बच्चों को और उनकी खुशियों को समझिए
वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com जो बच्चे कैरियर बना कर आगे बढ़ रहे हैं, मेरी उन सभी के माता-पिता से गुजारिश है कि बच्चों को समझें. उनके फैसले पर अवश्य गौर करें. आपने अभी तक उनकी सभी ख्वाहिशें पूरी की हैं, मनपसंद जीवनसाथी के साथ जीवन जीने की यह खुशी अपने बच्चों […]
वीना श्रीवास्तव
साहित्यकार व स्तंभकार, इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com
जो बच्चे कैरियर बना कर आगे बढ़ रहे हैं, मेरी उन सभी के माता-पिता से गुजारिश है कि बच्चों को समझें. उनके फैसले पर अवश्य गौर करें. आपने अभी तक उनकी सभी ख्वाहिशें पूरी की हैं, मनपसंद जीवनसाथी के साथ जीवन जीने की यह खुशी अपने बच्चों को दे दीजिए. देखिए फिर आपके बच्चे जीवन भर कितना खुश रहते हैं. वे जीवन गुजारेंगे नहीं, बल्कि जियेंगे.
एक महिला डॉक्टर ने लिखा है- “मैं एक लड़के को नौ वर्षों से चाहती हूं. हम दोनों शादी करना चाहते हैं. लेकिन मेरे पापा तैयार नहीं हैं, क्योंकि लड़के के पिता उसी विभाग में काम करते हैं, जिसमें मेरे पापा करते हैं. लेकिन वे लोअर पोस्ट पर हैं. लड़का महाराष्ट्र में बिजनेस कर रहा है, चीजें खड़ी कर रहा है. मेरे पापा इसलिए भी तैयार नहीं हैं, क्योंकि जितनी उनकी उम्मीद है, लड़का उससे कम कमा रहा है. वह अभी 27 साल का ही है, लेकिन वे जो लड़का देखते हैं, वह 30-31 साल का होता है, तो ज्यादा तो कमायेगा ही. जब मुझे कोई पसंद ही नहीं, तो क्या फायदा शादी का? मैंने यह भी कहा कि आप जाकर देख आइए कि लड़का कैसे-क्या कर रहा है, मगर वह बात न मान कर मेरी शादी के लिए लड़के देख रहे हैं.
केवल पापा की पोस्ट के कारण अपना नौ वर्षों का संबंध कैसे तोड़ दूं?” ऐसा नहीं कि हमेशा गलतियां बच्चों से ही हों, बड़ों से भी हो सकती है. ये बच्चे चार वर्षों से अलग शहरों में हैं, लेकिन उनका प्यार बरकरार है. पेरेंट्स बच्चों का भला चाहते हैं. उनका घर-संसार सुखी देखना चाहते हैं.
वे बच्चों का विवाह वहां करना चाहते हैं जहां उन्हें तकलीफ न हो. बेटी है तो ससुराल में राज करे और बेटा है तो बहू ऐसी आये, जो घर बनाये. रिश्तों को और मजबूत करे. आप सभी किस्मत को मानते होंगे, हैं न? कहीं-न-कहीं मन में होता है कि जो किस्मत में लिखा है, वही मिलेगा.
फिर आप बच्चों के फैसले को एहमियत क्यों नहीं देते? अगर किशोरावस्था में वे कोई ऐसा (प्रेम व विवाह) निर्णय लें, तो उनकी बातें हरगिज नहीं माननी चाहिए, प्रेम-प्रसंग से दूर रहने के लिए समझाइए, लेकिन एक बेटी जो प्रोफेशनल कोर्स कर चुकी है, समझदार है, उसके फैसले को स्वीकाराना चाहिए. मैं किस्मत की बात कर रही थी. मान लीजिए मेरी दो बेटियां हैं. बड़ी बेटी किसी को चाहती है. लड़का अच्छा है, मगर वह 20,000 ही कमाता है.
इसलिए मैं उसकी शादी के खिलाफ हूं. वह बार-बार मिन्नतें करने के साथ कई वर्षों तक मेरी रजामंदी का इंतजार करती है. फिर मेरी मरजी के खिलाफ शादी कर लेती है, क्योंकि मैंने उसके लिए कोई और विकल्प छोड़ा ही नहीं. मैं दूसरी बेटी की शादी धूमधाम से ऐसे लड़के से करती हूं, जिसका बिजनेस है. उसे प्रतिमाह 70-80 हजार तक का मुनाफा होता है.
मैं अपने बड़े दामाद को वह सम्मान भी नहीं देती, जो उसका हक है, क्योंकि मेरी नजर में वह छोटा है, कम जो कमाता है. कुछ वर्षों में ही अपनी मेहनत और काबिलियत से बड़ा दामाद एक लाख तक कमाने लगता है और छोटे दामाद को व्यापार में बहुत नुकसान होता है. फिर मुझे ही उन्हें सहारा देना पड़ता है, क्योंकि मैं अपनी बेटी को उस हाल में नहीं देख सकती. इसे सिर्फ कहानी की तरह मत पढ़िए. यह जीवन की हकीकत है. ऐसे कई किस्से आपने देखे-सुने होंगे. किस्मत है, तो रंक भी राजा हो जाता है और किस्मत साथ नहीं है, तो राजा-महाराजा भी दर-बदर की ठोकरें खाते हैं. किस्मत कब किसको फर्श से अर्श पर बिठा दे और कब किसको धूल चटा दे, किसी को नहीं पता. मेहनत और लगन से इनसान बहुत कुछ कर सकता है. प्यार में तो लोग बड़ी-बड़ी बाधाएं पार कर जाते हैं.
घरवालों का सहयोग हो तो क्या आपको अपनी समस्याएं छोटी नहीं लगतीं? अगर भाग्य में सुख है तो झोपड़े भी महल बन जायेंगे. धन-ओहदे नहीं, इनसान की कद्र करिए. काबिलियत से धन कमाया जा सकता है, मगर धन से काबिलियत नहीं खरीदी जा सकती.
ये बातें केवल कहने की नहीं, बल्कि करने के लिए भी होनी चाहिए. अगर आप दोहरा व्यक्तित्व जी रहे हैं, तो कृपया इस दोहरे चरित्र के चोले से बाहर आइए. क्या परिवार द्वारा हुए विवाह में धोखे नहीं मिलते, तलाक नहीं होते, लड़ाई-झगड़े नहीं होते? तो क्यों माता-पिता बच्चों की पसंद को हमेशा हेय दृष्टि से देखते हैं?
आप बच्चों को किशोरावस्था में जरूर रोकिए कि वे इन बातों में पड़कर जीवन न बरबाद करें, लेकिन जब वे वयस्क हैं, कैरियर बना चुके हैं, कमा रहे हैं, भला-बुरा सोच सकते हैं, तो उनके फैसलों पर आपत्ति क्यों? आखिर कभी तो उन्हें उनके अनुसार जीने दीजिए! क्या आपको अपनी परवरिश, अपने संस्कारों पर भरोसा नहीं कि वे जो फैसला लेंगे, सही होगा! आपने उनको अच्छी शिक्षा दी, इस काबिल बनाया कि वे सही-गलत समझ सकें. क्या आप हमेशा उनके साथ रहेंगे? उन्हें आत्मनिर्भर बनाइए. स्वयं उचित फैसले लेने के लिए उनका आत्मविश्वास बढ़ाइए. उनकी अपनी जिंदगी है, उन्हें अधिकार है अपनी तरह से जीने का.
जो बच्चे अपना कैरियर बनाकर आगे बढ़ रहे हैं, मेरी उन सभी के माता-पिता से गुजारिश है कि बच्चों को समझें. उनके फैसले पर अवश्य गौर करें. आपने अभी तक उनकी सभी ख्वाहिशें पूरी की हैं, मनपसंद जीवनसाथी के साथ जीवन जीने की यह खुशी अपने बच्चों को दे दीजिए. देखिए फिर आपके बच्चे जीवन भर कितना खुश रहते हैं. वे जीवन गुजारेंगे नहीं, बल्कि जियेंगे. केवल इसलिए मना करना कि किसी के पिता छोटी पोस्ट पर हैं या लड़का कम कमाता है, सही नहीं है.
अगर बच्चे किसी को चाहते हैं और आप उनका विवाह कहीं और करते हैं तो एक साथ कई जीवन बरबाद करेंगे. साथ ही जो बच्चे नया जीवन शुरू करेंगे, वह तो धोखे पर होगा. ऐसा न हो कि बाद में बातें पता लगे और जीवन नरक बन जाये. अगर बच्चे आपका मान रख कर आपकी बात, आपके फैसले मानते हैं, तो आपका भी दायित्व है कि बच्चों और उनकी खुशी को समझिए.
(क्रमश:)