30 प्रतिशत लोग पेट की बीमारी से पीड़ित
पेट की समस्या आज लोगों में आम बात हो गयी है. छोटी उम्र के बच्चों से लेकर युवा तक पेट की बीमारी से पीड़ित हैं. हर कोई अस्पताल के चक्कर लगा रहा है. बच्चों एवं युवाओं में पेट की समस्या का मूल कारण फास्ट फू ड है. फास्ट फूड घर के किचन में आम हो […]
पेट की समस्या आज लोगों में आम बात हो गयी है. छोटी उम्र के बच्चों से लेकर युवा तक पेट की बीमारी से पीड़ित हैं. हर कोई अस्पताल के चक्कर लगा रहा है. बच्चों एवं युवाओं में पेट की समस्या का मूल कारण फास्ट फू ड है. फास्ट फूड घर के किचन में आम हो गया है. देश की जनसंख्या के 30 प्रतिशत लोग पेट की बीमारी से पीड़ित हैं. ऐसा नहीं है कि हम पेट की समस्या से बच नहीं सकते हैं, लेकिन इसके लिए हमें जागरूक होना होगा. उक्त बातें रांची आगमन के दौरान पद्मश्री से सम्मानित गैस्ट्रो इंट्रोलॉजिस्ट डॉ डी नागेश्वर रेड्डी ने रविवार को प्रभात खबर संवाददाता राजीव पांडेय से बातचीत में कही.
पेट की समस्या जब आम हो गयी है तो एक साधारण व्यक्ति इससे कैसे बच सकता है?
बीमारी को समाप्त तो नहीं किया जा सकता है, लेकिन इससे बचा तो जा ही सकता है. पेट की बीमारी बहुत हद तक हमारी जीवनशैली पर टिकी है. हम सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक में कई बार जंक फूड का इस्तेमाल कर लेते हैं. अभिभावक तो बच्चों को भी इसे इस्तेमाल करने से मना नहीं करते हैं. पेट की बीमारी से बचाव के लिए नियमित व्यायाम, तैलीय खाद्य पदार्थ को बंद करना होगा, खाने की तरीके में परिवर्तन करना होगा. खाना को चबा-चबा कर खाना चाहिए.
एक जागरूक व्यक्ति जो परहेज के साथ खाता एवं रहता है, तो उसे पेट की बीमारी कैसे हो जाती है?
पेट की समस्या बहुत हद तक जीन के कारण भी हो जाती है. व्यक्ति परहेज करता है, इसके बावजूद पेट की समस्या होना उसके माता-पिता से मिले जीन के कारण होता है. इसके बावजूद व्यक्ति को परहेज करना चाहिए. ऐसे व्यक्ति को चिकित्सक की सलाह पर अपनी रूटीन जांच अवश्य कराते रहना चाहिए. यह बीमारी पानी में संक्रमण के कारण भी होती है. कई बार खाद्य पदार्थ में संक्रमण भी पेट की बीमारी का कारण बनता है.
इंडोस्कोपी से हम कौन-कौन सी बीमारी का पता कर सकते हैं, क्या इससे इलाज भी संभव है?
इंडोस्कोपी से पेट की जांच एवं इलाज आसान हो गया है. अब हम पेट के कैंसर को आसानी से प्रारंभिक अवस्था में पकड़ लेते हैं. कैंसर का इलाज भी कर लेते हैं. कैमरा के माध्यम से हम बीमारी के नजदीक पहुंच कर उसे देख लेते हैं. जरूरत होने पर हम टय़ूमर का बॉयोप्सी भी कर लेते है. इंडोस्कोपी से चार से पांच घंटे में होनेवाले ऑपरेशन को 10 से 15 मिनट में किया सकता है. मरीज डे-केयर में अपना इलाज करा कर चला जाता है. मेडिकल कॉलेज एवं छोटे शहरों के सजर्न को इंडोस्कोपी की नयी तकनीक की जानकारी रखनी होगी, जिससे मरीजों को महानगर में नहीं जाना पड़े.