घर बनाने पर सबसे पहले उसमें मंदिर के लिए स्थान चुना जाता है. प्रतिदिन मन्त्रों के जाप, धूप, अगरबत्ती की महक से घर का वातावरण स्वच्छ और पवित्र रहता है लेकिन कई बार ऐसा देखा गया है कि घरों में मंदिर होने के बाद भी कलेश व दरिद्रता का निवास रहता है. ऐसा क्यों?
दरअसल, घरों में बनाए गए मंदिर किस दिशा में हैं. किस ओर हैं यह जानना भी बेहद जरुरी होता है. बंद कोने में, अंधेरे से घिरे स्थान पर मंदिर होने से घर के वातावरण और घर के लोगों पर असर पड़ता है. आइए जाने घर में मंदिर बनवाते समय किस बात का ध्यान रखे…
वास्तुशास्त्र के अनुसार…
-घर में मंदिर बनाते समय ध्यान रखें कि मंदिर की दिशा पूर्व की तरफ हो और पूजा करते समय आपका मुंह पश्चिम दिशा की तरफ हो. यह घर में मंदिर बनवाने का आदर्श तरीका है.
-घर में बनाए गए मंदिर में बड़ी मूर्ति न लगाएं. न ही एक साथ सभी रूपों की मूर्तियाँ लगाएं.
-इस बात का भी ख्याल रखें कि आपके घर के मंदिर स्थान ऐसा हो जहाँ दिनभर में कुछ समय के लिए सूर्य की रोशनी आया करे.
-मंदिर के साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखें कि पूजा में कभी भी बासी पत्ते और फूल नहीं चढ़ाएं. हाँ, गंगाजल व तुलसी के पत्ते कभी बासी नहीं होते हैं इसलिए इनका उपयोग किया जा सकता है.
-दरिद्रता से बचने के लिए ध्यान रखे कि जहाँ मंदिर हो वहां कभी भी चमड़े के जूते व चप्पल न ले जाएं.
– याद रखें, घर के मंदिर में मृतक और पूर्वजों के चित्र न लगाएं यदि रखना ही चाहते हैं तो पूर्वजों के चित्र दक्षिण दिशा की तरफ अलग से लगाएं.
-शौचालय के आसपास कभी भी मंदिर न बनाएं. यह अशुभ माना जाता है.
-प्रतिदिन रात को सोने से पहले मंदिर को पर्दे से ढंकना न भूलें.
ईश्वर का स्थान वैसे तो दिल में होता है लेकिन इन्सान की मानसिक शांति के लिए ईश्वर का स्थान होना जरूरी हो जाता है. दीन-दुनिया से दुखी हो कर जब मनुष्य ईश्वर की शरण के लिए उनके स्थान पर आता है तो उसे असीम शांति का अनुभव होता है इसलिए घरों में मंदिर बनवाने पर ध्यान दिया जाता है.