पार्किंसन एक ऐसी बीमारी है, जिससे जोड़ों में बहुत कमज़ोरी आ जाती है और बोलने में भी दिक्कत आती है, लेकिन इस बीमारी के पीछे का कारण अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है. अब तक किए गए शोध में पता चालता है कि इस बीमारी के पीछे अनुवांशिक कारण है.
भारत में पार्किंसन के मरीजों की कमी नहीं है लेकिन ब्रिटेन में हर पांच सौ लोगों में से एक व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है. पूरे ब्रिटेन में पार्किसंस के एक लाख 27 हज़ार मरीज़ हैं.
पार्किंसन की अब तक इलाज की कोई निश्चित विधि नहीं तलाशी जा सकी है. लेकिन हाल ही में ब्रिटेन में रहने वाली एक जॉय नामक महिला ने इस दिशा में डूबते को सहारा जैसा काम किया है.
यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ बायोलॉजिकल साइंसेज़ में पार्किंसंस यूके के डॉक्टर टिलो कुनाथ ने इसको जांचने के लिए छह रोगियों और छह स्वस्थ लोगों को लेकर परीक्षण किया.
डॉ. ने बताया कि दो ग्रुप में बांटे गए इन लोगों को हमने एक पूरा दिन टी-शर्ट पहनने के लिए दिए और फिर वापस लेकर उन्हें कूट भाषा में निशान लगाकर पैक कर दिया. इसके बाद इन टी-शर्ट को जॉय को दिया गया और डॉ. ये देख कर चौंक गए कि उनका आंकलन 12 मामलों में से 11 में सही निकला.
डॉ. ने बताया कि जो एक व्यक्ति अलग निकला उसे हमने जाँच के बाद निरोगी पाया लेकिन जॉय इस बात पर राजी नही थी उनके अनुसार वो व्यक्ति भी पार्किंसन का मरीज होने वाला था. लेकिन इस परीक्षण के आठ महीने बाद हम इस बात से तब हैरान हो गए जब उस व्यक्ति को भी पार्किंसन से पीड़ित होने की बात पता चली.
वैज्ञानिकों मानते हैं कि पार्किसंस की शुरुआत में त्वचा में कुछ बदलाव आता है जिसका संबंध एक खास किस्म की गंध से होता है.
विज्ञानिक उन अणुओं का पता लगा लेने की कोशिश में है, जो खास गंध के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसके लिए वह माथे के पसीने की जांच कर, गंध से सम्बंधित एक आसान विधि खोज निकालेंगे.