बहुत से बच्चे सिर्फ इसलिए लड़के-लड़कियों से दोस्ती करते हैं, जिससे वे कह सकें कि उनकी गर्ल या ब्वॉय फ्रेंड है. यह सहीनहीं है. अगर आपको प्रतियोगिता ही करनी है तो पढ़ाई में करिए, जिससे आपका ज्ञान बढ़े, आपके नंबर अच्छे आएं.
आपकी क्लास में, स्कूल में पोजीशन हो.
अब कुछ पेरेंट्स के इमेल. बच्चों के जो मेल बाकी हैं, उन्हें बाद में आपके सामने रखूंगी. एक मां ने लिखा है कि उनकी बेटी इंजीनियरिंग कर रही है. सेकेंड इयर में है. उसका कोई ब्वॉय फ्रेंड नहीं है और इसे लेकर वह कांप्लैक्स्ड हो गयी है. उन्होंने लिखा है कि वह बहुत शर्मीली और इंट्रोवर्ड है. इसीलिए किसी से जल्द दोस्ती नहीं कर पाती. उसकी साथ की लड़कियां ही उसे चिढ़ाती हैं.
जबकि वह कहती है कि उसे कोई लड़का पसंद नहीं, क्योंकि सभी लड़कियों के पीछे घूमनेवाले हैं. जिनसे दोस्ती है भी, तो वे केवल उसके अच्छे दोस्त हैं. उसका मानना है कि उसे वह लड़का पसंद आयेगा जो खास होगा. मैंने उसे शुरू से यही समझाया है कि लड़कों से दूर रहना. जब कभी लगे कि लड़का वाकई कुछ खास है तभी दोस्ती करना और जिसे देख कर हमें भी लगे कि यह हमारी बेटी की पसंद है, कम-से-कम उसकी पर्सनैलिटी और कैरियर अच्छा हो. जिस पर हम फा कर सकें.
हमें इस बात से एतराज नहीं है कि लड़का सजातीय हो या अंतर्जातीय. जिसे हमारी बेटी पसंद करेगी, हम उसी से उसका विवाह करेंगे. मगर उसे कोई पसंद नहीं. यह अच्छी बात है, लेकिन अब वह अपनी क्लासमेट्स की वजह से डिस्टर्ब हो रही है.
आजकल के बच्चों की यह सोच बहुत गलत है. वे खुद भी गलत करते हैं और दूसरे बच्चों को भी टीज करके गलत करने पर मजबूर करते हैं. शायद मेरी बेटी की तरह और भी बेटियां हों, जिन्हें अपने दोस्तों की वजह से ऐसी सिचुएशन का सामना करना पड़ रहा हो! अगर वह इन बातों से दूर हैं, तो दूसरी लड़कियां क्यों मजबूर कर रही हैं कि वह भी ब्वॉय फ्रेंड के बारे में सोचे.
वाकई उनका मेल पढ़ कर लगा कि अगर ऐसा भी होता है, तो गलत है. मैं बार-बार सभी बच्चों को यही समझाने का प्रयास कर रही हूं कि वे पढ़ाई पर ध्यान दें और जो मेल मैंने आप सबके सामने रखे, उसमें बच्चों ने जो बातें बतायीं, वे उनके जीवन में घटीं. जिसकी वजह से बच्चे तनाव और डिप्रेशन में रहे. उसमें से कुछ भी नया नहीं था, लेकिन उनके साथ तो पहली बार ही हुआ. जिसके साथ होता है उसे जरूर लगता है कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ?
इसीलिए वह परेशान होता है. जैसा इस इमेल से स्पष्ट है कि उसकी मां ने उसे अच्छी तरह से पाला, अच्छी शिक्षा और संस्कार दिये. कहीं कोई चूक नहीं हुई. मगर जब वह बच्ची घर से बाहर निकली तो उसकी फ्रेंड्स द्वारा ताने देने पर उसे यह लगने लगा कि उसका कोई ब्वॉय फ्रेंड नहीं.
अगर कोई भी बेटी ऐसा सोच रही है, तो प्लीज ऐसा न सोचे. हो सकता है कोई आपके लायक हो ही नहीं. उस बेटी के साथ सभी बेटियों को सोचना चाहिए कि जिंदगी हमारी है. हमारी जिंदगी में कोई भी बदलाव दूसरों के कहने से नहीं होगा. आखिर यह आप सबकी जिंदगी का सवाल है. एक गलत कदम और पूरा जीवन बरबाद.
शादी का फैसला सोच-समझकर करना चाहिए. जब आप कोई खरीदारी करते हैं, तो बहुत सोच समझकर वह सामान लेते हैं जो कुछ समय के लिए ही होता है. विवाह तो पूरे जीवन का प्रश्न है, उसमें जल्दीबाजी क्यों? गर्लफ्रेंड या ब्वॉयफ्रेंड भी सोच-समझकर बनाने चाहिए. सबसे बड़ी बात होती है कमिटमेंट की. विवाह एक बार ही होता है.
जैसी उस बेटी की सोच है, वैसी सोच अगर सभी लड़कियों की हो जाये, तो जो रिश्ते बनने से पहले ही टूट जाते हैं या जिन्हें धोखा मिलता है, कम-से-कम वह नहीं होगा. बच्चे सोच-समझकर फैसला लेंगे और तब लेंगे जब वे इस तरह के फैसले करने लायक होंगे.
आज के बच्चों को भी सोचना होगा कि गर्ल-ब्वॉय फ्रेंड बनाना स्टेटस सिंबल नहीं है. जैसे एक बेटे का भी मेल था, उसने लिखा था कि उसके फ्रेंड्स और भाई की गर्ल फ्रेंड हैं पर मेरी नहीं, इसलिए मुङो बहुत खराब लगता है. बच्चों को समझना होगा कि फ्रेंड तो फ्रेंड है.
पढ़ाई के समय में तो इस तरह की बातें भी नहीं सोचनी चाहिए. बहुत से बच्चे इसलिए लड़के-लड़कियों से दोस्ती करते हैं, जिससे वे कह सकें कि उनकी गर्ल या ब्वॉय फ्रेंड है. यह तरीका सही नहीं है. अगर आपको प्रतियोगिता ही करनी है तो पढ़ाई में करिए, जिससे आपका ज्ञान बढ़े, आपके नंबर अच्छे आएं. आपकी क्लास में, स्कूल में पोजीशन हो. प्रतियोगिता परीक्षा में आप राज्य का ही नहीं, देश का नाम रोशन करें.
यह वह खुशी है, जिसे आप अपने माता-पिता के आंचल में गर्व के साथ सजाएंगे. साथ ही अपने लिए बेहतर भविष्य की राह तैयार करेंगे. राह एक दिन में नहीं बनती. उसके लिए प्रयासरत रहना होगा. एक बार आपके जीवन का हाइ-वे बन गया, तो आप ताउम्र उस पर फर्राटे से दौड़ेंगे.
उसके बाद जमाना आपका है. आप जिससे प्यार करते हैं, उसके माता-पिता से गर्व के साथ उसका हाथ मांग सकते हैं. अच्छे इनसान की अलग पहचान होती है. आप क्या कर रहे हैं, क्या कमा रहे हैं, कैसी सोच है, कैसा व्यक्तित्व है, इन बातों का बहुत प्रभाव पड़ता है. सबसे बड़ी बात अगर आप अपने पैरों पर खड़े हैं, तो सहारे की जरूरत नहीं पड़ेगी मगर माता-पिता के सहारे की जरूरत आपको हर कदम पर पड़ेगी.
वे आपके सबसे बुद्धिमान और परिपक्व मित्र होते हैं. जिसके पास आप कभी भी, किसी समय, किसी भी परेशानी में अधिकार से जाते हैं. इसलिए जब वे आपको समझाते हैं, बताते हैं, तो उनकी बात जरूर सुनिए. देखा-देखी में गलत राह पर मत चलिए.
(क्रमश:)