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धरती बंट गयी पर रिश्ते कायम

-दार-अस-सलाम (तंजानिया) से हरिवंश- आदिस अबाबा (इथियोपिया) से दार-अस-सलाम (तंजानिया) की यात्रा में सृष्टि के पुराने संकेत मिलते हैं. प्रधानमंत्री के विशेष विमान के जानकार पुराने ज्वालामुखी केंद्रों के नाम याद दिलाते हैं. विशाल पहाड़, विमान से छोटे पर अलग दीखते हैं. अलग-अलग किस्म के मैदानी इलाके, पहाड़ी क्षेत्र, जंगल, पहाड़, नदियां. आदिमानव सभ्यता का […]

-दार-अस-सलाम (तंजानिया) से हरिवंश-

आदिस अबाबा (इथियोपिया) से दार-अस-सलाम (तंजानिया) की यात्रा में सृष्टि के पुराने संकेत मिलते हैं. प्रधानमंत्री के विशेष विमान के जानकार पुराने ज्वालामुखी केंद्रों के नाम याद दिलाते हैं. विशाल पहाड़, विमान से छोटे पर अलग दीखते हैं.
अलग-अलग किस्म के मैदानी इलाके, पहाड़ी क्षेत्र, जंगल, पहाड़, नदियां. आदिमानव सभ्यता का केंद्र रहा है, यह क्षेत्र. हम अफ्रीका के सबसे ऊंचे पहाड़ किलि-मंजारो के ऊपर से भी गुजरते हैं.

आज ही सुबह (26 मई) प्रधानमंत्री का इथियोपियन संसद में कहा याद आया. सहस्राब्दियों (लाखों-करोड़ों वर्ष) पहले अफ्रीका और भारत एक धरती पर थे. जुड़े थे. आज भारतीय महासागर हमारे बीच है. पर हमारे रिश्ते पहले से हैं. भारतीय व्यापारी कैसे पुराने अदूलिस बंदरगाह पर आते थे. सोना, मसाला, सिल्क व्यापार के लिए.

अनेक तरह के वर्ग आकर यहां बसे भी. प्रधानमंत्री ने यह भी याद दिलाया कि कैसे इथियोपिया मूल के हजारों लोग भारत के पश्चिमी तट पर बसे हैं. जंजीरा में मुरुड़ का किला (महाराष्ट्र) आज भी इस पुराने रिश्ते को याद दिलाता है. अफ्रीकन मूल के भारत में रहनेवाले सिद्दी लोगों ने कैसे अफ्रीकन-भारतीय संगीत के बीच मेल कर नया संगीत बनाया है. इथियोपिया के इंजारा की तरह ही भारत का लोकप्रिय ‘दौसा’, दोनों के बीच एक मूल की याद दिलाता है.
प्रधानमंत्री के भाषण का संकेत था कि अतीत की साझेदारी के जीवंत प्रतीक हमारे बीच बचे हैं, सही है कि लाखों-करोड़ों वर्ष पहले एक रही अफ्रीका-एशिया की धरती बंट गयी. पर रिश्ते कायम रहे.
शाम को तंजानिया (दार-अस-सलाम) पहुंच कर भी इसकी पुष्टि हुई. दार-अस-सलाम का मूल अर्थ है, शांति गृह. पर इतिहास पलटें तो लगता है कि भयावह अशांति के दौर से यह शहर गुजरता रहा है. अफ्रीका के भारतीय समुद्री तट पर बसे इस देश की आबादी है, लगभग चार करोड़ (39.44 मिलियन). जमीन भारत की एक तिहाई. यानी मोटे तौर पर अनुमान करें, तो 45 करोड़ भारतीय जितनी धरती पर रहते हैं, उतनी ही धरती पर तंजानिया के चार करोड़ लोग बसते हैं. अफ्रीका की कुल आबादी लगभग 100 करोड़ (एक बिलियन) है.
पर वह महाद्वीप है. पूरे महाद्वीप का क्षेत्रफल देखें. पर 100 करोड़ से बहुत अधिक लोग भारत में बसते हैं, उसकी धरती की तुलना, अफ्रीका से करें, तो भारत की चुनौतियां भी अफ्रीका पर धरती पर याद आती हैं. इस धरती से भी भारत का रिश्ता रहा है. भारतीय समुदाय के लोगों को संबंधित करते हुए प्रधानमंत्री ने (26 मई शाम) तत्कालीन तांगनिका और जंजीबार से भारत के पुराने रिश्तों की चर्चा की. अब ये दोनों क्षेत्र ‘ यूनाइटेड रिपब्लिक ऑफ तंजानिया’ में हैं. भारत के लिए पूर्वी अफ्रीका का प्रवेश द्वार.
इस धरती पर उतरते ही जूलियस न्योरेरे की याद आयी. आजाद तंजानिया को आकार देने वाले कद्दावर नेता. पूर्व राष्ट्रपति. इससे भी अधिक उनकी पहचान उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़नेवाले नेता के रूप में. रंगभेद के खिलाफ संघर्ष करनेवाले राजनेता के रूप में है. भारत में वह जाने-पहचाने थे. विचार-मूल्य और सरोकार की अफ्रीकी राजनीति के प्रतीक. बाद में उन्होंने 1985 में स्वत: पद छोड़ा. यह भी आज की सत्ता राजनीति के लिए न पचनेवाली बात है.
सुबह-सुबह (27 मई) न्यू अफ्रीका होटल की सातवीं मंजिल, इस शहर का बंदरगाह देख रहा था. पानी में टिके और तैरते बड़े जहाज. कमरे के ठीक सामने बड़ा गिरजाघर. इस पर बड़ी घड़ी लगी है. इसी से समय पता चलता है.
यह भारत से 2.30 घंटे पीछे है. यही काल है, कौन आगे-कौन पीछे क्या पता! यहां बैठे-बैठे जूलियस न्योरेरे और पंडित जवाहरलाल नेहरू की याद आयी. पंडित जी की पुण्य तिथि है, आज. वह गुजरे थे, तो बच्चा था. पर याद है, पूरा गांव (अपढ़) रोया था. भाषा, संस्कृति, जाति, धर्म, क्षेत्र की पूंजी लेकर बढ़नेवाले क्या समझ पायेंगे पंडित नेहरू और जूलियस न्योरेरे की पीढ़ी को? पर कमरे से समुद्र में उड़ती बड़ी समुद्री चिड़ियाओं को देख कर लगता है, आकाश से उतरना, बैठना फिर उड़ना, शायद यही प्रकृति का शाश्वत नियम है. इसी तरह हर तरह के नेता आयेंगे-जायेंगे. पर पंडित नेहरू या न्योरेरे जैसे लोग, भविष्य के लिए आकार देते हैं.
कल आदिस अबाबा में एक जानकार मित्र से चर्चा हो रही थी. उन्होंने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही. बताया कि अपने बच्चों-परिचितों के बच्चों को आज एक ही संदेश देता हूं. तीन किताबें जरूर पढ़ो. संस्कार बनेंगे. विश्व दृष्टि बनेगी. इंसान बनोगे. वे किताबें कौन सी हैं?
(1) ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी’: महर्षि योगानंद, (2) डिस्कवरी ऑफ इंडिया: पंडित जवाहर लाल नेहरू और (3) माई एक्सपेरिमेंट विद टथ: महात्मा गांधी.
कल इथियोपियन संसद को भारतीय प्रधानमंत्री संबोधित कर रहे थे, तो उन्होंने पंडित नेहरू का उल्लेख किया. 1936 में लिखे उनके लेख का. 1935 में पश्चिमी ताकतों ने एबीसिनिया पर हमला (इथियोपिया) किया, तो पंडित जी ने तब लिखा.’हम भारत में रहते हुए इथियोपिया के भाइयों पर जो मुसीबत आयी है, उनकी दुख की घड़ी है. उसमें कुछ कर नहीं पा रहे. हम भी साम्राज्यवाद के शिकार हैं.
पर कम से कम इथियोपिया के जो हमारे भाई मुसीबत-संकट में हैं, उन्हें अपनी संवेदना तो भेज सकते हैं. आज इस दुख की घड़ी में हम उनके साथ हैं. हम आश्वस्त हैं कि जब हमारे अच्छे दिन आयेंगे, हम साथ खड़े होंगे.’
यह थी, तब की राजनीति की विश्व दृष्टि!
विश्व इतिहास और यात्राओं के अनुभव से एक बात बार-बार गूंजती है. इतिहास को पलटनेवाली दो ही महत्वपूर्ण ताकतें हैं, (1) सेना या आक्रमणकारी और (2) व्यवसायी. दुनिया को खोजने, एक-दूसरे को जोड़ने में व्यवसायियों-व्यापारियों की अद्भुत भूमिका रही है. पर इतिहास ने उनके साथ न्याय नहीं किया. इतिहास तो राजाओं-युद्धों की बात करता है. पर अहिंसक रूप से कठिन से कठिन (तिब्बत जैसे क्षेत्र) धरती के इलाकों और समुद्र रास्तों पर व्यापारियों ने ही मानव समाज को बांधने-जोड़ने का काम किया. मानव विकास में यह ऐतिहासिक भूमिका है.
इसी तरह माइग्रेशन (एक जगह से दूसरी जगह जाना) ने दुनिया को प्रगति दी है. और एक नया सपना. बदला है, संसार को. माइग्रेशन के बिना दुनिया आज जैसी होती ही नहीं. यह प्रकृति का नियम है. कौन धरती किसकी और कौन कहां का? हर जगह मूल खोजिये, पता चलेगा सबका मूल अज्ञात-अनजान है. सबै भूमि गोपाल की.
इथियोपिया के गांव-गांव तक कभी भारतीय शिक्षक रहे. दस हजार से अधिक. आज भी वहां के लोग याद करते हैं. इसी तरह तंजानिया में भारतीय मूल से जुड़े पूरे देश में 40, 000 से अधिक लोग हैं. भारत ने हाल में दार-अस-सलाम में अपना सांस्कृतिक केंद्र भी खोला है. यहां भी अध्यापक या मामूली काम के लिए भारतीय आये, आज वे महत्वपूर्ण पदों पर हैं. गुजराती लोगों ने तो अफ्रीका के सभी देशों में अपनी छाप छोड़ी है. उद्यमिता (इंटर प्रेन्योरशिप) और इमिग्रेशन की मानव सभ्यता के विकास में अहम भूमिकाएं है.
इसी तरह तंजानिया का इतिहास पलटता हूं, तो पता चलता है कि लगातार अलग-अलग साम्राज्य, सभ्यताएं, व्यापारी यहां आये. अपनी छाप छोड़ी. यहां की मुख्य धरती है तांगयनिका.
कभी पुर्तगाली शासक रहे. कभी अरब के लोग. कभी जर्मनी का यह गुलाम रहा. यहां 120 ट्राइब (जनजातियां) हैं. अधिकतर बांटू व अन्य. 40 फीसदी क्रिश्चि›यन, उतने ही मुसलमान. शेष अन्य. यहां की राष्ट्र भाषा रोमन लिपि में ‘किसवाहिली’ है. अरबी-बांटूक का सम्मिश्रण. गुजराती, हिंदी और अंगरेजी शब्द भी. इस भाषा में हैं. 1995 से यहां बहुदलीय लोकतंत्र है.
पर दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, तंजानिया. माइनिंग और पर्यटन यहां के बढ़ते क्षेत्र हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि समाजवाद ने इस देश की अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया था. कंगाली जैसा. 91 के भारतीय संकट जैसा. तब यहां 80 के दशक में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की देखरेख में उदारीकरण की व्यवस्था लागू हुई.
तब से देश प्रगति कर रहा है. इस उदारीकरण का विरोध करनेवाले, ऐसे तथ्यों का जवाब नहीं दे पाते? अफ्रीका को देखते हुए (मॉरीशस, इथियोपिया और तंजानिया) यह लगता है कि उदारीकरण और बाजार व्यवस्था ने अफ्रीका को समृद्धि दी है.
समाजवाद-साम्यवाद के बारे में इनका तर्क है कि युद्ध, संघर्ष, दुर्भिक्ष तब भयावह थे. शासक वर्ग ही संपन्न था. पर ये लोग साथ ही यह भी बताते हैं कि पुराने मूल्य-परंपराएं, सरोकार भी ध्वस्त हो रहे हैं. तरह-तरह की संस्कृति, वेशभूषा, पहनावा और पहचान भी मिट रही है.
तंजानिया में चीन बड़े काम-प्रोजेक्ट कर रहा है. दार-अस-सलाम की धरती पर एयरटेल (भारतीय) और महिंद्रा ट्रैक्टर के बड़े-बड़े होर्डिंग देख कर भारतीयों की उद्यमिता भी नजर आती है.
दिनांक : 28.05.2011

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