बांझ बना सकता है टीबी
आमतौर पर लोग टीबी को सिर्फ छाती रोग से जोड़ कर देखते हैं. लेकिन यह न सिर्फ छाती को बल्कि शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचाता है. टीबी से पीड़ित हर 10 महिलाओं में से दो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं. जननांगों की टीबी के 40-80 } मामले महिलाओं में देखे जाते हैं. टीबी […]
आमतौर पर लोग टीबी को सिर्फ छाती रोग से जोड़ कर देखते हैं. लेकिन यह न सिर्फ छाती को बल्कि शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुंचाता है. टीबी से पीड़ित हर 10 महिलाओं में से दो गर्भधारण नहीं कर पाती हैं. जननांगों की टीबी के 40-80 } मामले महिलाओं में देखे जाते हैं.
टीबी की चपेट में अधिकतर कमजोर इम्युनिटीवाले ही आते हैं. संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने पर बैक्टीरिया वायु में फैल जाते हैं और सांस द्वारा दूसरे व्यक्ति में प्रवेश कर जाते हैं. संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाने से जननांगों की टीबी होने का खतरा होता है. यह बीमारी मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन समय रहते उपचार न कराया जाये, तो यह रक्त द्वारा दूसरे अंगों में भी फैल सकती है. ऐसा संक्रमण द्वितीय संक्रमण कहलाता है. यह संक्रमण किडनी, पेल्विक, डिंबवाही नलियों या फेलोपियन ट्यूब, गर्भाशय और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है. टीबी के बैक्टीरिया के प्रजनन मार्ग में पहुंचने पर जेनाइटल टीबी या पेल्विक टीबी हो जाता है, जो महिलाओं में बांझपन का कारण बन सकता है. यदि संक्रमण गर्भाशय में होता है, तो गर्भाशय की अंदरूनी परत पतली हो जाती है, जिससे गर्भ या भ्रूण का सही से विकास नहीं हो पाता है. इसके लक्षण तुरंत नहीं दिखते हैं और दिखाई देने तक प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंच चुका होता है. चूंकि यह बैक्टीरिया चुपके से आक्रमण करता है, इसलिए उन लक्षणों को शुरुआत में पहचानना मुश्किल है.
उपचार है संभव
समय पर उपचार हो जाये, तो गर्भधारण में कोई समस्या नहीं आती है. मां बनने के बाद एक चिंता यह भी सताती है कि क्या स्तनपान कराने से बच्चा संक्रमण की चपेट में तो नहीं आ जायेगा. अत: टीबी रोगी मां बच्चों को स्तनपान कराते समय चेहरे पर मास्क लगा लें. टीबी की पहचान के बाद एंटी टीबी दवाइयों से तुरंत उपचार शुरू कर देना चाहिए, ताकि रोग और बढ़े नहीं. दवाओं का कोर्स छह से आठ महीनों का होता है. इसे पूरा करना जरूरी होता है. लेकिन इससे डिंबवाही नलिकाओं का ठीक होना सुनिश्चित नहीं है.
क्या रखें सावधानी
यह रोग कुपोषित लोगों को अधिक होता है, क्योंकि उनकी इम्युनिटी कम होती है. अत: उपचार के दौरान खान-पान में परहेज रखना जरूरी है. ऐसे लोगों को अल्कोहल, मांस और मीठी चीजों के सेवन से बचना चाहिए. भोजन में पत्तेदार सब्जियां, विटामिन डी और आयरन के सप्लिमेंट्स, साबुत अनाज और असंतृप्त वसा होनी चाहिए. परहेज नहीं करने पर उपचार असफल हो सकता है और द्वितीय संक्रमण का खतरा बढ़ता है. यदि परिवार में किसी को टीबी है, तब अन्य परिजनों को भी छाती का एक्स-रे, ट्युबरक्युलिन टेस्ट आदि करा लेना चाहिए, ताकि कोई संक्रमित हुआ हो, तो इलाज शुरू हो सके. टीबी से बचने के लिये संक्रमणवाले स्थानों से दूर रहें. सेहत का ख्याल रखें और नियमित रूप से अपनी शारीरिक जांच कराते रहें. संभव हो तो टीका लगवा लें.
क्या हो सकते हैं लक्षण
इसमें अनियमित मासिक चक्र, योनि से विसर्जन, जिसमें रक्त के धब्बे भी होते हैं, यौन सबंधों के बाद दर्द आदि लक्षण दिखते हैं. अधिकतर मामलों में लक्षण संक्रमण बढ़ने के बाद ही दिखते हैं. प्रजनन मार्ग में टीबी की पहचान मुश्किल है, फिर भी कई तकनीकों द्वारा पहचान की जाती है. इसमें डिंबवाही नलियां और गर्भकला से उत्तकों के नमूने लेकर लैब में भेजा जाता है. पॉलीमरेज चेन रिएक्शन पद्धति का भी प्रयोग किया जाता है, लेकिन यह महंगी है और विश्वसनीय भी नहीं. बातचीत : रवींद्रनाथ शर्मा
डॉ क्षितिज मुर्डिया
इंदिरा इंफर्टिलिटी क्लिनिक एंड टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर, उदयपुर, राजस्थान