म्यांमार के पट खुल रहे हैं
म्यांमार (बर्मा) से लौट कर हरिवंश 22 वर्षों बाद शुरू इंडियन एयरलाइंस की उद्घाटन उड़ान (संख्या आइसी-227) से सात दिसंबर को रंगून (अब यह बर्मी में यांगून) पहुंचने पर उत्साह से स्वागत हुआ. परंपरागत नृत्य अगवानी फिर समारोह. म्यांमार के यातायात मंत्री लेफ्टिनेंट जनरल थेन वीन मौजूद थे. उप यातायात मंत्री यू सान वी थे. […]
म्यांमार (बर्मा) से लौट कर हरिवंश
22 वर्षों बाद शुरू इंडियन एयरलाइंस की उद्घाटन उड़ान (संख्या आइसी-227) से सात दिसंबर को रंगून (अब यह बर्मी में यांगून) पहुंचने पर उत्साह से स्वागत हुआ. परंपरागत नृत्य अगवानी फिर समारोह. म्यांमार के यातायात मंत्री लेफ्टिनेंट जनरल थेन वीन मौजूद थे. उप यातायात मंत्री यू सान वी थे. भारत के राजदूत एलटी पुदियाते और भारतीय दूतावास के अन्य अधिकारी थे. काफी संख्या में बर्मी और भारतीय मूल के लोग आये थे.
बंद म्यांमार (बर्मा) के पट धीरे-धीरे खुल रहे हैं. यहां विजिट म्यांमार इयर 1996 के लिए बड़ी तैयारियां हो रही हैं. दुनिया के यात्री 1996 में म्यांमार पहुंचें. इसके लिए देश सज-संवर रहा है. इसी पृष्ठभूमि में इंडियन एयरलाइंस की इस उड़ान का स्वागत होता है. बर्मा के यातायात मंत्री कहते हैं कि यह उड़ान दो पुराने मित्रों के बीच सीधा संपर्क कायम करेगी. पश्चिमी मोरचे पर भारत हमारा पड़ोसी है. सदियों का हमारा साथ है धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक रिश्ते हैं. जनरल थेन वीन मानते हैं कि इस लड़ान में पुरानी मित्रता को नयी ऊर्जा मिलेगी. आर्थिक संबंध कायम होगा. आर्थिक विकास की प्रक्रिया दोतरफा है. एक हाथ से ताली नहीं बजती. दोनों देश मिल कर आगे बढ़ेंगे. फिर भारत के राजदूत एलटी पुदियाते बोलते हैं. इंडियन एयरलाइंस के क्षेत्रीय निदेशक (पूर्वी) पीसी पुरकायस्थ इस नयी उड़ान की जानकारी देते हैं. फिर खाने-मिलने-बतियाने का लंबा दौर चलता है. पर क्या कोई समारोह या स्वागत पुराने रिश्तों को पूरी तरह जीवंत बना सकता है? ऐसे कार्यक्रम जरूर आत्मीयता बढ़ाते हैं. पर भारत-म्यांमार के आपसी संबंध-अतीत को आज कितने लोग जानते हैं? पश्चिम के बारे में हमारी जो जानकारी है. ललक है. पश्चिमी आचार-विचार को अपनाने की भूख है. क्या वह अपने पास-पड़ोस या दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के बारे में है?
म्यांमार या यांगून नये नाम हैं. बर्मा और रंगून भारतीय जेहन में हैं. अंगरेजों के शासन में भारत-बर्मा एक थे. 1980 के दशक में बर्मा ने अपनी जड़ तलाशने की कोशिश की. अंगरेजी नाम बगैरह बदल कर बर्मी मूल के नाम रखे गये. उसी के तहत बर्मा म्यांमर कहलाया. रंगून यांगून हुआ. यांगून का बर्मी मूल में अर्थ है कि जहां कोई खतरा नहीं हैं. खतरा मुक्त पूरे देश के शहरों-संस्थाओं के मूल बर्मी नाम प्रचलित हुए. अंगरेजीयत का बाहरी आवरण-चोला उतार दिया गया. पूरे देश में बर्मी भाषा में ही कामकाज-लिखावट-सार्वजनिक संकेत-सूचनाएं दर्ज की गयीं.
हालांकि अब यह दौर पलट रहा है. बाजार व्यवस्था-खगोलीकरण (ग्लोबलाइजेशन) का असर है. अंगरेजी तेजी से लौट रही है. सार्वजनिक सूचनाएं नाम वगैरह अंगरेजी में लिखे जा रहे हैं, ताकि विजिट म्यांमार वर्ष 1996 में आगंतुकों को कठिनाई न हो. पर भारतीय क्या विजिट म्यांमार वर्ष 1996 के तहत वहां जाकर बर्मा को जानेंगे-समझेंगे?
बर्मा या म्यांमार यानी बुद्ध धर्म का देश ऊंनू का देश. ऊथांत का देश. मांडले कारावास का देश, जहां लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक, सुभाषचंद्र बोस समेत अनेक भारतीय कैदी रखे गये. गीता रहस्य (छह वर्ष मांडले कारावास में रहते हुए तिलक ने लिखा) की रचना का देश, आजाद हिंद फौज के सुभाष बाबू की स्मृतियों से डूबी धरती भारत से 2500 वर्ष पहले लाये बुद्ध के बाल को गाड़ कर उस पर तैयार भव्य पगोडाओं का मुल़्क उत्तरप्रदेश, बिहार व भारत के दूसरे प्रांतों से आये लाखों लोगों के कारोबार का देश. शरदचंद्र की यादों से जुड़ा देश. महेंद्र मिश्र के लोकगीतों में भोजपुरी लोगों के श्रम-पीड़ा संघर्ष में जीवित देश.