दक्षिण अफ्रीका में-1 : एक देश में समूची दुनिया

– हरिवंश – साउथ अफ्रीकन एयरवेज का जहाज मुंबई से जोहांसबर्ग आठ घंटे उड़ कर (फ्लाइंग टाइम) पहुंचता है. समय का चक्र भी भिन्न है. भारत के समय से लगभग साढ़े तीन घंटे पीछे. भारत में दिन के एक बजे होंगे, तो जोहांसबर्ग की धरती पर सुबह के साढ़े नौ. दूरी लगभग साढ़े चार हजार […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 20, 2015 8:28 AM

– हरिवंश –

साउथ अफ्रीकन एयरवेज का जहाज मुंबई से जोहांसबर्ग आठ घंटे उड़ कर (फ्लाइंग टाइम) पहुंचता है. समय का चक्र भी भिन्न है. भारत के समय से लगभग साढ़े तीन घंटे पीछे. भारत में दिन के एक बजे होंगे, तो जोहांसबर्ग की धरती पर सुबह के साढ़े नौ. दूरी लगभग साढ़े चार हजार मील (लगभग सात हजार किलोमीटर). रात दो बजे मुंबई से उड़ा विमान भारतीय समय के अनुसार लगभग एक बजे दिन में यहां (जोहांसबर्ग) पहुंचता है.

कड़ाके की ठंड है. 13 घंटे पहले दिल्ली में तापमान 42 डिग्री था. शाम सात बजे. मुंबई में रात नौ बजे 36 डिग्री. ठीक 11 घंटे बाद जोहांसबर्ग में कड़ाके की ठंड. तापमान छह डिग्री. यानी प्रकृति में ही भिन्नता है. इसी अनेकता में एकता है, यही शायद प्रकृति का रहस्य है. समाज और दुनिया का भी. पर दुनिया के कोने-कोने में प्रकृति का यह विविध रूप, रंग, भाव खतरे में है. पर्यावरण, प्रदूषण, ओजोन संकट चौतरफा है.

अब जोहांसबर्ग से केपटाउन की यात्रा करनी है. वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूजपेपर्स (वैन) और वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूजपेपर्स एडीटर्स के वार्षिक सम्मेलन वहीं हैं. जोहांसबर्ग हवाई अड्डे पर महज दो घंटे की प्रतीक्षा है. हड्डी कंपा देनेवाली ठंड और यात्रा औपचारिकताओं में ही समय निकल जाता है. 556 मील (900 किलोमीटर) जाना है. दो घंटे की उड़ान और लंबी यात्रा है. रांची से दिन के तीन बजे निकल कर अगले दिन भारतीय समय के अनुसार चार बजे (25 घंटे तक) एक दूसरे महाद्वीप के छोर पर पहुंचना होता है.

टेक्नोलॉजी ने कितना जीवन बदल दिया है. जहां पहुंचने में पहले वर्षों लगते थे, समुद्र की लहरों ने न जाने कितने भारतीय लोगों, जहाजों को ऐसी यात्राओं में निगल लिया, जिस कठिन समुद्री यात्रा के विवरण महात्मा गांधी की आत्मकथा में है, वह यात्रा अब लगभग निरापद और आसान है. दक्षिण अफ्रीका एयरलाइंस (एसएए) का नारा भी है, वर्ल्ड टू द अफ्रीका, अफ्रीका टू द वर्ल्ड (दुनिया के लोगों का अफ्रीका से दरस-परस और अफ्रीकन लोगों का दुनिया दर्शन).

अफ्रीका महाद्वीप, आदि मानव का बसेरा. दुनिया के जाने-माने वैज्ञानिक और मशहूर मानवशास्त्री (एंथ्रोपोलोजिस्ट) मानते हैं कि मानव जाति के पुरखे यहीं से निकले. हाल के एक अध्ययन में तो एक वैज्ञानिक का दावा है कि दुनिया के सभी लोगों का उद्गम एक ही है.

एक ही पति-पत्नी की संतान हैं, हम सभी (हर रंग, जाति, धर्म, क्षेत्र के लोग). आदम या मनु या जो कोई अन्य रहे हो. यह भी कहा जाता है कि वे यहीं रहते थे. दक्षिण अफ्रीका में 33 लाख वर्ष पहले मानव निवास के प्रमाण मिलते हैं. आधुनिक मनुष्य के रहने के एक लाख वर्ष पुराने संकेत. आज भी यहां अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग हैं. दक्षिण अफ्रीकन पर्यटन विभाग का नारा है – ए वर्ल्ड इन वन कंट्री (एक देश में समूची दुनिया).

व्हाइट, ब्लैक, कलर्ड, एशियन, इंडियन यानी अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग. अफ्रीकन, गोरे, भारतीय, एशियाई, कलर्ड (मिले-जुले रंग के) वगैरह. 11 राजकीय भाषाएं हैं, पर मूल एक ही है, अंग्रेजी. नौ प्रांत हैं, इस मुल्क में. आबादी तकरीबन पौने पांच करोड़. खासतौर से खनिज संपदा में दुनिया के सर्वाधिक संपन्न देशों में से एक. सोना, हीरा, मैगनीज, कोयला, तांबा वगैरह प्रचुर मात्रा में.

सोना, मैंगनीज, क्रोनियम समेत छह खनिजों का भंडार दुनिया में सबसे अधिक यही है. फिर भी भयावह गरीबी! प्रकृति ने अपार संपदा दी, पर देश संपन्न नहीं. झारखंड याद आता है. अपार खनिज, पर सबसे अधिक गरीब भी.

यह पहेली है अर्थशास्त्रियों के लिए, राजनीतिज्ञों के लिए, शासकों के लिए, विकास काम में जुटे लोगों के लिए. क्यों प्राकृतिक संपदा-खनिज से वंचित दक्षिण कोरिया, जापान, सिंगापुर वगैरह दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में हैं, पर दक्षिण अफ्रीका या झारखंड जैसी जगहें खनिज प्रचुरता के बावजूद पिछड़े और गरीब? विकास की प्रक्रिया में प्रकृति निर्णायक है या मनुष्य? विकास के ये दो माडल सामने हैं. एक खनिजविहीन पर संपन्न देश या राज्य. दूसरा खनिज संपन्न, पर गरीब और पिछड़े? ऐसा भी नहीं है कि खनिज संपन्न जगहों से खनिज निकाले नहीं जा रहे? बल्कि बड़े पैमाने पर खनिजदोहन हो रहा है. दक्षिण अफ्रीका में डच लोगों ने ही यह शुरू किया.

16वीं शताब्दी में. फिर ब्रिटेन का आधिपत्य. फिर अमेरिकी कंपनियों का जोर. अब अफ्रीका और लैटिन अमेरिका महाद्वीप के खनिज संपन्न देशों में चीन बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है. विशेषज्ञ कहते हैं, इन देशों के खनिज भंडारों पर चीन की नजर है. झारखंड जैसी ही स्थिति. सैकड़ों वर्ष से खनिज उत्खनन हो रहा है. झारखंड बने सात वर्ष होने को हैं.

पर झारखंड के खनिज से संपन्न कौन हो रहा है? राज्य, राज्य की जनता या कुछेक मुठ्ठी भर लोग? झारखंड में खनिजों के कारोबार-आवंटन में ही सारा खेल हो रहा है. नये दलाल, नये पावर ब्रोकर, राजनीतिज्ञ, अफसर सब इस खेल में डूबे और लगे हैं. ईश्वर और प्रकृति ने सब दिया, पर क्या मनुष्य ने छीन लिया? राजनीति और शासन ने सोख लिया?झारखंड से लगभग 11000 किलोमीटर दूर केपटाउन में विमान उतारने की घोषणा के साथ ही यह झारखंड विचार क्रम भंग होता है.

दिनांक : 12-06-07

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