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जब बच्चे के नाक से आने लगे खून

डॉ अमित कुमार मित्तल सीनियर कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजी, कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल, पटना मोहन पांच साल का है. उसके पैर और हाथ में छोटे-छोटे दाने हो गये थे, जो दवाइयों से ठीक नहीं हो रहे थे. उसके नाक से कभी-कभी हल्का खून भी आ रहा था. मोहन खेलने-कूदने में ठीक है. उसे कोई बुखार आदि भी […]

डॉ अमित कुमार मित्तल
सीनियर कंसल्टेंट नियोनेटोलॉजी, कुर्जी होली
फैमिली हॉस्पिटल, पटना
मोहन पांच साल का है. उसके पैर और हाथ में छोटे-छोटे दाने हो गये थे, जो दवाइयों से ठीक नहीं हो रहे थे. उसके नाक से कभी-कभी हल्का खून भी आ रहा था. मोहन खेलने-कूदने में ठीक है. उसे कोई बुखार आदि भी नहीं है. खून जांच में प्लेटलेट्स की माप 50 हजार आयी. यह रोग इम्यून थ्रॉम्बोसायटोपेनिक परपूरा (आइटीपी) है. आमतौर पर बच्चे के शरीर में 1.5 से 4 लाख/ क्यूबिक एमएम होता है. प्लेटलेट‍ की संख्या कई रोगों में कम हो जाती है, जैसे-डेंगू, इन्फेक्शन, कैंसर, आइटीपी आदि.
आइटीपी एक से सात साल के बच्चों में होता है. इस रोग में बच्चे में प्लेटलेट‍्स एक लाख से नीचे पहुंच जाते हैं. कभी-कभी ये खतरनाक रूप से 5 हजार के नीचे तक पहुंच जाती हैं. बच्चे को 15-20 दिन पहले खांसी, सर्दी और बुखार की शिकायत हो सकती है.
इस रोग में मुख्यत: शरीर में छोटे-छोटे बिना दर्द या खुजली के दाने हो जाते हैं. ये लाल या गहरे लाल रंग के होते हैं. नाक या मुंह से खून आ सकता है. कुछ रोगियों में दिमाग में भी रक्तस्राव हो सकता है. रोग छह माह से ज्यादा होने पर यह क्रॉनिक हो सकता है.
इलाज : इसमें रोग के कंफर्म होने के बाद ही डॉक्टर दवा देते हैं. कभी-कभी बोन मेरो की जांच भी जरूरी होती है क्योंकि ऐसे लक्षण ब्लड कैंसर में दिखते हैं. इलाज के रूप में मुख्य रूप से कॉर्टिकोस्टेरॉइड दिया जाता है. चूंकि यह रोग बार-बार हो सकता है, इसलिए शिशु रोग विशेषज्ञ के संपर्क में लगातार बने रहना चाहिए.

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