अधिक नींद न बना दे बीमार
एक 38 वर्षीय व्यक्ति को इलाज के लिए लाया गया. उसे उसकी पत्नी लेकर आयी थी. वह पति के अत्यधिक सोने की आदत से परेशान थी. कभी-कभी वह दो दिन तक लगातार सोता रहता था. उठने के बाद नित्य कर्म और खाने के बाद फिर सो जाता था. घर की पूरी जिम्मेवारी पत्नी के हाथों […]
एक 38 वर्षीय व्यक्ति को इलाज के लिए लाया गया. उसे उसकी पत्नी लेकर आयी थी. वह पति के अत्यधिक सोने की आदत से परेशान थी. कभी-कभी वह दो दिन तक लगातार सोता रहता था. उठने के बाद नित्य कर्म और खाने के बाद फिर सो जाता था. घर की पूरी जिम्मेवारी पत्नी के हाथों में ही थी.
पूरी जानकारी लेने के बाद पता चला कि उसका पति माता-पिता की इकलौती संतान था. इसके कारण उसका पालन-पोषण बड़े ही लाड़-प्यार से हुआ था. कुछ गलत करने पर भी उसके माता-पिता उसे कभी कुछ नहीं कहते थे, जिससे वह काफी गैर-जिम्मेवार हो गया था. पढ़ा-लिखा होने के बाद भी वह कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता था.
उसे लगता था कि अधिक सोना कोई बीमारी नहीं है और घर में रुपये-पैसे की कोई कमी नहीं है, इसलिए वह काम क्यों करे. उस व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक काउंसेलिंग की गयी. उसके अंदर कुछ करने की चाहत को जगाया गया. शरीर की संरचना इस प्रकार होती है कि जिस समय उठने की आदत बन जाती है, उसके बाद व्यक्ति रोज उसी समय उठता है. ऐसे में यदि सुबह में उठने पर उसे आलस्य लगे, तो संगीत सुनने, पार्क में टहलने, सोने के समय गरिष्ठ भोजन से बचने की सलाह दी गयी. अधिक सोना न सिर्फ मानसिक, बल्कि शारीरिक रूप से भी हानिकारक है. पत्नी और माता-पिता की भी काउंसेलिंग की गयी, जिसमें पत्नी को सहयोग करने और माता-पिता को व्यक्ति की गलत आदतों को बढ़ावा न देने की सलाह दी गयी. कुछ समय बाद उसमें सुधार देखने को मिला.
डॉ बिन्दा सिंह
क्लिनिकल
साइकोलॉजिस्ट, पटना
मो : 9835018951