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दक्षिण अफ्रीका में – 2 : भारत और दुनिया के लिए प्रकाश स्तंभ है, केपटाउन!
– हरिवंश – प्रकृति की नियामत या नेमत (देन) है, केपटाउन शहर. दुनिया के खूबसूरत शहरों में से एक. साफ-सुथरा, चौड़ी-सुंदर सड़कें. पहाड़ों और समुद्र के आंचल में बसा. शांत. जहां हिंद महासागर (इंडियन ओसन) और अटलांटिक महासागर मिलते हैं. ब्लैक टैक्सी ड्राइवर कहता है, ‘केपटाउन! मदर ऑफ आल सिटीज’ अहंकार रहित. यह फख्र-गौरवबोध अच्छा […]
– हरिवंश –
प्रकृति की नियामत या नेमत (देन) है, केपटाउन शहर. दुनिया के खूबसूरत शहरों में से एक. साफ-सुथरा, चौड़ी-सुंदर सड़कें. पहाड़ों और समुद्र के आंचल में बसा. शांत. जहां हिंद महासागर (इंडियन ओसन) और अटलांटिक महासागर मिलते हैं. ब्लैक टैक्सी ड्राइवर कहता है, ‘केपटाउन! मदर ऑफ आल सिटीज’ अहंकार रहित. यह फख्र-गौरवबोध अच्छा लगता है.
पर एक भारतीय के लिए, इतिहास के न भुलानेवाले, मार्मिक प्रसंगों से भी जुड़ा है, केपटाउन. भारत के भविष्य को बदल डालनेवाले सपने, इस धरती पर भी देखे गये. केपटाउन की यह धरती उन भारतीय नायकों के सपनों की साक्षी रही है, जिनकी कुरबानी, पहल और त्याग ने हमें नयी पहचान दी. इंसान के रूप में जीना सिखाया. मनुष्य होने का गौरव दिया. यह अलग तथ्य है कि हम अतीत के उन धवल और शानदार अध्यायों को भुला बैठे हैं. हालांकि इस शहर से जुड़ी प्रेरक स्मृतियों को भुलाने का अपराध दुनिया ने भी किया है.
समुद्रतट पर बसा केपटाउन, दुनिया के उन सभी लोगों के लिए प्रकाश स्तंभ है, जो मनुष्य की असीम क्षमता, पुरुषार्थ, संघर्ष और संकल्प का जीवंत चेहरा देखना चाहते हैं. डॉ राममनोहर लोहिया की कल्पना थी, विश्वनागरिकता की. आज दुनिया ग्लोबल विलेज में तब्दील हो रही है. संचार क्रांति और यात्रा सुगमता ने भूगोल का गणित बदल दिया है. अब अलग-अलग देशों, रंग या समुदाय के लोग दुनिया के प्राय: हर कोने में साथ बैठते-मिलते हैं.
कहते हैं , पिछले दो दशकों में दुनिया बहुत बदली है. पर माना जाता है कि इस बदल रही या ग्लोबल बनती यांत्रिक दुनिया में आज कोई रोल मॉडल (इतिहास पुरुष, आदर्श नायक) नहीं है. स्टेट्समैन नहीं है. रामायण के धनुषभंग प्रसंग जैसा हाल है, जहां यह चर्चा हुई कि धरती ‘वीर विहीन’ हो गयी है. पर केपटाउन आकर मन गौरव से भर आता है कि जब तक नेलसन मंडेला (आजकल अस्वस्थ हैं) जैसा एक इंसान धरती पर है, 600 करोड़ लोगों की यह दुनिया, उस एक इंसान के वजूद के कारण श्रीहीन नहीं है.
जो निराशा, पतन, अनास्था, मूल्यहीनता के समुद्र में, नयी और नैतिक दुनिया चाहते हैं, उनके के लिए आज भी केपटाउन एक शहर नहीं, प्रकाश स्तंभ है. प्रकाश स्तंभ, जिसका अंगरेजी नाम, लाइट हाउस है. जब दिशासूचक यंत्र नहीं बने थे, तब यही प्रकाश स्तंभ, समुद्र में भटकते जहाजों को दिशा देने का काम करते थे. जल में भटकते और निराशा हो चुके लोगों को धरती का भान कराते थे. जीने की उम्मीद लौटाते थे.
गोखले और गांधी, नेलसन मंडेला और रंगभेद के खिलाफ संघर्ष की साक्षी इस धरती पर उतरते ही एक विशिष्ट अनुभूति होती है. एक भारतीय के रूप में और एक विश्व नागरिक के रूप में भी. दोनों ही अर्थों में केपटाउन से जुड़ा अतीत, प्रेरणास्रोत है. अपने पहले संपादक डॉ धर्मवीर भारती की कालजयी कृति ‘अंधायुग’ की पंक्तियां इस शहर में आकर याद आती हैं :-
. ..जब कोई भी मनुष्य
अनासक्त होकर चुनौती देता है, इतिहास को,
उस दिन नक्षत्रों की दिशा बदल जाती है
नियति नहीं है पूर्व निर्धारित
उसको हर क्षण मानव-निर्णय बनाता-मिटाता है.
हां, यह शहर साक्षी रहा है, उन लोगों का, जिन्होंने अनासक्त होकर अपने समय की दुनिया की सबसे ताकतवर सत्ता को चुनौती दी. घोर अंधकार में. पर बदला डाला चीजों को.
हां, यह धरती गवाह रही है, उन मानवीय संकल्पों का, जिन्होंने भारत को बदला, दुनिया को बदला. आज दुनिया में, लीडरशीप, मोटिवेशन (प्रेरित करने) ट्रेनिंग, वर्कशाप पर अरबों खर्च हो रहे हैं, पर हम एक इंसान खड़ा नहीं कर पा रहे हैं, जो दुनिया में नयी आस्था, नया विश्वास, नये मूल्य, नयी रोशनी भर दे.
पर केपटाउन की इस धरती देखा है कि घोर निराशा, अंधकार और असंभव हालात में कुछेक लोगों ने संकल्प किये और ‘मनुष्यता’ को नया अर्थ दिया. भारत बदला और दुनिया भी बदली. गांधी, गोखले, नेलसन मंडेला, डेसमंड टूटू वगैरह के काया का साक्षी रहा है, केपटाउन.
दिनांक : 17-06-07
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