थैलेसीमिया एक अनुवांशिक खून संबंधी बीमारी है, जिसमें रोगी के शरीर में लाल रक्त कण और हीमोग्लोबिन सामान्य से कम होता है. यह आनुवांशिक रोग जितना घातक है, इसके बारे में जागरूकता का उतना ही अभाव है.
सामान्य रूप से शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, परंतु थैलेसीमिया के कारण इनकी उम्र सिमटकर मात्र 20 दिनों की हो जाती है. इसका सीधा प्रभाव शरीर में स्थित हीमोग्लोबीन पर पड़ता है. हीमोग्लोबीन की मात्रा कम हो जाने से शरीर दुर्बल हो जाता है जिसके बाद हमेशा किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है.
पूरे शरीर में ऑक्सीजन के प्रवाह के लिए हीमोग्लोबिन नाम के प्रोटीन की जरूरत होती है और यदि यह न बने या सामान्य से कम हो, तो बच्चे की थैलेसीमिया रोग से ग्रसित होन की आशंका अधिक रहती है, जिसका खून की जांच के बाद ही पता चल सकता है.
थैलेसीमिया मेजर में रोगी को बार-बार खून चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है, जबकि माइनर एक तरह से थैलेसीमिया जीन के वाहक का काम करता है. इसलिए यह जरुरी हो जाता है कि शादी के दौरान खून की जांच के जरिए पता चल सकता है कि पार्टनर में थैलेसीमिया जीन का वाहक है या नहीं.
जानिए क्या है लक्षण…
-सूखता चेहरा
-लगातार बीमार बने रहना
-वजन ना ब़ढ़ना
-चिड़चिड़ापन
-भूख न लगना
-सामान्य विकास में देरी
इन लक्षणों के बाद जरुरी है कि टेस्ट करा लिए जाएं ताकि आगे इलाज और सावधानियां रखी जा सकें.
ऐसे रखें सावधानी..
थेलेसीमिया पीडि़त के इलाज में काफी ज्यादा रक्त चढ़ाने और दवाइयों की आवश्यकता होती है. इस कारण सभी इसका इलाज नहीं करवा पाते, जिससे 12 से 15 वर्ष की आयु में बच्चों की मृत्य हो जाती है. सही इलाज करने पर 25 वर्ष व इससे अधिक जीने की आशा होती है. जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, रक्त की जरूरत भी बढ़ती जाती है.
क्या करें…
-विवाह से पहले महिला-पुरुष की रक्त की जाँच कराएँ
-गर्भावस्था के दौरान इसकी जाँच कराएँ
-रोगी की हीमोग्लोबिन 11 या 12 बनाए रखने की कोशिश करें
-समय पर दवाइयाँ लें और इलाज पूरा लें.