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बढ़ती उम्र का दुश्मन है अल्जाइमर

अकसर उम्रदराज लोगों में दिमाग की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं. इससे छोटी-छोटी यादें दिमाग से मिटने लगती हैं. लोग इसे आम समस्या जान कर इलाज नहीं कराते और आगे जाकर यह अल्जाइमर का गंभीर रूप ले लेता है. यदि शुरुआत में समुचित इलाज कराया जाये, तो व्यक्ति बहुत हद तक सामान्य जीवन जी सकता […]

अकसर उम्रदराज लोगों में दिमाग की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं. इससे छोटी-छोटी यादें दिमाग से मिटने लगती हैं. लोग इसे आम समस्या जान कर इलाज नहीं कराते और आगे जाकर यह अल्जाइमर का गंभीर रूप ले लेता है. यदि शुरुआत में समुचित इलाज कराया जाये, तो व्यक्ति बहुत हद तक सामान्य जीवन जी सकता है. हमारे विशेषज्ञ बता रहे हैं किन-किन तरीकों से इस रोग को किया जा सकता है कंट्रोल.
दिमाग में महत्वपूर्ण रसायनों की हो जाती है कमी
हर व्यक्ति में यह अलग-अलग गति से बढ़ता है. इस रोग के बढ़ने के साथ-साथ दिमाग की संरचना और रसायन में बदलाव होता है. इसके कारण दिमाग की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है और वे धीमी गति से मरती जाती हैं. दिमाग में ‘प्लाक’ और ‘टैंगल’ नामक सामग्री जमने लगती है. इससे तंत्रिका कोशिकाओं के काम करने और एक-दूसरे के साथ संवाद का तरीका बाधित होता है और प्रभावित तंत्रिका कोशिकाएं अंतत: नष्ट हो जाती हैं.
जब किसी व्यक्ति को अल्जाइमर रोग होता है, तो उसके ब्रेन में कुछ महत्वपूर्ण रसायनों की कमी भी हो जाती है. इन रसायनों के घटे हुए स्तर का मतलब है कि संदेश ब्रेन में उतनी अच्छी तरह संचारित नहीं होते, जितने होने चाहिए. अल्जाइमर रोग धीरे-धीरे शुरू होता है और याददाश्त धीरे-धीरे कम होने लगती है. इसका कारण यह है कि ब्रेन में शुरू के बदलाव अक्सर उस भाग में होते हैं, जो याददाश्त और सीखने की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं.
क्या है अल्जाइमर या डिमेंशिया
इस रोग में याददाश्त खोने, हमेशा कनफ्यूज रहने आदि समस्याएं होती हैं. मूड या व्यवहार में बदलाव भी हो सकता है. समय के साथ रोग बढ़ता है. वाहन चलाने, पैसे के व्यवहार में, दवा लेने, खाना पकाने, कपड़े पहनने और नहाने जैसे काम कर पाने की क्षमताओं में भी परिवर्तन देखने को मिलता है.
अल्जाइमर डिमेंशिया रोग का ही एक हिस्सा है. अल्जाइमर के अलावा वेस्कुलर, लेवी बॉडीज और फ्रंटोटेंपोरल डिमेंशिया भी होते हैं. बुढ़ापा, जीन, स्वास्थ्य और जीवन-शैली इस रोग के प्रमुख कारण हैं. यह 65 वर्ष के लोगों को ज्यादा प्रभावित करता है. 65 से ज्यादा उम्र के 14 लोगों में से एक को और 80 से ज्यादा की उम्र के छह लोगों में से एक को यह रोग होता है. यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा होता है.
अल्जाइमर में होमियोपैथी इलाज
इस रोग में निमA होमियोपैथी दवाएं काफी कारगर पायी गयी हैं –
– मैडोरीहिनम : याददाश्त में कमी, ऐसा लगे कि पागल हो जायेंगे और रोग से कभी मुक्ति नहीं मिलेगी. अंधेरे में डर लगे और हमेशा लगे की कोई पीछा कर रहा है. आप सीएम शक्ति की दवा, चार बूंद महीने में एक बार लें.
– अनासिड्रीनम ओरिएंटलिज : जब जाने-पहचाने लोगों यहां तक कि अपना नाम भी याद न रहे, मानसिक तनाव से भयंकर याददाश्त की कमी, चिड़चिड़ापन, देखने, सूंघने एवं सुनने की शक्ति में कमी हो. किसी भी काम में मन न लगे, एबसेंट माइंडेड हों, बार-बार हर बात पर कसम खाना एवं गंदे शब्दों का उपयोग, शकी मिजाज हो, तब 200 शक्ति की दवा चार बूंद रोजाना सुबह लें. रोग में सुधार देखने को मिलेगा.
– कॉनियम मैक : याददाश्त में कमी, लोगों से मिलना न चाहें, मगर अकेले रहने पर भी डर लगे, व्यवसाय में मन न लगे, मानसिक काम जरा-सा भी बरदाश्त न हो, तारीख एवं दिन भी याद न रहे, तब 200 शक्ति की दवा चार बूंद रोज सुबह लें.
– एनजीएक्स मोछट्टा : याददाश्त इतनी कमजोर हो कि कुछ पल पहले किये गये काम भी याद न रहें, तब 200 शक्ति दवा चार बूंद रोज सुबह लें.
– हेजोसकाइमस नाइगर : याददाशत की कमी, भयंकर शकी मिजाज, बिना मतलब के हमेशा हंसते रहना, गंदी हरकतें करना, दूसरों से जलते रहना, हमेशा घर से भाग जाना, तब 200 शक्ति की दवा चार बूंद रोज सुबह लें.
(डॉ एस चंद्रा, होमियोपैथी विशेषज्ञ से बातचीत)
कैसे लड़ें अल्जाइमर से ऐसे होता है इसका इलाज
अल्जाइमर का ठोस इलाज नहीं है, लेकिन ऐसी दवाइयां और इलाज हैं, जो कुछ लक्षणों में राहत दे सकते हैं. इनसे बहुत से लोग अनेक वर्षो तक अल्जाइमर या डिमेंशिया के साथ सामान्य जीवन बिता सकते हैं. अल्जाइमर रोग के इलाज के लिए चार दवाइयां विकसित की गयी हैं- डोनेपेजिल, रिवास्टिग्मीन, गैलेंटामीन और मिमेंटीन. मरीजों को कुछ अन्य उपायों से भी लाभ मिल सकता है, जैसे-अतीत के बारे में बात करना, फोटो या संगीत के रूप में संकेतों का इस्तेमाल करना. इसके मरीजों में डिप्रेशन हो सकता है. उनके लिए एंटीडिप्रेसेंट दवाएं दी जाती हैं.
मनोचिकित्सा : मनोचिकित्सक लोगों को यह समझाने में मदद करते हैं कि उनके व्यक्तित्व और जीवन के अनुभव कैसे उनके संबंधों, विचारों, भावनाओं और व्यवहार को प्रभावित करते हैं.
इन्हें समझने से लोगों के लिए मुश्किलों को संभालना आसान हो जाता है. कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) रिश्तों में बदलाव के कारण पैदा होनेवाली समस्याओं को हल करने में मददगार हो सकती है. मनोचिकित्सा से डिमेंशिया के मरीजों में डिप्रेशन, चिंता पैदा करनेवाले व्यवहार के इलाज में मदद मिल सकती है. सीबीटी का लक्ष्य लोगों को उनके सोचने और काम करने के तरीके को बदलने में मदद करना है. याददाश्त संबंधी समस्याओं का सामना करने में मदद के लिए मरीज डायरी का भी प्रयोग कर सकते हैं.
आप उसे कैलेंडर घड़ी की बगल में भी रख सकते हैं. साथ ही चाबियां, चश्मे जैसी महत्वपूर्ण चीजें एक ही जगह पर रखने की आदत डालनी चाहिए.
सक्रिय और सामाजिक रहने की कोशिश करें : इससे आपको कौशल और याददाश्त तथा आत्मसम्मान बनाये रखने, नींद लाने और तरोताजा रहने में मदद मिलेगी. जहां तक संभव हो, अपनी पसंद का काम करते रहें, चाहे आपको उसे कुछ अलग तरीके से ही क्यों न करना पड़े.
केस
80 साल के व्यक्ति को ओपीडी में लाया गया. उन्हें याददाश्त में कमी, सही से न बोल पाना, लोगों को पहचान नहीं पाना, नींद में कमी, कभी-कभी चिल्लाना आदि समस्याएं होती थीं.
ये समस्याएं पांच वर्षो से थीं. यह अल्जाइमर्स डिमेंशिया का केस था. इसमें डोनेपेजिल, रिवास्टिग्मीन, गैलेन्टामीन या मिमेंटीन आदि दवाएं दी गयीं, जो जीवन भर चलती हैं. साथ ही दूसरे ग्रुप की दवा, जैसे-नींद के लिए या गुस्सा कंट्रोल करने के लिए भी दी जाती हैं. तीन हफ्तों में मरीज के लक्षणों में काफी हद तक सुधार देखने को मिली.
केस
35 वर्ष कामरीज ओपीडी में लाया गया, जो 15 वर्ष से एल्कोहल ले रहा था. उसमें याददाश्त में कमी, सुस्ती, बेचैनी, नींद में कमी जैसे लक्षण थे. सीटी स्कैन में ब्रेन में सिकुड़न दिखाई दे रही थी, जो एल्कोहल के अधिक सेवन के कारण था. अधिक सेवन से शरीर में थियामिन की कमी हो जाती है, जिससे दिमाग में सिकुड़न हो जाती है. इसकी पूर्ति थियामिन के दवा से की जा सकती है. ये लक्षण डिमेंशिया के हैं. इस केस में तीन हफ्तों में मरीज के इन लक्षणों में काफी सुधार हुआ, साथ ही 25} याददाश्त में भी सुधार देखने को मिला.
केस
एक 67 वर्ष की महिला वार्ड में भरती थी. वह बिस्तर पर ही मल-मूत्र त्याग रही थी. उसे इसकी समझ ही नहीं थी कि यह गलत है. उसे काफी भय भी लगता था. उसे काल्पनिक चीजें दिखाई पड़ती थीं.
वह बच्चों का नाम भी नहीं बता पाती थी. तीन साल में उसका रोग काफी बढ़ गया था. इसमें डोनेपेजिल, रिवास्टिग्मीन, गैलेन्टामीन या मिमेंटीन के साथ एंटी साइकोटिक ड्रग का भी प्रयोग किया गया था. मरीज को साइकोसिस की भी शिकायत होने के कारण उसे साइकोटिक ड्रग दिया गया. यह सीवियर केस था, जो पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ. इलाज जारी है.
सर्पासन पीछे की ओर झुकनेवाला आसन है. यह शरीर के लिए स्फूर्तिदायक है. यह पीठ की मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाता है तथा श्वसन प्रक्रिया में सुधार लाता है.
सर्पासन का अभ्यास पेट और पीठ पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ता है तथा कंधों को मजबूत और लचीला बनाता है. यह कमर की मांसपेशियों को भी काफी मजबूत बनाता है.
आसन की विधि : सर्वप्रथम जमीन के ऊपर कंबल बिछा लें और उसके ऊपर पेट के बल लेट जाएं. हाथों को पीठ के पीछे ले जाएं तथा एक हाथ की कलाई से दूसरे हाथ को पकड़ें या दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसा लें, पर ध्यान रहे दोनों हथेलियां आपस में जुड़ी होनी चाहिए.
अब सिर को जमीन पर रखें, दोनों पैर आपस में सटे हुए हों, तलवा ऊपर की तरफ हो और एड़ियां आपस में जुड़ी रहें. अब पूरे शरीर को शांत और शिथिल बनाने का प्रयास करें. कुछ क्षण के लिए सांसों पर ध्यान केंद्रित करें.
तत्पश्चात लंबी और गहरी सांस लें. जब सांस लेने की क्रिया पूर्ण हो जाये, तो सिर को पीछे की ओर मोड़ जब सिर अधिकतम पीछे की ओर चला जाये, तो धीरे-धीरे कंधों तथा पीठ के ऊपरी भाग को उठाना शुरू करें. इस क्रिया को करने हेतु पीठ की मांसपेशियों को संकुचित करें तथा भुजाओं को तानें, ध्यान रहे कि आपकी केहुनियां सीधी रहें.
अब बिना ताकत लगाये शरीर को यथासंभव ऊपर उठाएं. अंतिम अवस्था में सांस अंदर रोकेंगे. ध्यान रहे, इस अवस्था में शरीर का पूरा भार पेट के मुलायम हिस्से पर रहे. आपके दोनों पैर शिथिल रहेंगे. अभ्यास के दौरान पैर जमीन पर ही रहेंगे और ऊपर नहीं आने चाहिए. सुविधा के अनुसार अंतिम अवस्था में रुकने के पश्चात सांस छोड़ते हुए शरीर को धीरे से जमीन पर ले आएं.
अब इस अवस्था में शरीर को पूर्णत: शांत व शिथिल करने का प्रयास करें. सांस को सामान्य होने दें. इस आसन को पांच बार दुहराएं.
श्वसन : इस अभ्यास में ऊपर उठने के पूर्व प्रारंभिक स्थिति में धीरे-धीरे गहरी श्वास अंदर लें तथा शरीर को उठाते समय व अंतिम अवस्था में सांस अंदर रोकें. जब शरीर को नीचे लाना शुरू करें तब सांस धीरे-धीरे छोड़ें.
अवधि : सर्पासन को कम-से-कम पांच चक्र करना चाहिए किंतु यदि आपकी क्षमता बेहतर है, तो इसकी संख्या को बढ़ाया भी जा सकता है.
सजगता : पूरे अभ्यास के दौरान आपकी सजगता मेरुदंड की मांसपेशियों तथा दोनों भुजाओं के एक समान संकुचन एवं कंधों में होनेवाले विस्तार तथा गरदन में होनेवाले खिंचाव पर होनी चाहिए. अभ्यास के दौरान आप अनाहत चक्र के प्रति सजग रहेंगे.
क्रम : सर्पासन वास्तव में भुजंगासन के अभ्यास के लिए एक अत्यंत अच्छा प्रारंभिक अभ्यास है.
सीमाएं : जिन लोगों को हृदय रोग या उच्च रक्तचाप की शिकायत हो, वे विशेष ध्यान रखें कि अभ्यास के दौरान अपनी क्षमता से अधिक जोर न लगाएं.
ध्यान रखें : आसन का अभ्यास किसी कुशल योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करना उचित है.
इसके प्रमुख लाभ
यह आसन पीठ की मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाता है तथा उदर व श्रोणि अंगों की मालिश करता है. इस आसन का विशेष प्रभाव फेफड़ों पर पड़ता है. फेफड़े करोड़ों सूक्ष्म वायुकोषों से मिल कर बने हैं, जिनका काम ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालना है. इस आसन से ये नन्हे वायुकोष सक्रिय होते हैं तथा फेफड़े लचीले बने रहते हैं. इससे फेफड़ों की कार्यक्षमता और स्वास्थ्य दोनों उत्तम बने रहते हैं.
अधिकांश लोग श्वास लेना ठीक से नहीं जानते हैं और फेफड़े का पूरा उपयोग नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण उनको शारीरिक व मानसिक स्तर पर दुर्बलता का अनुभव होता है. इस स्थिति में सर्पासन एक अत्यंत महत्वपूर्ण आसन है.
आसन की अंतिम स्थिति में शरीर का भार पेट पर पड़ता है, जो ‘डायफ्राम’ को ऊपर छाती की ओर धकेलता है. इससे फेफड़ों के अंदर की वायु पर दबाव पड़ता है, जो निष्क्रिय वायुथैलियों को खोलने में सहायक है. इसके चलते ऑक्सीजन ग्रहण करने और कार्बन डाइऑक्साइड के निष्कासन की प्रक्रिया में सुधार आता है. छाती पर पड़े दबाव से हृदय की मालिश होती है, जिससे यह शक्तिशाली और मजबूत हो जाता है. यह अभ्यास दमा के रोगियों के लिए बहुत उपयोगी है. यह अवरुद्ध भावनाओं को मुक्त करने में भी सहायक होता है.

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