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मानव पुरखों की धरती से!

-आदिस अबाबा (इथियोपिया) से हरिवंश- हम थके थे. पिछली रात लगभग नींद नहीं आयी. सोना चाहता था. पर इथियोपिया के सांस्कृतिक कार्यक्रम में शरीक होना था. पारंपरिक खाना, नृत्य, गान. भारत से लगभग 2.30 घंटे घड़ी पीछे चलती है. पर रात एक बजे लौटा. भारतीय समयानुसार. इथियोपिया के परंपरागत नाच-गान, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आदिम झलकें […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 6, 2015 10:01 AM
-आदिस अबाबा (इथियोपिया) से हरिवंश-

हम थके थे. पिछली रात लगभग नींद नहीं आयी. सोना चाहता था. पर इथियोपिया के सांस्कृतिक कार्यक्रम में शरीक होना था. पारंपरिक खाना, नृत्य, गान. भारत से लगभग 2.30 घंटे घड़ी पीछे चलती है. पर रात एक बजे लौटा. भारतीय समयानुसार. इथियोपिया के परंपरागत नाच-गान, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आदिम झलकें मिलती हैं. तीन पुरुष कलाकार, तीन लड़कियां मुख्य पात्र थे.
कुछेक लड़के-लड़कियां भी थे टीम में. भाषा से दूर-दूर तक रिश्ता नहीं. पर भाव, शारीरिक लोच, भंगिमा, थिरकन, बांध लेनेवाले दृश्य. भारत सरकार के बड़े अफसर, मीडिया के लोग, अफ्रीका मीडिया के कुछेक वरिष्ठ लोग सब भूल कर इस कार्यक्रम में डूबे रहे. न अश्लीलता, न दोहराव, न कर्णभेदी आवाजें. शरीर के एक-एक अंग से अदभुत लोच और थिरकन. यह सब देखते झारखंड के परंपरागत नाच-गान के दृश्य याद आये. प्रकृति और संगीत के बीच जीवन.
यहां झलक मिली इथियोपिया के पुराने-परंपरागत स्वरूप की. इस धरती को छूते ही मानव इतिहास और एंथ्रोपोलोजिस्ट याद आये. नयन चड्ढा की मशहूर किताब थी. कैसे मानव जाति के पुरखे यहीं से दुनिया में फैले. मानव उद्‌गम का मूल द्वीप. याद आया, मानव पुरखों की धरती पर लौटा हूं. धर्म, जाति, रंग, क्षेत्र वगैरह फर्क तो बाद में आये. मानव जनित. प्रकृति ने इसी अफ्रीकन महाद्वीप में हम मानवों को सिरजा. इसलिए इसे ‘मदर कांटिनेंट’ (महाद्वीपों की जननी) भी कहते हैं. अपने मानव पुरखों की धरती पर लौटने जैसा है.
और इस स्थापना की झलक भी मिली. आदिस अबाबा पहुंचने के बाद हमारे पास घंटे भर का समय था. हम म्यूजियम गये. बंद हो चुका था. पर 15 मिनट के लिए हमें मौका मिला. वहीं हमें लूसी के कंकाल देखने को मिले. मूल हड्डियां तो अमेरिका गयी हैं, प्रदर्शनी में. किसी मानव का पहला, सबसे पुराना प्रमाण-सबूत. वह भी एक महिला का. मुझे आदिम, ईव, मनु, श्रद्धा वगैरह की याद आयी. लूसी के कंकाल 32 लाख वर्ष पुराने हैं.
एक पुरानी हड्डी 44 लाख वर्षों पुरानी है, पर वह साबूत नहीं है. टुकड़ा है. पता नहीं औरत है या मर्द. म्यूजियम में मानव अतीत के सबूत भरे पड़े हैं. आदिम. यहां देख कर गीता की स्मृति उभरती है. शरीर या काया तो चोला है. इस चोले के सबसे पुराने, लाखों-करोड़ों वर्षों पुराने प्रमाण मौजूद हैं. इथियोपिया के राजाओं, लड़ाकू लोगों के अनेक प्रतीक. सुंदर और पुष्ट घोड़ों की पेंटिंग्स.
1975 की क्रांति, दुर्भिक्ष व अकाल और जन उभार पर अदभुत ऐतिहासिक पेंटिंग्स. आप देखते रह जायें. गाइड ने बताया, राजा के बैठने का यह सिंहासन है. सुंदर नक्काशी. बारीक काम. पेंटिंग्स और जरी के काम. देखते रह जायें. 300-400 वर्ष पुराना. उस युवा इथियोपियन गाइड ने कहा, यह भारतीयों ने हमारे राजा को तोहफा दिया. तब भारतीयों की उद्यमिता याद आयी. वैसे ही जैसे जहांगीर के दरबार में अंगरेज, डच, पुर्तगीज व्यापारी पहुंचे थे.
व्यापार-कारोबार ने कैसे दुनिया को जोड़ा है, एक सूत्र में बांधा है? पर हम भारतीय, स्वभाव-रुझान में आमतौर से पर-पीड़क नहीं हैं. बहुत बाद में पश्चिमी ताकतें (ब्रिटेन, फ्रांस, इटली वगैरह) अफ्रीका आयीं और इन्हें गुलाम बनाया. पर इथियोपिया कभी गुलाम नहीं रहा. इटली ने कोशिश की, पर चूक गया. फिलहाल कहने को लोकतंत्र है, यहां. 20 वर्षों से एक ही शासन. प्रतिपक्ष में महज एक सांसद. राजा, प्रतीक भर है.
पर आदिस अबाबा बदल रहा है. आदिस अबाबा यानी नया फूल. धरती छूते ही पहली झलक तो आदिम गंध की मिलती है. गरीबी की मिलती है. पर बड़े पैमाने पर विज्ञापनों के होर्डिंग, कंस्ट्रक्शन काम में चीनी, बाहरी लोगों की उपस्थिति, खुद इथियोपिया के लोगों के बदलते परिधान देख कर लगता है कि उपभोग की भूख, बाजार की धमक और आधुनिक होने की लौ यहां लग गयी है. कहते हैं, दुनिया में तीन राजधानियां, सबसे अधिक ऊंचाई पर हैं, उनमें से ही है आदिस अबाबा भी. सुंदर. मौसम श्रेष्ठ. शाम होते-होते 11 तक भी टेंपरेचर. अब यह सुंदर शहर और देश, पुराने चोला उतार रहे हैं.
हर जगह जहां बदलाव है, वहां पुराने-नये में फर्क है. टकराव है. सूट-बूट, अंगरेजी, उपभोक्ता बाजार, सेक्स क्रांति, धनी होने की भूख (रास्ता चाहे जो भी हो) की हवा या मार से दुनिया नये कगार पर है. यह देख कर लगता है कि अतीत में अफ्रीका पीछे रह गया था, पर आनेवाले दस वर्षों में भविष्य अफ्रीका का है. इस भौतिक विकास की भूख यहां भी जग चुकी है.
आदिस अबाबा की सड़कों के दृश्य भारत की याद दिलाते हैं. भीख मांगते लोग, सड़क पर दुकानें, चाय-काफी की पुरानी दुकानें, जैसे बंगाल की वे जगहें जहां अड्डा लगते थे. सुंदर सड़कें. कोई हार्न नहीं. ट्रैफिक अनुशासन में भारत से बहुत आगे. एक अफ्रीकी मित्र कहते हैं, 1901 में नोबेल पुरस्कार की शुरुआत हुई. तबसे अब तक 18 अफ्रीकी लोगों को यह मिल चुका है.
अधिसंख्य को शांति के लिए. पर साहित्य, मेडिसीन, रसायन शास्त्र और भौतिक शास्त्र में भी. अल्जीरिया, इजिप्ट, घाना, कीनिया, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका वगैरह के लोगों को. इस सूचना का संकेत मेरे लिए साफ है. अफ्रीकन मानने लगे हैं कि आनेवाला समय हमारा है. जहां यह संकल्प होगा, वहीं नयी शुरुआत कौन रोक पायेगा?
पुराना चोला उतर रहा है. भारत-अफ्रीका को लेकर एक होर्डिंग हर जगह लगा है. एनसिएंट सिविलाइजेशन, यंग नेशंस. राष्ट्र-राज्य के रूप में भले ही हमारा उदय नया हो, पर हमारी समस्याएं तो पुरानी हैं. इथियोपिया की सभ्यता भी प्राचीन है. किंवदंती तो इसे अर्वाचीन राजा सोलोमोन और रानी शेबा से जोड़ते हैं. प्राचीन काल में अबीसीनिया के नाम से जाना जाता था. तीसरी-चौथी शताब्दी में अक्सम वंश का साम्राज्य था.
दक्षिण यमन और सऊदी अरब तक फैला. ग्रीक, रोमन, फोनिसियंस, अरब और भारतीय आक्सम साम्राज्य से व्यापार-कारोबार करते थे. यहां लगभग 100 भाषाएं बोली जाती हैं. यहां की आधुनिक भाषा के बारे में बताते हैं कि हिब्रू और अरबी के संयोग से निकली है. लगभग 62.8 फीसदी क्रिश्चियन हैं, यहां. मुसलिम आबादी 33.21 फीसदी. शेष स्थानीय समूह. लोग सहज, सरल हैं.
कृत्रिमता, छल-कपट बहुत नहीं दिखता. शायद आधुनिक विकास की भूख और गला काट स्पर्द्धा से ये चीजें भी बढ़े. हां, एक साफ निष्कर्ष है कि बाजार, उदारीकरण, यातायात क्रांति, सूचना क्रांति, इंटरनेट, टीवी वगैरह पूरी दुनिया के एक तबके को एक सूत्र-समूह में बांध रहे हैं. वेशभूषा (सूट, कोट, टाई या महिलाओं के समान परिधान). कांटिनेंटल फूड, भाषा अंगरेजी, पूंजी बाजार, वित्तीय संस्थाएं, टीवी चैनल्स एक सूत्र में बांधनेवाले तत्व हैं. दार्शनिक कृष्णनाथ जी के मुहावरे में कहें, तो आधुनिक दुनिया, यानी अमेरिकीकरण. एक रूप, एक रस. विविधता छोड़ कर.
हम जब युवा से बड़े हो रहे थे, तो अफ्रीका-लैटिन अमेरिका के देश हमें विचारों से बांधते थे. बहुत पहले दक्षिण अफ्रीका जाना हुआ. संयोग से माह भर पूर्व भारत की राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान मॉरीशस देखना हुआ. इस बार प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान खांटी अफ्रीका देशों में जाना हो रहा है.
इथियोपिया और तंजानिया. इन देशों के बारे में पढ़ और देख कर लगता है कि प्रकृति के बारे में धारणा सही है. सबके दिन, प्रकृति समान नहीं रहने देती. कल जो राजा, जमींदार थे, आज खराब हाल में हैं. जो खराब हाल में थे, वे आग बढ़ रहे हैं. वैसे ही अफ्रीका ने दुर्दिन देखा है, पर अब वह करवट ले रहा है. कल या भविष्य का अफ्रीका (2050 के आसपास 100 करोड़ आबादी अनुमानित) बड़ी ताकत बनने के क्रम में है.
दिनांक : 25.05.2011

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