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रूबर्ब- 48 घंटे में करेगा कैंसर सेल्स का सफाया : रिसर्च

रूबर्ब पौधा जिसे रेवतचीनी और रेवन्दचीनी के नाम से भी जाना जाता है. यह पौधा आयुर्वेदिक दवाइयों में प्रयोग किया जाता है. इस पौधे की पत्तियां ज़हरीली होती हैं लेकिन इसके डंठल दवा के रूप में प्रयोग किये जाते हैं. हालिया हुए यूएस में एक शोध के अनुसार, रूबर्ब पौधे की डंठलों को कैंसर के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 22, 2015 12:47 AM

रूबर्ब पौधा जिसे रेवतचीनी और रेवन्दचीनी के नाम से भी जाना जाता है. यह पौधा आयुर्वेदिक दवाइयों में प्रयोग किया जाता है. इस पौधे की पत्तियां ज़हरीली होती हैं लेकिन इसके डंठल दवा के रूप में प्रयोग किये जाते हैं.

हालिया हुए यूएस में एक शोध के अनुसार, रूबर्ब पौधे की डंठलों को कैंसर के इलाज के लिए प्रयोग में लाया जायेगा. इस शोध में हैरानी भरे परिणाम सामने आए हैं.

विज्ञानिकों द्वारा इस पौधे से कैंसर विरोधी दावा साल भर में बना लेने का दावा किया है. इस पौधे की डंठलों में एक ख़ास ऑरेंज पिगमेंट पाया जाता है जो कैंसर के सेल्स को 48 घंटे के अन्दर ही खत्म करने की ताकत रखता है.

शोध में इस डंठल का प्रयोग के जरिए दो ही दिनों में लयूकैमिया के आधे से ज्यादा सेल्स को यह पौधा नष्ट कर चुका था.

जॉर्जिया की विनशिप कैंसर इंस्टीट्यूट और एमोरी यूनिवर्सिटी द्वारा 2000 कॉम्पोनेन्ट के साथ इसका परिक्षण किया गया. जिसमें विज्ञानिकों ने पारीटिन पाया. जो एंटी-कैंसर ड्रग के रूप में जाना जाता है.

शोध में चूहों पर 11 दिनों पारीटिन का प्रयोग कर पाया की यह फेफड़ों के कैंसर में कारगर है. इसके साथ ही यह ब्रेन और गर्दन के ट्यूमर को भी ख़त्म कर सकता है.

शोध टीम का कहना है कि इस पौधे जिसे एक प्रकार का फल भी कहा जाता है के आधार पर कैंसर को ख़त्म करने के लिए नई दवाओं को बनाने में सहयोग मिलेगा. इसके परिणाम कीमोथेरेपी की तरह आने वाले सालों में इजात कर लिए जाएंगे.

विशेषज्ञों का कहना है कि पारीटिन का प्रयोग फफूंदी रोधक के रूप में किया जा चुका है लेकिन दवाओं के रूप में इसका प्रयोग इस अध्ययन के बाद किया जायेगा.

शोध में जुड़े प्रोफेसर चेन का कहना है कि कैंसर के 6PGD स्तर को एक्टिव करने के लिए रूबर्ब का प्रयोग किया जाना, कैंसर को खत्म करने के लिए जरुरी है. इसके प्रयोग से कैंसर 6PGD स्तर तेज़ी से बढ़ेगा जिससे कैंसर सेल्स जल्दी ही नष्ट हो जाएंगे.

यह शोध जर्नल नेचर सेल बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है.

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