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चर्म रोगों को दूर करता है चिरौंजी

चिरौंजी : इसे बोलचाल में पियाल भी कहते हैं. इसका वृक्ष मझोले कद का होता है. यह हमेशा हरा-भरा रहता है तथा इसकी छाल भूरे रंग की होती है. यह झारखंड में मिलता है. यह पहाड़ी इलाकों में बहुतायत में पाया जाता है. औषधीय गुण : इसका तेल दवा बनाने के काम आता है तथा […]

चिरौंजी : इसे बोलचाल में पियाल भी कहते हैं. इसका वृक्ष मझोले कद का होता है. यह हमेशा हरा-भरा रहता है तथा इसकी छाल भूरे रंग की होती है. यह झारखंड में मिलता है. यह पहाड़ी इलाकों में बहुतायत में पाया जाता है.
औषधीय गुण : इसका तेल दवा बनाने के काम आता है तथा बादाम तेल के बदले प्रयोग किया जाता है. इससे मलहम तैयार किया जाता है जो कई चर्म रोगों को दूर करता है. इससे निकलनेवाले गोंद को अतिसार में प्रयोग किया जाता है. पतला शौच या डायरिया होने पर इसके गोंद को 250 मिग्रा की मात्र में लेने से डायरिया में फायदा होता है.
कचनार : इसे कनडोल भी कहते हैं. यह मझोला आकार का वृक्ष होता है. प्राप्तिस्थान : यह प्राकृतिक रूप से पहाड़ी इलाकों में प्रचुर मात्र में मिलता है. इसे बगीचे में भी लगाया जाता है.
औषधीय गुण : इसके जड़ या चूर्ण आधा-आधा चम्मच पानी के साथ लेने से अजीर्ण में लाभ होता है. इससे बदहजमी और पेट फूलने की समस्या दूर हो जाती है. यह बवासीर और शूल पड़ने की समस्या में फायदेमंद है. इसकी गोंद एवं तने की छाल से शरीर में होनेवाली गांठ में लाभ होता है. इससे कई औषधियां बनती हैं जिनमें कचनार गुगुल मुख्य है. शरीर के किसी भी भाग में होनेवाली गिल्टी में इसकी दो-दो गोली तीन बार लेने से लाभ मिलता है. गले में होनेवाले घेघा रोग को कम करता है. इसे पुननर्वादि गुगुल के साथ लेने से अधिक लाभ मिलता है. बच्चेदानी के सिस्ट में भी यह लाभ करता है किंतु चिकित्सक के परामर्श से दवा लें.
डॉ कमलेश प्रसाद, आयुर्वेद विशेषज्ञ

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