‘भूलने की बीमारी‘ यानी अल्जाइमर. अनियमितताओं के चलते होने वाला यह रोग उम्रदराज लोगों को अपना शिकार बनाता है. इस बीमारी के लक्षणों में याददाश्त की कमी होना, निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना सामान्य लक्षण माने जाते हैं.
रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवनशैली और सर में कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है. ज्यादातर मामलों में 60 वर्ष की उम्र के आसपास होने वाली इस बीमारी का फिलहाल कोई स्थायी इलाज नहीं है.
हालिया हुए एक शोध के अनुसार यदि आप पेट या पीठ के बल सीधा सोने के बजाय तिरछा सोने की आदत डालते हैं, तो अल्जाइमर और पर्किंसंस जैसे न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से बच सकते हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार, तिरछा सोने से दिमाग में मौजूद हानिकारक रासायनिक विलेय या अपशिष्ट विलेय भली प्रकार निकल जाते हैं. दिमाग में अपशिष्ट विलेय या रासायनिक विलेय के जमा होने से अल्जाइमर और दूसरे न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है.
अमेरिका के न्यूयार्क स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ रोचेस्टर के शोधकर्ता मैकेन नेडेर्गार्ड ने कहा, ‘यह पहले ही पता चल चुका है कि नींद के दौरान खलल पड़ने से अल्जाइमर की बीमारी और याददाश्त खोने का खतरा बढ़ जाता है.
लेकिन इसके बाद हमारे शोध में इससे जुड़ी जो नई बात सामने आई है, वह है सोने का तरीका, जो इस विषय में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।‘
अध्ययन के निष्कर्ष में बताया गया कि सोने का तरीका चुनना या अपनाना आराम करने की एक जैविक क्रिया है, जो जागने के दौरान दिमाग में जमा होने वाले मेटाबॉलिक अपशिष्ट को निकालने के लिहाज से महत्वपूर्ण है.
यह शोध पत्रिका ‘न्यूरोसाइंस‘ में प्रकाशित हुआ है.