डायबिटीज के मरीजों को उनके शुगर लेवल के अनुसार ही इंसुलिन दिया जाता है. कई बार जब इंसुलिन देने पर भी शुगर लेवल नियंत्रण में नहीं आता तो इंसुलिन की मात्रा को बढ़ानी पड़ती है. कई बार इंसुलिन का लेना नुकसानदायक भी होता है लेकिन हालिया शोध के बाद इस समस्या से भी निजात पाया जा सकता है.
इंसुलिन लेने से डायबिटीज रोगियों को अक्सर सूजन और जलन जैसी शिकायत होती है. कई बार इसकी मात्रा का ज्ञान न रहने पर इंजेक्शन द्वारा लिया गया इंसुलिन शरीर को नीला भी कर सकता है. कई मामलों में इससे संक्रमण का भी खतरा रहता है. इन सभी समस्याओं से बचने के लिए बेल्जियम स्थित यूनिवर्सिटी कैथोलिक डी लौविन के रिसर्चेर्स ने एक शोध किया जिसके परिणामों के बाद इंसुलिन लेना बंद करना पड़ेगा चूंकि यह शोध बताता है की अब इंसुलिन बॉडी में ही पैदा हो सकेगा.
हालिया रिसर्च के अनुसार, टाइप-1 डायबिटीज के इलाज की दिशा में बड़ी कामयाबी हासिल की है. शोधकर्ताओं ने ऐसी कोशिकाएं विकसित करने में सफलता हासिल की है जो इंसुलिन बनाने में सक्षम हैं. इन कोशिकाओं को टाइप-1 डायबिटीज (जन्म से ही होने वाली) पीड़ितों में प्रत्यारोपित करने से इलाज संभव होगा.
टाइप-1 डायबिटीज के इलाज के लिए अग्नाशय में बीटा कोशिकाओं को प्रत्यारोपित करना एक महत्वपूर्ण पद्धति है. बेल्जियम स्थित यूनिवर्सिटी कैथोलिक डी लौविन के शोधकर्ताओं ने पाया कि वयस्क लोगों के अग्नाशय से मिलने वाली एचडीडीसी कोशिकाएं अपनी संरचना बदलने में सक्षम होती हैं. इन कोशिकाओं में हल्के बदलाव से इनमें बीटा कोशिकाओं जैसे गुण पैदा किए जा सकते हैं.
रिसर्च में इसके लिए टाइप-1 डायबिटीज से पीड़ित चूहे पर इस प्रक्रिया का सफल प्रयोग किया. जिसके बाद परिणाम स्वरूप यह बात सामने आई कि बीटा कोशिकाओं पर शरीर का इम्यून सिस्टम हमला करके उन्हें नुकसान पहुंचाता है इन खास कोशिकाओं से इंसुलिन का निर्माण, संग्रह और स्राव सफलतापूर्वक किया जा सकता है.