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सभी खुद को सुधारें तभी समाज में आयेगा बदलाव

एक मां का मेल है. उनके तीन बच्चे हैं, 20 व 17 वर्ष के दो बेटे और 14 वर्षीया बेटी. वह कॉलेज में लेक्चरर हैं. उनकी बात बहुत महत्वपूर्ण है. उन्होंने लिखा है- ‘‘मेरे दो बेटे हैं और दोनों की सोच में बहुत अंतर है. बड़ा बेटा कम गुस्सेवाला है, जबकि छोटे को बहुत गुस्सा […]

एक मां का मेल है. उनके तीन बच्चे हैं, 20 व 17 वर्ष के दो बेटे और 14 वर्षीया बेटी. वह कॉलेज में लेक्चरर हैं. उनकी बात बहुत महत्वपूर्ण है. उन्होंने लिखा है- ‘‘मेरे दो बेटे हैं और दोनों की सोच में बहुत अंतर है. बड़ा बेटा कम गुस्सेवाला है, जबकि छोटे को बहुत गुस्सा आता है.
इसी गुस्से के चलते उसने कई बार अपनी बहन को थप्पड़ मारा, क्योंकि उसने उसकी बात नहीं मानी. बात केवल उसके पहनावे को लेकर है. बड़ा बेटा कहता है कि एक लिमिट तक उसकी बहन जो पहनना चाहे, उसे टोकना नहीं चाहिए, मगर छोटा बेटा उसे मिनी टॉप-स्कर्ट पहनने ही नहीं देता. दो बार उसकी ड्रेस काट दी. वह उसे मिनी ड्रेस में बाहर जाने ही नहीं देता. जबसे मेरा बड़ा बेटा एमबीबीएस करने बाहर गया, छोटा और भी सतर्क हो गया है. जब भी मैंने उसे समझाना चाहा, तो उसका जवाब था कि मैं जानता हूं लड़के कैसे होते हैं, कैसे देखते हैं? मैं नहीं चाहता कि मेरी बहन को कोई गलत नजर से देखे.
इस कारण मेरी बेटी बहुत परेशान रहती है. वह तो अभी छोटी है और नयी-नयी तरह के लेटेस्ट डिजाइन के कपड़े पहनना चाहती है. हां, दुनिया की नजरों में जरूर बड़ी हो गयी है. वैसे भी जब इस समाज में आदमी 6 वर्ष की मासूम को नहीं छोड़ता, उसमें भी उसे औरत दिखती है, तो मेरी बेटी तो 14 वर्ष की है. कभी-कभी लगता है क्या दूसरों के कारण मेरी बेटी जीना छोड़ दे? फिर एक मां होने के नाते मुङो बेटे की बातें सही लगती हैं. हममें से कोई भी लड़कों-पुरु षों की मानसिकता नहीं बदल सकता.
समाज में हर तरह के लोग हैं, मैं किस-किसके विचार बदलूंगी? इसीलिए परेशान हो जाती हूं. मेरी तरह मेरी फ्रेंड्स भी अपनी बेटियों को लेकर परेशान हैं. मेरा छोटा बेटा बड़ा हो गया है. वह जानता है कि लड़के राह चलती लड़कियों पर कैसे नजरें गड़ाते हैं. मेरी समझ नहीं आता क्या करूं. मुङो लगता है मेरा बेटा ही शायद सही है.’’
उनकी परेशानी जायज है. उन्हें बेटी की स्वतंत्रता और उस पर नियंत्रण दोनों जरूरी लग रहे हैं. यह केवल उनकी परेशानी नहीं, बल्किसभी बेटियों के माता-पिता की है. उनका बेटा बड़ा हो गया है. उसे अच्छी तरह पता है कि लड़के कैसे लड़कियों को घूरते हैं. इसलिए वह अपनी बहन को उनकी नजरों से बचाना चाहता है. वह बेटा किसी हद तक सही है. जब वह अपनी बहन की इतनी फिक्र करता है तो संभव है कि वह लड़कियों से छेड़छाड़ न करता हो. यही बात लड़कियों को तंग करनेवाले लड़कों को समझनी होगी कि उनकी बहनें और मां भी बाहर निकलती हैं.
ऐसी ही बद्तमाजी दूसरे लड़के उनकी बहनों-रिश्तेदारों के साथ करें तो उनका भी खून खौलेगा. सब खुद को सुधारें तो समाज में बदलाव आयेगा.
सबसे अहम बात तो बेटियों को समझनी होगी. वे बड़े शहरों में नहीं हैं. जो बड़े शहरों में हैं, वहां भी उन्हें सड़क पर चलनेवाले एक जैसे ही मिलेंगे. सड़क पर पढ़े-लिखे, अनपढ़, संस्कारी, गुंडे-मवाली, सड़कछाप, बिगड़े जानवर हर तरह के लोग चलते हैं. वैसे भी उच्च वर्गीय परिवार की लड़कियां कैसा भी ड्रेस पहनें, वे गाड़ियों में चलती हैं, उन्हें सड़क पर हमारी तरह पैदल नहीं चलना पड़ता.
लोगों की मानसिकता नहीं बदली जा सकती. गंदी मानसिकता के लोग जब लड़कियों को घूरते हैं, तो उनके अंदर का जानवर भड़कता है. कुछ न कर पाने पर वे मासूम बच्चियों, अबलाओं, दिशा-मैदान के लिए गयीं लड़कियों को ही अपना निशाना बनाते हैं. वे तो मिनी ड्रेस में दिशा-मैदान के लिए नहीं जातीं, मगर हमें यह सोचना चाहिए कि जब हम दुनिया नहीं बदल सकते, तो बेहतर है खुद में बदलाव लाना.
आप मां-पापा के साथ हैं, तो मरजी की ड्रेस पहनें, लेकिन अकेले जा रही हैं, तो संभल कर रहिए. आपकी सुरक्षा-सलामती ही बड़ों का लक्ष्य है. बारिश में हम छाता लेकर या रेनकोट पहन कर निकलते हैं. दोनों में से कुछ नहीं है, तो बारिश रु कने का इंतजार करते हैं. अगर हम बिना छतरी या बरसाती पहने बिना निकलेंगे तो भीगना तय है.
वह बारिश तो थम जाती है, मगर हमारे समाज की गंदी मानसिकता न जाने कब थमेगी? घर के बाहर कचरा हो तो हम दरवाजा बंद कर लेते हैं. जहां कचरा होता है, उधर से जाना छोड़ देते हैं. अगर उसी रास्ते से जाना मजबूरी है तो नाक पर कपड़ा बांध लेते हैं. जब हम अपने रास्ते और अन्य बाधाओं के लिए इतनी एहतियात बरतते हैं, तो हमारी जिंदगी की भलाई के लिए तो हमें संभल कर रहना ही चाहिए. अगर आपके भाई, मम्मी-पापा आपकी भलाई के लिए कुछ समझाएं, तो आपको जरूर समझना चाहिए.
आप बेटियां तो माता-पिता की जान और शान हैं. भाइयों का अभिमान हैं. उस अभिमान को बनाये रखना आपके हाथों में है. सच यही है जिन मासूम बच्चियों के साथ गलत होता है, उसमें उनकी ड्रेस का कुसूर नहीं है. वे तो यह भी नहीं जानतीं कि जो कुछ उनके साथ हुआ, वह केवल लड़की की देह के कारण हुआ. आप अपने आस-पासवालों को नहीं बदल सकतीं. सभी पुरु ष-लड़के एक जैसे भी नहीं होते. लेकिन ऐसे लोग हैं न समाज में, जो इस तरह की घटनाओं को अंजाम देते हैं? उनसे बच कर रहना ही विकल्प है.
मां अपने बच्चों को बहुत चाहती है. बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित भी रहती हैं. वह आपको गगन में बेखौफ उड़ते देखना चाहती हैं. साथ ही समाज की गंदी नजरों से भी बचाना चाहती हैं. इसलिए प्लीज, आप सभी बेटियां मां का कहना मान कर उनकी परेशानी कम करने का प्रयास कीजिए.
(क्रमश:)

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