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हाथी कैंसर का साथी

मनुष्य हमेशा विभिन्न जीवों से अपने लिए कुछ ना कुछ फायदे की चीज हासिल कर ही लेता है. इसी कड़ी में शोधकर्ताओं को चिकित्सा जगत के सामने चुनौती बने कैंसर के प्रसार को रोकने का रास्ता हाथी के डीएनए में दिखाई दिया है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि हाथी के डीएनए में कैंसर कोशिकाओं को […]

मनुष्य हमेशा विभिन्न जीवों से अपने लिए कुछ ना कुछ फायदे की चीज हासिल कर ही लेता है. इसी कड़ी में शोधकर्ताओं को चिकित्सा जगत के सामने चुनौती बने कैंसर के प्रसार को रोकने का रास्ता हाथी के डीएनए में दिखाई दिया है.

शोधकर्ताओं ने पाया है कि हाथी के डीएनए में कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने की विशेष क्षमता होती है. हाथी में ट्यूमर को खत्म करने वाले विशेष जीन टीपी53 की 20प्रतियां सक्रिय होती हैं, जबकि मनुष्य में ऐसे जीन की सिर्फ एक प्रति सक्रिय है.

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि हाथी के डीएनए की सहायता से मनुष्यों में भी कैंसर के प्रसार को रोकना संभव हो सकता है.

शिकागो यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता डॉ. विंसेंट लिंच ने कहा कि माना जाता है कि जो जीव आकार में जितना बड़ा होता है, उसमें कैंसर के प्रसार की आशंका उतनी ही ज्यादा होती है. इसके बावजूद हाथी को कैंसर न होने का कारण उसके डीएनए में मिलने वाला खास जीन ही है.

लिंच ने उम्मीद जताई कि इस जीन के काम करने की प्रक्रिया के आधार पर ऐसी दवा बनाई जा सकती है, जो कैंसर के प्रसार को रोकगी.

लिंच ने कहा कि फिलहाल हम इस बात पर शोध कर रहे हैं कि किसी कोशिका में जीन की ये प्रतियां कैसे काम करती हैं और यह भी पता लगाना है कि इस प्रक्रिया में कुछ और जीन भी भूमिका निभाते हैं अथवा नहीं.

वो कहती हैं, उम्मीद है कि भविष्य में हाथी कैंसर का साथी बन सकेगा.

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