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वेदमाता गायत्री से मिली सकारात्मकता

मन में अगर लगन हो, खुद के काम पर विश्वास हो और काम करने की इच्छाशक्ति हो, तो व्यक्ति अपने जीवन में जो चाहे वह पा सकता है. इसके लिए जरूरी है कि व्यक्ति सबसे पहले अपने काम (कॅरियर) का चयन करे. किसी भी प्रकार के उतार-चढ़ाव होने के बाद भी अपने मार्ग से नहीं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 17, 2015 11:33 AM
मन में अगर लगन हो, खुद के काम पर विश्वास हो और काम करने की इच्छाशक्ति हो, तो व्यक्ति अपने जीवन में जो चाहे वह पा सकता है. इसके लिए जरूरी है कि व्यक्ति सबसे पहले अपने काम (कॅरियर) का चयन करे. किसी भी प्रकार के उतार-चढ़ाव होने के बाद भी अपने मार्ग से नहीं हटना चाहिए.
समय का मूल्यांकन करते हुए व्यक्ति को धीरे-धीरे प्रयास जारी रखना चाहिए. इसी सोच के साथ मैंने अपने कपड़े एवं रेडीमेड गारमेंट्स के व्यवसाय को बढ़ाया. मेरा जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर जिला के लाडम गांव में 1942 में हुआ. प्राथमिक शिक्षा पड़ोसी गांव के स्कूल में हुई. श्री डूंगरगढ़ हाइ स्कूल से 10वीं कक्षा की परीक्षा पास की एवं राजस्थान विश्वविद्यालय से बीकॉम किया. कॅरियर की तलाश में मैं नेपाल चला गया और वहां 17 महीने तक नौकरी की.
बाद में वहीं पर अपना आयात-निर्यात का व्यवसाय शुरू किया. फिर सरकारी नीतियों के चलते नेपाल छोड़ना पड़ा और 1968 में कलकत्ता चला आया. यहां आने के बाद पार्टनरशिप में कपड़े और रेडीमेड गारमेंट्स का व्यवसाय शुरू किया. बाद में स्वतंत्र रूप से अपना व्यवसाय करने लगा. मेरा उद्देश्य यही रहा कि ज्यादा से ज्यादा देश के नौजवानों, कारीगरों को रोजगार मिले. इसी सोच के साथ व्यवसाय का विस्तार होता गया.
शुरुआती दिनों में हावड़ा के मंगलाहाट से रेडीमेड गारमेंट्स मैन्युफैरिंग का व्यवसाय शुरू किया. आज भी कपड़े और रेडीमेड गारमेंट्स का व्यवसाय कर रहा हूं. बच्चों के लिए लिटिल डेमन ब्रांड के नाम से उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं. पुरुषों के लिए शर्ट भी बनाये जाते हैं. सारे उत्पाद सुपर कॉटन से बनाये जाते हैं. कपड़ों की डिजाइनिंग कुशल कारीगरों के सहयोग से पुत्र राजेश, संजय एवं संदीप करते हैं और व्यवसाय को नया पंख देने में जुटे हैं.
देश के अलावा मध्य-पूर्व के देशों में हमारे उत्पाद लोकप्रिय हैं. समय-समय पर रेडीमेड गारमेंट्स से जुड़ी और दूसरी समस्याओं के समाधान के लिए संगठित रूप से आवाज उठाने के लिए प्रयत्न करता रहता हूं. पिताजी दिवंगत कुनणाराम तिवारी एक समाजसेवी थे. वह हमेशा हिदायत देते थे कि अगर किसी को तकलीफ हो, तो बिना भेद किये हुए तुरंत उसके सहयोग के लिए हाथ बढ़ाओ. मुङो याद है बचपन में मेरे दोस्त के पापा के निधन के बाद वह मेरे दोस्त को भी मेरी ही तरह स्कूल में दुलारते रहे. समय पर काम कराना पिताजी से ही सीखा. माताजी स्वर्गीय हीरा देवी धर्मभीरु महिला थीं.
कोई अनजान व्यक्ति दरवाजे पर आता, तो मां उसके लिए सबसे पहले पानी और भोजन की व्यवस्था करती. मां मुङो हमेशा यही कहती कि खूब पढ़ो और सबका प्यारा बनो. पत्नी चंद्रप्रभा ने सचमुच मेरे जीवन में चांदनी-सी शीतलता भरी है. यही कारण है कि मैं कभी गुस्सा नहीं करता. हमेशा मुस्कुराते हुए हर समस्या का सहज समाधान कर लेता हूं. मेरी पत्नी ने सेवाभाव मेरी मां से सीखा है. पूजा-पाठ, सत्संग एवं धार्मिक पुस्तकों को पढ़ने में उनकी गहरी रुचि है. पुत्रवधू ऋतु, श्रद्धा एवं गार्गी घर को सुंदर बनाने में जुटी हैं.
व्यवसाय के बाद जब घर लौटता हूं, तो पौत्री रीजू, पौत्र प्रियांश, आर्यमन एवं वेदांत के साथ तरह-तरह की बातें करता हूं. साथ ही खेलकूद और पढ़ाई की भी बातें करता हूं. बच्चों से यही कहता हूं कि सबका सम्मान करना सीखो. मैं जब कभी घर से बाहर रहता हूं, तो लौटने पर बच्चे तरह-तरह के सवाल करते हैं.
35 वर्षो से सुबह गायत्री-मंत्र का जाप करता हूं. इससे मुङो ऊर्जा व खुशी मिलती है. काम करते समय खाली वक्त जब मिलता है, तो गायत्री मंत्र का जाप अपने आप होने लगता है. गायत्री मंत्र के ‘ऊं’ में बहुत बड़ी शक्ति है. यह मेरा अनुभव है. व्यवसाय के विभिन्न संगठनों से जुड़ने से यही फायदा हुआ कि अच्छे लोगों से मुलाकात हुई और सामाजिक सेवा करने का अवसर मिला.
यह देख कर खुशी होती है कि थोड़े से प्रयास से कैसे लोगों का जीवन अच्छा बन जाता है. विशेषकर ब्राह्मण समाज में दहेज एवं मृत्युभोज की कुरीतियां हैं, जो मुङो अंदर ही अंदर खाये जाती हैं. ब्राह्मण समाज को प्रांतीय दायरे से उबर कर समाज, देश व जग के हित में ज्यादा सक्रिय रूप में आगे आना चाहिए. मेरी कोशिश है कि समाज के जरूरतमंद प्रतिभाशाली बच्चों के लिए कुछ कर सकूं. ईश्वर की कृपा से जो मुङो जो जीवन मिला है, उससे संतुष्ट हूं. बस एक ही कमी रह गयी है कि कम्प्यूटर और आइटी के यंत्रों को चलाना सीख नहीं पाया. इसके बावजूद मैं जीवन को मुस्कुराते हुए जी रहा हूं.

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