जीवन में शामिल करें मेडिटेशन
कुछ लोग एक बार की असफलता से ही इतने दुखी हो जाते हैं कि उन्हें आगे कोई रास्ता ही नहीं सूझता. इस बारे में सोच-सोच कर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. कई बार तो जीवन का अंत करने के बारे में सोचने लगते हैं. यह एक मानसिक रोग है, जिसका उपचार संभव है. मेडिटेशन […]
कुछ लोग एक बार की असफलता से ही इतने दुखी हो जाते हैं कि उन्हें आगे कोई रास्ता ही नहीं सूझता. इस बारे में सोच-सोच कर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. कई बार तो जीवन का अंत करने के बारे में सोचने लगते हैं. यह एक मानसिक रोग है, जिसका उपचार संभव है. मेडिटेशन करने से भी इस समस्या से बचा जा सकता है.
मेडिटेशन का अर्थ है सिर्फ वर्तमान में जीना. इसमें एकांत में बैठ कर ध्यान लगाया जाता है. कुछ समय तक सुबह-शाम आप एकांत में बैठ कर वर्तमान में जीएं, तो तनाव फुर्र हो जाता है.
एकांत में बैठ कर दिमाग को शांत रखें, कुछ न सोचें. ध्यान को सांस, भगवान या किसी प्रतिबिंब पर केंद्रित करें. इससे आपको परम सुख का आनंद प्राप्त होगा. इसे ही मेडिटेशन कहते हैं. इससे याददाश्त मजबूत होती है.
दो प्रकार से करें मेडिटेशन
धीरे-धीरे सांस लें : मेडिटेशन के दौरान आप एंकात में बैठ कर अपनी आंखें खुली या बंद करके धीरे-धीरे सांस लें. इस समय कुछ न सोचें और वर्तमान में ध्यान केंद्रित करें. इस तरह सांस लेने से शरीर में ज्यादा ऑक्सीजन जाती है. यह शरीर के लिए काफी लाभदायक है.
शांत बैठ जाएं : आप कहीं भी शांत वातावरण में बैठ सकते हैं. जब भी क्रोधित हों या ज्यादा गुस्सा आ रहा हो, तब यह क्रिया करके आपको राहत मिल सकती है. आप एकांत में शांत बैठ जाएं और कुछ न सोचें. यदि ऐसी स्थिति में ध्यान भटके, तो आप किसी मंत्र का उच्चरण कर सकते हैं, ताकि ध्यान केंद्रित हो सके.
ये हैं फायदे
– इससे शांति का एहसास होता है.
दिमाग और शरीर को सुकून मिलता है.
– नकारात्मक विचार दूर होते हैं.
-तनाव से मुक्ति मिलती है.
-याददाश्त में सुधार आता है.
– आत्मविश्वास बढ़ता है.
ऊं मेडिटेशन : ऊं के जाप से विशेष कर मस्तिष्क, हृदय व नाभि केंद्र में कंपन होने से उनमें से जहरीली वायु तथा व्याप्त अवरोध दूर हो जाते हैं, जिससे हमारी समस्त नाड़ियां शुद्ध हो जाती हैं. इससे हमारा आभामंडल शुद्ध हो जाता है और हमारे अंदर छिपी हुई सूक्ष्म शक्तियां जागृत होती हैं व आत्म अनुभूति होती है. यह तनाव को दूर करने का सबसे अच्छा उपाय है.
विधि : सीधे बैठ जाएं. अब उंगलियों से कानों को बंद कर लें. गहरी सांस लें. अब ऊँ का लंबा उच्चरण करें. ओ और म को बराबर समय दें. इसके प्रयोग से आप थोड़ी ही देर में तनाव में कमी महसूस करेंगे.
हमारे मस्तिष्क में तीन तरह की तरंगें होती हैं- अल्फा, बीटा और डेल्टा. अल्फा मेंटल एक्टिविटी, बीटा फिजिकल एक्टिविटी और डेल्टा इमोशनल एक्टिविटी को प्रभावित करती हैं. ऊँ के उच्चरण से ये तीनों तरंगें प्रभावित होती हैं और तीनों रिलैक्स होती हैं. इससे शरीर, मन, मस्तिष्क, शांत होकर पूर्णत: तनावरहित हो जाता है.
धर्मेद्र सिंह, योग विशेषज्ञ, रांची
किशोरावस्था में अवसाद
किशोरावस्था में अत्यधिक चिड़चिड़ापन अवसाद का लक्षण होता है. बच्चों पर माता-पिता द्वारा पढ़ाई के लिए डाला गया अत्यधिक दबाव और दूसरों से तुलना भी डिप्रेशन का कारण हो सकता है.
यदि ऐसे बच्चों का उपचार न किया जाये, तो उन्हें घर और स्कूल में दिक्कत आ सकती है. ऐसे बच्चे आसानी से नशा लेना शुरू कर सकते हैं. एक भी असफलता से उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति भी आ सकती है. लेकिन मनोचिकित्सक से मिल कर इसका पूरा इलाज करा सकते हैं.
महिलाओं में अवसाद के लक्षण
महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा डिप्रेशन होने की आशंका ज्यादा होती है. इसकी कुछ वजहें हार्मोन से जुड़ी होती हैं, खासतौर से प्रीमेंस्ट्रूअल सिंड्रोम, प्रीमेंस्ट्रूअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर, पोस्टपार्टम डिप्रेशन, पेरिमेनोपॉजल डिप्रेशन आदि के लक्षण महिलाओं में नजर आते हैं. ये लक्षण ज्यादा खाने, ज्यादा सोने, वजन बढ़ने, अपराध-बोध होने, निराश होने के रूप में नजर आते हैं.
पुरुषों में अवसाद के लक्षण
थके होने, चिड़चिड़ा होने, नींद न आने, काम में मन न लगने जैसी शिकायतें करते हैं. अवसाद के कुछ और लक्षण हैं, जैसे-आक्रामक होना, हिंसा करना, लापरवाह होना और अधिक शराब पीने जैसे लक्षण भी ऐसे पुरुषों में देखे जा सकते हैं.
एंटी डिप्रेसेंट दवाएं हैं उपचार
यदि मरीज को रोग की शुरुआत में ही एंटी डिप्रेसेंट दवाएं देनी शुरू कर दी जायें, तो 90} तक राहत मिलती है. दो-तीन हफ्ते में काफी सुधार हो जाता है. दवा के साथ डॉक्टर काउंसेलिंग भी करते हैं. ब्रेन में न्यूरोट्रांसमीटर होते हैं, जिन्हें सिरोटोनिन कहते हैं. एंटी डिप्रेसेंट दवाइयों से सिरोटोनिन के लेवल को बढ़ाया जाता है. इससे मन में खुशी और चंचलता बढ़ती है.
कुछ लोगों में भ्रांति होती है कि मानसिक रोग की दवाइयों से दिमाग की क्षमता पर असर पड़ता है जबकि यह बिल्कुल गलत है. वास्तव में जितनी जल्दी रोग के लक्षण पकड़ में आते हैं, उतनी जल्दी उपचार देना चाहिए. हालांकि अधिक दिनों तक दवाइयां खाने से उसके कुछ साइड इफेक्ट हो सकते हैं, जैसे-गैस बनना, उल्टी जैसा महसूस होना आदि. तब डॉक्टर दवाइयों को चेंज कर साइड इफेक्ट को मैनेज करते हैं. डॉक्टर सभी ग्रुप के लिए अलग-अलग दवाइयां देते हैं, जैसे- जो ऑफिस जानेवाले हैं, उन्हें दिन में नींद न आनेवाली दवाइयां दी जाती हैं.
जिन्हें रात में नींद नहीं आती है, उन्हें उसकी दवाइयां दी जाती हैं. कुछ दवाइयां ब्रेस्ट फीडिंग करानेवाली महिलाओं को देने से इसका असर बच्चों में हो सकता है, लेकिन उसके लिए भी सुरक्षित दवाइयां आती हैं. (डॉ केके सिंह से अजय कुमार की बातचीत)
किन चीजों से बढ़ती है गैस की समस्या
कुछ लोगों में गैस बनने और पेट फूलने की समस्या लगातार बनी रहती है. यह एक चिकित्सीय समस्या है, लेकिन हमारे द्वारा लिया गया आहार
भी इसके लिए जिम्मेवार होता है.
अधिकतर लोग जानते हैं कि बीन्स, ब्रोकली और प्याज से गैस की समस्या होती है, लेकिन कई और भी ऐसे फूड हैं, जो गैस बनने के लिए जिम्मेवार होते हैं. अधिकतर लोग नहीं जानते हैं कि दूध और कुछ फलों के सेवन से भी गैस बन सकती है. फलों में पाया जानेवाला फ्रूक्टोज (एक प्रकार का शूगर) और दूध में पाये जानेवाले लैक्टोज के कारण गैस और पेट फूलने की समस्या हो सकती है.
फल और सब्जियां
अधिक फाइबरवाले फल जैसे-अन्नानास, अंगूर, केला, बेरीज और सब्जियों में बीन्स, मटर, बंदगोभी और ब्रोकली से अत्यधिक गैस बनती है. इसमें मौजूद घुलनशील फाइबर तब तक आसानी से नहीं टूटता, जब तक की यह बड़ी आंत में नहीं पहुंच जाता है. इसी कारण से गैस बनती है. जिन फलों में फाइबर कम होता है, उन्हें खाने से गैस नहीं बनती. नाशपाती और सेब में शूगर सॉरबाइटल होता है, जिसके कारण पेट फूलने की समस्या हो सकती है. गैस की समस्या वाले ये चीजें कम मात्र में खाएं.
दूध और उससे बने उत्पाद
दूध के कारण उन लोगों में गैस बनती है, जिनमें लैक्टेज एंजाइम की कमी होती है. यह एंजाइम दूध में मौजूद लैक्टोज को पचाता है. अत: जिन लोगों को गैस बनने की समस्या होती है उन्हें दूध से बनी चीजों को इग्नोर करना चाहिए. यदि आप पूरी तरह से दूध नहीं छोड़ सकते हैं, तो दूध के साथ अन्य खाने की चीजों को मिला कर खाने से भी गैस से बचा जा सकता है.
पाचन का ऐसे रखें ध्यान
यदि आपको यह समस्या लगातार बनी रहती है, तो ये इन खाद्य पदार्थो के द्वारा गैस पर लगाम लगायी जा सकती है. मूंग दाल, राजमा, बार्ली और ओट से बनी चीजों को खाने से गैस नहीं बनती है.
गाजर, अजवाइन, कद्दू, सौंफ, मूली, टमाटर, शलजम एवं पत्तीदार सब्जियों से पाचनतंत्र सही रहता है और इससे गैस नहीं बनती. स्पलीन के कमजोर होने से भी गैस की समस्या होती है. कुछ मसालों जैसे-काली मिर्च और दालचीनी से स्पलीन को मजबूत बनाया जा सकता है.