलाओं में इसके लिए जांच हो रही हो और महिला शादीशुदा हो तो पति की भी जांच अवश्य करानी चाहिए.
यदि दंपती में थैलेसीमिया होता है, तो बच्चे में इस रोग के होने का पता पहले चल सकता है. गर्भधारण के 9-12 वे सप्ताह में जेनेटिक टेस्टिंग से थैलेसीमिया मेजर का डायग्‍नोस किया जा सकता है.
थैलेसीमिया मेजर
इस रोग से ग्रस्त बच्चा जन्म के समय अन्य बच्चों की तरह ही सामान्य होता है. जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है और उसका हीमोग्लोबिन एडल्ट हीमोग्लोबिन में बदलता है, इस रोग के लक्षण नजर आते हैं. 6-8 महीने में बच्च खून की कमी से प्रभावित होने लगता है. इसके बाद हर तीन-चार हफ्ते में खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है. 20-30 महीने में लोहे की मात्रा शरीर में बढ़ने लगती है और यह शरीर के हर अंग में समाने लगता है और अंग की कार्य प्रणाली को प्रभावित करता है. हृदय और लिवर के फंक्शन में कमी आने से व्यक्ति की आयु कम हो जाती है और 30-40 के बीच में ही रह जाती है. आयरन के ओवरलोड को कम करने के लिए दवाएं आती हैं. इस रोग में लोग इन्फेक्शन का शिकार आसानी से हो जाते हैं. अत: सावधानी बरतें. हेपेटाइटिस बी और सी के होने का खतरा भी अधिक होता है. सुचारू इलाज से कई महिलाओं में थैलेसीमिया मेजर होने के बावजूद प्रग्‍नेंसी सफल देखी गयी है.
डॉ मीना सामंत
प्रसूति व स्त्री रोग विशेषज्ञ कुर्जी होली फेमिली हॉस्पिटल, पटना

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