हम सभी प्रेक्टिकल होने की बात करते हैं लेकिन क्या सच में हम प्रेक्टिकल हो पाते हैं? अचानक से किसी से जुड़ना और कुछ समय बाद बिछड़ना व्यक्ति को मानसिक रूप से कष्ट पहुंचा सकता है लेकिन फिर भी हम जुड़ते हैं और एक विश्वास के साथ आगे भी जुड़ते चले जाते हैं.
जिस तेज़ी से समाज का रूपांतरण हुआ है उसमें विवाह को भी आधुनिकता के साथ स्वीकार किया जाने लगा है. अब विवाह से पहले ही फोन पर बातें करना, मिलना-जुलना आम बात हो चली है और ऐसा होना भी चाहिए ताकि एक साथ अपना जीवन बिताने वाले दो लोग एक दूसरे को जान-पहचान कर ज़िन्दगी की बागड़ोर ज़िम्मेदारी और सहयोग के साथ थाम सकें.
इस दौरान एक-दूसरे के विचारों, पंसद-नपसंद और छोटी-छोटी बातें पता चलती हैं जो प्यार को जन्म देती हैं लेकिन अक्सर ऐसी बातों से भ्रम भी पैदा होता है. इस दौरान या तो एक पक्ष अधिक मांग कर बैठता है या हावी होने की कोशिश करता है जो दूसरे पक्ष को कमज़ोर और भ्रम से भर देता है.
दरअसल, इस बीच हकीकत, ख्यालों और बातों की दुनिया से बहुत इतर होती है. जब तक इस का भान होता है तब-तक बहुत देर हो चुकी होती है लेकिन इन सभी बातों को यदि वास्तविकता के तराजू में तोला जाए तो भ्रम की स्थिति से उबरा जा सकता है. ऐसा सोचें कि यदि आपका रिश्ता होने के बाद, आपकी आपस में यदि बातें न होती तो? तभी आपको विवाह करना ही होता लेकिन हाँ इस तरह के मेल-मिलाप के बाद खुद को और अपने साथी को आने वाले जीवन के लिए तैयार किया जा सकता है और यही वास्तविकता है.
इस समय विचलित न हो बस वास्तविकता को समझें और यदि कुछ न समझ आए तो किसी काउंसलर से बात करें. सब से उपयोगी यह होगा कि एक दूसरे को ‘समय’ दें ताकि विवाह के बाद आपसी तालमेल सही बैठ सके.
जीवन सुखमय हो, खुशहाल हो, इस के लिए धीरज रखने की जरूरत है. बस खुद को माहोल में ढाल लें और अपने साथी को अपनी सूझ-बुझ से अपने प्यार और विश्वास से जितने की कोशिश करें. याद रखें किसी भी रिश्तें में ख्याली पुलाव ज्यादा समय तक नही पकता, इसलिए वास्तविकता के अनुसार जीवन की हकीकत को जानकर ज़िन्दगी जिएं और खुश रहें.